मद्रास उच्च न्यायालय ने कुत्तों की पूंछ एवं कान काटने पर प्रतिबंध लगाया
भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड द्वारा दायर एक अपील की सुनवाई करते हुए जिसमे पीपल फॉर द एथिकक ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया था, मद्रास उच्च न्यायालय ने पशुओं पर क्रूर बदलाव जैसे की कुत्ते के बच्चों की पुंछ कट कर छोटी कर देना व कान कट देना जैसी गतिविधियों पर रोक लगा दी है। भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड की ओर से पेश हुए वकील को सुनने के बाद, जिनहोने अदालत को सूचित किया की, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (डॉग ब्रीडिंग एवं मार्केटिंग) नियम 2017 और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (पशु बिक्री केंद्र) नियम 2018 के मद्देनजर पशुओं के शरीर में आम तौर पर अनावश्यक रूपसे बदलाव करना कानून के तहत गैरकानूनी हैं। अदालत ने भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड को अपील को निरस्त कर दिया है जो इन नियमों के अधिनियम के मद्देनजर विफल हो गयी थी।
इससे पहले PETA इंडिया ने कई बार भारतीय पशु चिकित्सा नियामक संस्थाओं को पत्र भेजे द जिसमे वेटेनरी काउंसिल ऑफ इंडिया, राज्य पशु चिकित्सा परिषद, केंद्रीय एवं राज्य पशुपालन विभाग, पशु चिकित्सा कॉलेज और विश्वविध्यालय और पशु चिकित्सा संघ के साथ साथ एडबल्यूडीआई भी शामिल है, जो क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत स्थापित किया गया वैधानिक निकाय है, इन पात्रो में तत्कालीन नए 2017 और 2018 के नामों के अनुसार कुत्तों की पुंछ एवं कान काटने पर प्रतिबंध लागू करनेऔर प्रभाव में लाने का आग्रह किया गया था।
एडबल्यूबीआई द्वारा 2011 में जारी की गयी एक एडवाईजरी, जिसमे स्पष्ट किया गया था की गैर चिकित्सीय पुंछ एवं कान काटना पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत जनवारों पर क्रूरता करने के तहत आता है, इसके बाद पशु चिकित्सा परिषद द्वारा मूल रूप से क्रूर प्रक्रियाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और इसलिए इन प्रक्रियाओं को करना दंडनीय अपराध है। कुत्तों के अंग भंग करना भी भारतीय दंड संहिता की धारा 429 का उलंघन करता करता है फिर भी 2013 में मद्रास उच्च न्यायालय ने प्रतिबंध को पलट दिया। एडबल्यूबीआई ने इस आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी जिसे कल अदालत ने निस्तारित कर दिया है। हालांकि ब्रीडरों और पालतू पशुओं की दुकानों के मालिकों के निहित स्वार्थ के कारण 2017 एवं 2018 के नियमों को दिल्ली उच्च न्यायालय, मद्रास उच्च न्यायालय और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गयी है। याचिकाकर्ताओं को कोई अंतिम स्टे नहीं दिया गया है और नियमों के प्रावधान लागू रहेंगे। वास्तव में राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष 2017 के नियमों को दी गयी चुनौती को उच्च न्यायालय द्वारा मई 2018 में पहले ही खारिज किया जा चुका है।
कुत्तों के कान को काटना या कान के पास किसी एक हिस्से को काटना, यहाँ तक कि जब पशु चिकित्सा के तहत चिकित्सक द्वारा किया जाता है तो सर्जरी के बाद के दर्द एवं मनोवैज्ञानिक आघात का कारण बबनता है और संक्रमित घाव जैसी जटिलताओं को जन्म दे सकता है। कुत्तों के कान को काट कर बार बार उनपर टेप लगाकर उनके एक खास प्रकार के आकार देने कि कोशिश कि जाती है जिससे कुत्तों को तकलीफ होती है। कुछ ब्रीडरों ने ऐसे मामलों को अपने हाथों में ले लिया है और बिना किसी बेहोशी एवं दर्द कि दावा के कुत्तों के कान एवं पुंछ को कैंची अथवा ब्लेड से काट देते हैं। यहाँ तक कि बहुत से पशु चिकित्सक भी बिना किसी दर्द निवारक दावा का इस्तेमाल किए बिना पुंछ एवं कान काटने का काम कर रहे हैं। एक विकल्प्स के रूप में ब्रीडर अक्सर रक्त आपूर्ति को काटने के लिए एक छल्ले का इस्तेमाल करते हैं ताकि यह स्वतः ही गिर जाए।
जो लोग इन प्रक्रियाओं को करते हैं वो इस बात कि अहवेलना करते हैं कि शरीर के ये अंग कुत्तों के लिए कितने आवश्यक हैं, वे अपनी पुंछ का इस्तेमाल अपने शरीर का संतुलन बनाने एवं अपने मालिक व अन्य कुत्तों के साथ संवाद करने के लिए करते हैं।
कानों को काटना ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलेंड यूरोप के कई देशों एवं कनाडा के अधिकांश प्रान्तों में भी प्रतिबंधित है और ऑस्ट्रेलिया, इस्राइल, दक्षिण अफ्रीका एवं अन्य कई देशों में पुंछ को छोटा कारण प्रतिबंधित है।
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