लाल कपड़े से लिपटे 50 बैल समर्थकों ने दौड़, लड़ाई और जल्लीकट्टू के नाम पर बैलों के साथ होने वाले खूनखराबे पर रोक लगाने का आह्वान किया

Posted on by Shreya Manocha

PETA इंडिया के दर्जनों समर्थक और JD जेडी इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी के छात्र आश्रय फाउंडेशन के सहयोग से जंतर मंतर पर लाल कपड़े में लिपटे और सिर पर सींग पहने नज़र आएं। यह लाल कपड़ा बैलों की जबरन दौड़, लड़ाई, और जल्लीकट्टू जैसे प्रदर्शनों के दौरान बैलों और अन्य पशुओं के साथ होने वाली क्रूरता का प्रतीक है। इन सभी प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व सफेद, कंकालनुमा सांड का मुखौटा पहने एक प्रदर्शनकारी द्वारा किया जाएगा जिन्होंने अपने हाथ में एक बोर्ड पकड़ा होगा जिसपर लिखा होगा, “बैलों का खून बहाना बंद करों: बैलों की दौड़, लड़ाई और जल्लीकट्टू का अंत करो!! “। इस पूरे प्रदर्शन का उद्देश्य इस प्रकार के हिंसक और जानलेवा प्रदर्शनों पर रोक लगाना है।

 

JD इंस्टीट्यूट में, हम रचनात्मता के साथ-साथ करुणा से भरपूर प्रगतिशील नागरिकों का मार्गदर्शन करते हैं और उनकी प्रतिभाओं को नया आयाम देते हैं। हम PETA इंडिया के साथ मिलकर पशुओं के खिलाफ़ किसी भी प्रकार की क्रूरता का विरोध करते हैं और इस प्रदर्शन में भाग लेने वाले हमारे छात्र यह साबित करते हैं कि सच्ची कलात्मकता सौंदर्यशास्त्र से परे मानवता के उत्थान और नैतिक कर्तव्यों के निर्वाहन में है। हम भावी भविष्य के मद्देनजर ऐसे युवाओं को पोषित करते हैं जो नवाचार और संवेदनशीलता के महत्व को समझते हुए सही का साथ दें। हमारे लिए फैशन का मतलब अपने मूल्यों का कलात्मक प्रदर्शन और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक ज़रिया है। हमें PETA इंडिया के मिशन का समर्थन करके बहुत गर्व की अनुभूति हो रही है, और हम इस दुनिया को अभी दयालु और संवेदनशील बनाने के अपने प्रयास को जारी रखेंगे।“

– श्रीमती रूपल ब्रोकर, JD इमेज प्रमोशन (JD इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी की पेरेंट कंपनी) की मैनिजिंग डाइरेक्टर

बैल प्राकृतिक रूप से घबराए हुए और शिकार से डरने वाले पशु होते हैं और इसलिए बैलों की दौड़, लड़ाई या जल्लीकट्टू के दौरान इनका प्रयोग करने के दौरान इन्हें दर्द, घबराहट और भय पैदा करके भागने के लिए उकसाया जाता है। PETA इंडिया द्वारा कई वर्षों के दौरान इसके वीडियो साक्ष्य एकत्र किए गए हैं कि बैलों को  जल्लीकट्टू के मैदान में जबरन घुसाने के लिए दरांती या नुकीली लाठियों या उपयोग किया जाता है, उनकी नाक की रस्सियों को बेरहमी से खींचा जाता है या उनकी पुंछ को दांतों से काटा जाता है।

वर्ष 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड बनाम ए नागराजा और अन्य मामले में एक विस्तृत और तर्कसंगत निर्णय पारित करते हुए, जल्लीकट्टू सहित सभी प्रकार के बैलों के प्रदर्शन को भारतीय संविधान और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के अंतर्गत पशुओं को प्रदान किए गए अधिकारों का उल्लंघन घोषित किया था। हालाँकि, यह निर्णय पारित होने के बाद, वर्ष 2017 की शुरुआत में, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र ने क्रमशः जल्लीकट्टू, कंबाला और बैलों की दौड़ को अनुमति प्रदान करने के लिए अपने राज्यों के पशु संरक्षण कानूनों में संशोधन किया था।  18 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भी इन राज्यों में इस प्रकार के आयोजनों को अनुमति प्रदान करी थी।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा PETA इंडिया एवं अन्य पशु अधिकार संगठनों द्वारा दायर एक ई-मेल याचिका पर विचार करने पर सहमति दर्ज़ कराई गयी जिसमें इन समूहों और अन्य लोगों की 18 मई 2023 के फैसले को बदलने की मांग करने वाली याचिकाओं की तत्काल समीक्षा का अनुरोध किया गया था।

वर्ष 2017 के बाद से, जल्लीकट्टू आयोजनों के दौरान 42 बैलों और 126 इंसानों की मौत हो चुकी है जिसमें बच्चे भी शामिल हैं। बैलों से संबंधित अन्य आयोजनों के दौरान भी कई बैलों और इंसानों को गंभीर चोटे आयी या उनकी मृत्यु हुई है। वर्ष 2017 के बाद से, देश भर में पशुओं का शोषण करने वाले आयोजनों के प्रचलन में भारी बढ़ौतरी हुई है जिसमें लोमड़ी जल्लीकट्टू, भैंस और बैल की लड़ाई, बुलबुल की लड़ाई, मुर्गों की लड़ाई और कुत्तों की लड़ाई जैसे क्रूरतापूर्ण आयोजन शामिल हैं।

बैलों के साथ होने वाले शोषण को समाप्त करने में अपना योगदान दें!!