गधों की घटती जनसंख्या के बीच, PETA इंडिया की नयी जांच में गधों के साथ की जाने वाली घोर क्रूरता का खुलासा हुआ
18 अक्टूबर को, PETA इंडिया ने आंध्र प्रदेश में गधों की अवैध हत्या और उनके मांस की बिक्री से संबंधित अपनी नई अंडरकवर जांच के निष्कर्षों को साझा करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। PETA इंडिया ने हाल ही में बापटला, चिराला, ओंगोल, ताडेपल्ले और विजयवाड़ा का दौरा किया जिसमें निम्नलिखित तथ्य सामने आएँ:
- सड़क किनारे, फ्लाईओवर के नीचे और अस्थायी स्टालों के पीछे कसाईयों द्वारा गधों का गला काटा जाता है
- वयस्कों द्वारा बच्चों को जानवरों की अवैध हत्या में मदद करने के लिए मजबूर किया जाता हैं, उन्हें खून के संपर्क में लाया जाता हैं, और हिंसा के प्रति असंवेदनशील बनाया जाता है
- बेघर कुत्तों द्वारा खुले में फेंका गया गधे का मांस, उनके चमड़ी और शारीरिक अंग खाए जाते हैं
- दुकानदारों द्वारा खुलेआम गधे के मांस की बिक्री की जाती है जो पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है और पुलिस वालों द्वारा कार्यवाही करने के बजाय स्वयं मांस की ख़रीदारी की जाती है- जैसा कि वीडियो में देखा जा सकता है
- पुलिस से बचने के लिए गधों का परिवहन रात में किया जाता है और उन्हें सुबह तड़के बूचड़खानों में पहुंचाया जाता है
PETA इंडिया की हालिया जांच के आधार पर PETA इंडिया, बापटला पुलिस और एनिमल रेस्क्यू ऑर्गनाइजेशन, हेल्प फॉर एनिमल्स सोसाइटी एवं ईस्ट गोदावरी SPCA ने एक साथ एक अभियान चलाया जिसमें 400 किलोग्राम से अधिक गधे के मांस को जब्त किया गया। इस राज्य में गधे के मांस की बिक्री कसाईयों द्वारा किए गए फर्जी और अवैज्ञानिक दावों के आधार किया जाता है।
भारत में पिछले सात सालों में गधों की जनसंख्या में 61% की गिरावट आई है, जबकि कानूनी रूप से उनकी हत्या करना या इनके मांस का सेवन करना पूर्ण रूप से निषेध है। गधे को मौत के घाट उतारना भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 429 का उल्लंघन है, जिसके अंतर्गत पांच साल तक की जेल, जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 11(1)(A) और (L) के तहत गधों को मारना भी एक अपराध है। खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत गधों के मांस का सेवन अवैध है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, (वधशाला) नियम, 2001 के तहत सार्वजनिक स्थानों पर पशुओं के वध पर रोक लगाई गयी है।
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