PETA इंडिया के हस्तक्षेप के बाद पंजाब में मनसा के डिप्टी कमिश्नर ने कुत्तों की दौड़ की अनुमति रद्द कर दी
यह पता चलने पर कि 23 दिसंबर को पंजाब के मनसा में होने वाली कुत्तों की दौड़ के लिए अनुमति दी गई है, PETA इंडिया ने तुरंत मनसा जिले के उपायुक्त श्री कुलवंत सिंह, आईएएस से संपर्क किया और उन्हें अवगत कराया कि कुत्तों कि यह दौड़ अवैध है और भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड (पूर्व में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड) (AWBI) के दिनांक 07 दिसंबर 2020 के परिपत्र का उल्लंघन है। परिणामस्वरूप, उपायुक्त कार्यालय ने तत्काल कार्यवाही करते हुए अनुमति को रद्द करते हुए दौड़ पर रोक लगा दी। सही समय पर की गई इस कार्यवाही का उद्देश्य अनगिनत कुत्तों को होने वाली पीड़ा से बचाना है।
अपने पत्र में, PETA इंडिया ने बताया कि पंजाब के मुख्य सचिव को भेजे गए एक पत्र के अनुसार, AWBI ने राय दी थी कि पशुओं की सभी नस्लें, और विशेष रूप से कुत्तों की दौड़ ‘पशु क्रूरता निवारण (पीसीए) अधिनियम 1960 के तहत प्रतिबंधित हैं और इसी तरह के आयोजनों को अवैध माना गया है। PETA द्वारा दिए गए पत्र में चेतावनी दी गई कि इस तरह की दौड़ आयोजित करना अदालत की अवमानना है और कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए ऐसी गतिविधियों के लिए किसी भी अनुमति या निर्देश को वापस लेने का आग्रह किया गया है।
PETA इंडिया के पत्र में यह भी बताया गया कि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 विशेष रूप से पशुओं की आपसी लड़ाई हेतु उनको उकसाना भी अपराध मानता है। भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए नागराजा एवं अन्य (सिविल अपील संख्या 5387/2014) के 7 मई 2014 के ऐतिहासिक फैसले में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पशु दौड़ जैसी गतिविधियाँ पशुओं की लड़ाई के दायरे में आती हैं, क्योंकि इनमें उन्हें आपस में लड़ने और खतरनाक स्थिति में डाले जाने के लिए मजबूर करना शामिल है, जो उनको आपस में लड़ाने और उकसाने जैसा है।
हाल ही में, PETA इंडिया ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ काम करते हुए कई स्थानों पर कुत्तों की अवैध दौड़ों को सफलतापूर्वक रोका जिसमे अर्जुनगी, बीजापुर, कर्नाटक (12 दिसंबर); लासोई गांव, मलेरकोटला, पंजाब (10 दिसंबर); एसएएस नगर मोहाली, पंजाब (8 दिसंबर); श्री मुक्तसर साहिब, पंजाब (6 दिसम्बर); समराला गाँव, लुधियाना, पंजाब (30 नवंबर); चुंग गांव, तरनतारन, पंजाब (27 नवंबर); यमुनानगर, हरियाणा (25 नवंबर); और मोगा, पंजाब (24 नवंबर) जैसे आयोजन शामिल हैं।
कुत्तों की दौड़ स्वाभाविक रूप से क्रूर है क्योंकि इसमें शामिल कुत्तों को गंभीर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है। इन कुत्तों को तेज़ दौड़ने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे अक्सर दौड़ के दौरान फ्रैक्चर, लंग्स का फट जाना, आंतरिक क्षति या यहां तक कि मौत जैसी स्थिति भी बन जाती है। शारीरिक तनाव से परे, जब दौड़ नहीं हो रही होती तो इन कुत्तों को कैद करके रखा जाता है जिससे उनमें उपेक्षा के साथ साथ कुपोषण, निर्जलीकरण और खराब स्वास्थ्य का खतरा होता है। दौड़ के दौरान होने वाला शोर-शराबा, अराजक माहौल कुत्तों को अत्यधिक तनाव और चिंता का कारण बनता है, जिसके परिणामस्वरूप दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक आघात हो सकता है। जब इन कुत्तों को रेसिंग के लायाक नहीं समझा जाता है, तो उन्हें अक्सर छोड़ दिया जाता है या मार दिया जाता है, जिससे उनकी पीड़ा और बढ़ जाती है। दौड़ों का प्रचलन होने और इस तरह की प्रजाति के कुत्तों की मांग बढ़ने के कारण कुत्तों का प्रजनन किया जाता है जिससे उनकी संख्या बड़ जाती है और जब वह दौड़ के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाते तो उन्हें उपेक्षा या मौत का शिकार होना पड़ता है.