उत्तर प्रदेश में पिट बुल द्वारा किए गए दूसरे हमले के बाद PETA इंडिया ने लड़ाई के लिए इस्तेमाल होने वाले कुत्तों पर प्रतिबंध लगाने की दूसरी बार माँग की
हाल ही में मेरठ में पिट बुल द्वारा हमला किए जाने के बाद एक किशोर के गंभीर रूप से घायल होने की ख़बर सामने आने और लखनऊ में एक बुजुर्ग महिला को उसके बेटे के पिट बुल द्वारा मौत के घाट उतारे जाने के कुछ ही दिनों बाद, PETA इंडिया ने पशुपालन एवं डेयरी मंत्री माननीय श्री पुरषोत्तम रूपला जी से एक बार फिर “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (डॉग ब्रीडिंग एंड मार्केटिंग) नियम 2017” में तत्काल संशोधन की मांग की है। PETA इंडिया ने लड़ाई एवं आक्रामकता के लिए विदेशी नस्ल के कुत्तों जैसे पिट बुल के प्रजनन एवं पालन, अवैध रेसिंग प्रतियोगिताओं के लिए दो अन्य विदेशी नस्लों के प्रजनन तथा ब्रैचिसेफलिक प्रजाति के कुत्तों के प्रजनन को प्रतिबंधित करने की मांग की है। ब्रैचिसेफलिक प्रजाति के कुत्ते जैसे ‘पग’ जिन्हें सांस लेने में कठिनाई की समस्या रहती है व अक्सर सुधारात्मक सर्जरी की आवश्यकता रहती है। PETA इंडिया चाहता है कि इन नस्लों को क्रूर शोषण से बचाने के लिए बनाए गए कानून में संशोधन किया जाए। समूह द्वारा इन पशुओं को हर तरह के क्रूर शोषण से बचाने के लिए केंद्रीय कानूनी संशोधनों की माँग की गयी है।
भारत में, “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960” के तहत कुत्तों को लड़ने के लिए उकसाना गैरकानूनी है। इसके बावजूद भी पंजाब, हरियाणा व उत्तर भारत के कई अन्य हिस्सों में डॉग फ़ाईट्स का धड़ल्ले से आयोजन होता है और इस तरह की फ़ाईट्स में पिट बुल प्रजाति के कुत्ते सबसे ज्यादा दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं। पिट बुल प्रजाति के कुत्तों को आमतौर पर अवैध लड़ाई के लिए पाला जाता है व हमलावर कुत्तों के रूप में उन्हें जंजीरों से बांधकर कर रखा जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप यह कुत्ते आजीवन पीड़ा सहते हैं। कई कुत्तों को शारीरिक विकृतियों का सामना करना पड़ता है जैसे उनके कान काटना, यह एक अवैध प्रक्रिया है जिसमे एक कुत्ते के कान का कुछ हिस्सा काट का निकाल दिया जाता है ताकि लड़ाई के दौरान दूसरा कुत्ते को उसके कान चबाने से रोका जा सके व लड़ाई में हार न हो जाए। इन अवैध डॉग फाइटिंग के दौरान कुत्तों को तब तक लड़ने के लिए लगातार उकसाया जाता है जब तक कि दोनों कुत्तों में से एक गंभीर रूप से घायल न हो जाए या मर न जाए।
भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड (AWBI) जो कि पशु क्रूरता निवारण अधिनयम, 1960 की धारा 4 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है, का कहना है कि पंजाब में आमतौर पर आयोजित होने वाली “ग्रेहाउंड दौड़ें” पूरी तरह से अवैध हैं। 11 नवंबर 2014 को पंजाब सरकार के मुख्य सचिव को भेजे गए एक पत्र में AWBI ने सलाह दी थी कि राज्य में ग्रेहाउंड और अन्य कुत्तों की दौड़ों पर रोक लगाई जानी चाहिए लेकिन इस सलाह के बावजूद यह दौड़ें अभी तक जारी हैं। इस तरह की रेसिंग में इस्तेमाल होने वाले कुत्तों को आमतौर पर छोटे व तंग पिंजरों में कैद रखा जाता है, उन्हें पर्याप्त चिकित्सीय देखभाल भी प्रदान नही की जाती व वह अक्सर गंभीर चोटों का सामना करते हैं जैसे पीठ या शरीर का कोई अन्य अंग टूट जाना। प्रतियोगिता के लायक ना समझे जाने वाले या उम्र के साथ कमजोर हो चुके कुत्तों को छोड़ दिया जाता है, ऐसा लगभग तीन वर्ष की उम्र के कुत्तों के साथ होता है। ज़्यादातर देशो में कुत्तों की कमर्शियल रेसिंग नहीं होती या वह प्रतिबंधित है।
इस बीच, वोडाफोन द्वारा भारत में लोकप्रिय हुए पग जैसे विदेशी प्रजाति के ब्रैचिसेफलिक कुत्ते में भी Brachycephalic Obstructive Airway Syndrome (BOAS) एवं आँख और त्वचा संक्रमण जैसी गंभीर बीमारियाँ पायी जाती हैं। पग और Pekingese, Shih Tzu एवं Lhasa Apso जैसे ब्रैचिसेफलिक कुत्तों में भी आँखों की नाज़ुक त्वचा के कारण प्रॉप्टोसिस नामक बीमारी के लक्षण बहुत जल्दी देखने को मिलते हैं जिसके कारण उनकी आँख बाहर की ओर निकल आती हैं और उन्हें आपातकालीन सर्जरी की आवश्यकता होती है। Cavalier King Charles Spaniels नामक ब्रैचिसेफलिक प्रजाति के कुत्ते में सीरिंगोमीलिया के गंभीर लक्षण देखने को मिलते हैं जिसके अंतर्गत उनके मस्तिष्क में होने वाले रिसाव के कारण कुत्ते की खोपड़ी उनकी मस्तिष्क के हिसाब से बहुत छोटी होती चली जाती है।
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UK में Pit Bull Terriers, Japanese Tosas, Dogo Argentinos, और Fila Brasileiros नामक प्रजाति के कुत्तों को रखना अवैध है। इन विशेष प्रजाति के कुत्तों को इसलिए प्रतिबंधित किया गया क्योंकि इनका प्रयोग मनोरंजन हेतु कुत्तों को अवैध रूप से लड़वाने, शोषित करने और जबरन आक्रामक बनाने के लिए किया जाता था। इसी तरह, ऑस्ट्रेलिया में, UK में प्रतिबंधित प्रजातियों के साथ-साथ Perro de Presa Canorios पर भी रोक लगाई गयी है और जर्मनी में Pit Bull Terriers, American Staffordshire Terriers, और Staffordshire Bullterriers नामक कुत्तों के आयात पर रोक है।
वर्तमान में UK सहित कई अन्य देशों में फ्रांसीसी बुलडॉग और पग जैसे सपाट मुंह वाले कुत्तों की गंभीर शारीरिक समस्याओं के चलते उनके प्रजनन पर रोक लगाने के लिए आवाज़ उठाई जा रही है। नॉर्वे में, ब्रिटिश बुलडॉग और कैवेलियर किंग चार्ल्स स्पैनियल के चयनात्मक प्रजनन पर इसी कारण से प्रतिबंध लगा दिया गया है। ओस्लो जिला न्यायालय के अनुसार, विशेष शारीरिक लक्षणों हेतु प्रजनन क्रूर है और इसके परिणामस्वरूप कुत्तों में सांस लेने में कठिनाई जैसी “मानव निर्मित स्वास्थ्य समस्याएं” का जन्म होता है।
आमतौर पर पेट शॉप और ब्रीडर्स द्वारा बेचे जाने वाले “पेडिग्री” कुत्तों को उचित पशु चिकित्साकीय देखभाल और पर्याप्त भोजन, व्यायाम, प्यार और समाजीकरण से वंचित रखा जाता है। इसके विपरीत, आश्रयों और सड़क पर गोद लेने के लिए उपलब्ध भारतीय कुत्ते अधिक स्वस्थ और अधिक मजबूत होते हैं क्योंकि उन्हें एक छोटे जीन पूल से असामान्य शारीरिक लक्षणों के लिए जानबूझकर पैदा नहीं किया जाता है।
पशुओं को खरीदने के बजाय उन्हें गोद लेने की प्रतिज्ञा करें