PETA इंडिया ने पशुपालन प्रक्रियाओं में मानवीय तरीकों को लागू किए जाने हेतु दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
PETA इंडिया ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर केंद्र सरकार से बैल एवं गायों सहित मवेशियों के लिए दर्दनाक पशुपालन प्रक्रियाओं के संबंध में कुछ नियमावली बनाने व “निर्धारित तरीकों” को परिभाषित करने की मांग की है। PETA समूह ने आग्रह किया है इन पशुओं की नसबंधी से पूर्व उनको बेहोश किया जाना, नाक के अंदर से नकेल बांधने की बजाय मोहरा (बिना नकेल कसे केवल मुंह के ऊपरी हिस्से पर रस्सी पहनाना), जलते सरिये से शरीर पर मुहर अंकित करने की बजाए रेडियों फ्रिकवेंसी पहचान चिन्ह इस्तेमाल किए जाए, उनके सींग उखाड़ने की बजाए सींग रहित ब्रीडिंग जैसे मानकों को निर्धारित किया जाए। PETA इंडिया ने इंगित किया है कि उसने इससे पहले भी कई बार केंद्र सरकार से इस तरह के मानकों को निर्धारित करने के लिए अनुरोध किया है लेकिन कार्यवाही ना होने व जानवरों को दुर्दशा से निजात दिलाने के लिए जनहित याचिका का सहारा लेकर उन्होने अब न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
“पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960” का सेक्शन 11 पशुओं के साथ क्रूरता भरे व्यवहार तथा उप सेक्शन 3 पशुओं की देखभाल के संबंध में हैं जिसमे कहा गया है कि पशुओं की नसबंदी करने, उनके शरीर पर मुहर अंकित करने व उनकी नकेल डालने की प्रक्रिया यदि निर्धारित नियमों व दिशानिर्देशों के तहत हो तो इन कृत्यों को क्रूर नहीं माना जाएगा। ‘पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960’ के सेक्शन 38 में केंद्र सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वो पशुओं की वेदना रहित तरीकों से जीवन मुक्ति देने एवं सामान्य देखभाल के तरीकों पर आवश्यक दिशानिर्देश एवं नियमवाली बनाए।
भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड तथा पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा पशुओं की मानवीय देखभाल व वेदना रहित तरीकों जीवन मुक्ति के संबंध में जारी की गयी सलाह के आधार पर बहुत से राज्य पशुपालन विभागों ने राज्य के पशु चिकित्सकों को आदेश जारी कर उन्हें पशु देखभाल के मानवीय तरीके अपनाने के निर्देश दिये हैं। लेकिन पशु देखभाल के तरीकों को परिभाषित कर सकने, सुधार सकने, व विनियमित कर सकने वाले मजबूत दिशानिर्देश न होने की स्थिति में पशुओं की देखभाल के दौरान उनके साथ क्रूरता भरा व्यवहार होता है।
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