60 से अधिक चिकित्सकों ने याचिका दर्ज़ कर “राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग” से PG मेडिकल पाठ्यक्रमों में शिक्षण हेतु पशु प्रयोग को रोकने की माँग की
‘राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग’ (NMC) द्वारा जारी फार्माकोलॉजी और फिजियोलॉजी पाठ्यक्रमों के शिक्षण और प्रशिक्षण में पशु प्रयोग को अधिकृत करने वाले “पोस्ट ग्रेजुएट (PG) मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन 2021” संबंधी मसौदे के जवाब में, 60 से अधिक चिकित्सकों ने “स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षण बोर्ड” (PGMEB) को एक अपील भेजी है। इन सब चिकित्सकों ने अपनी अपील में, पशु प्रयोग की अधिकृता को हटाने के लिए प्रस्तावित नियमों में संशोधन करने और PG पाठ्यक्रमों के दौरान पशु प्रयोग को अधिक प्रभावी और मानव-प्रासंगिक तकनीकों द्वारा प्रतिस्थापित करने की माँग की है। इसी तरह की अपील US स्थित Physicians Committee for Responsible Medicine नामक संस्था द्वारा भी भेजी गयी है जो 17,000 चिकित्सकों का प्रतिनिधित्व करती है।
भारत में स्नातक चिकित्सा प्रशिक्षण के लिए जानवरों का उपयोग नहीं किया जाता लेकिन स्नातकोत्तर शिक्षण और प्रशिक्षण के लिए जानवरों की त्वचा या आंखों पर रसायनों को मलने, उन्हें जबरन जहरीले धुएं में सांस लेने और जानबूझकर बीमारियों से संक्रमित या अंग विच्छेदन करने की छूट है। इनमें से अधिकांश जानवरों को ज़रूरत न रहने पर उनका गला घोट कर या सर तोड़ कर मौत के घाट उतार दिया जाता है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, रायपुर; गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर; NHL म्युनिसिपल मेडिकल कॉलेज; और तेजपुर मेडिकल कॉलेज, असम; जैसे कई प्रगतिशील मेडिकल कॉलेज PG छात्रों के प्रशिक्षण के लिए जानवरों का उपयोग नहीं करते और इसके बजाय कंप्यूटर आधारित विधियों या अन्य मानव-प्रासंगिक विकल्पों का उपयोग करते हैं।
PETA इंडिया ने NMC और PGMEB को भेजे अपने पत्र में यह भी बताया कि विभिन्न भारतीय मेडिकल स्कूलों द्वारा किए गए अध्ययनों के अनुसार, बहुत से गैर-पशु विकल्प प्रशिक्षण के उद्देश्यों की पूर्ति करने में प्रभावी हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इस प्रकार की विधियों को कई बार दोहराया जा सकता है और यह छात्रों की experimental concepts की समझ में सुधार करती हैं। साथ ही इसके कारण छात्रों की याद रखने की क्षमता में सुधार होता है और जानवरों पर प्रयोग करते समय सामने आने वाले कई अन्य समस्याओं में भी सुधार आता है।
“पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” का उद्देश्य पशुओं को प्रयोग से पहले, प्रयोग के दौरान और बाद में मिलने वाले अनावश्यक दर्द और पीड़ा को कम करना है। अधिनियम की धारा 17 (2) (d) के तहत, पशु प्रयोगों के नियंत्रण और पर्यवेक्षण के उद्देश्य हेतु गठित समिति द्वारा “जहाँ भी संभव हो पशु प्रयोगों को टाला जाए। उदाहरण के लिए, मेडिकल स्कूलों, अस्पतालों, कॉलेजों और अन्य शिक्षण संस्थानों में किताब, मॉडल, फ़िल्म एवं अन्य प्रशिक्षण विकल्पों को ज़्यादा से ज़्यादा अपनाया जाए।“ “पशुओं के प्रजनन और प्रयोग (नियंत्रण और पर्यवेक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006” के नियम 9 (bb) के अनुसार, पशु प्रयोगों के सभी विकल्पों पर उचित और पूर्ण विचार किया जाना चाहिए।“
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