PETA इंडिया केंद्र सरकार से अनुरोध करता है कि भविष्य में होने वाली संभावित महामारी से बचने हेतु सर्कस में पशुओं के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाए।
जैसा कि आज दुनिया एक खतरनाक महामारी नॉवेल कोरोनो वायरस से लड़ रही है जिसका संक्रामण पशु मंडियों से निकलकर मनुष्यों तक पहुंचा है। इसके मद्देनजर PETA इंडिया ने मत्स्य, पशुपालन और डेयरी विकास मंत्री को एक पत्र लिखकर आग्रह किया है कि, वे सर्कस में पशुओं के इस्तेमाल पर रोक लगाये, यह पशु जुनोटिक रोगों के वाहक होते हैं व इनकी वजह से कई ज़ूनोटिक रोग मनुष्यों में फैल सकते हैं।
आमतौर पर सर्कस में इस्तेमाल होने वाले पशुओं से कई तरह के ज़ूनोटिक रोग मनुष्यों में हस्तांतरित हो सकते हैं जैसे कि हाथी से ट्यूबरक्युलोसिस, घोड़ों से ग्लैंडर्स, पक्षियों से सिटाकोसिस (तोता बुखार), ऊंट से कैमलपॉक्स, और मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम, यह कोरोनावायरस के वजह से ही होता है। COVID-19 महामारी के चलते, कई सर्कस विभिन्न स्थानों पर फंसे हुए हैं और इन सर्कसों के पशुओं को पर्याप्त भोजन पानी नहीं मिल पा रहा है। महामारी और लॉकडाउन की यह परिस्थिति जल्दी बदलने वाली नहीं है और अगर लॉकडाउन ख़त्म भी होता है तो भी जनता भीड़ भाड़वाली जगहों में जाना नहीं चाहेगी ऐसी स्थिति में यह पशु लंबे सामय तक ऐसे ही तंग पिंजरों में कैद पड़े रहेंगे।
सर्कस के माध्यम से जनता में रोग फ़ैलने के खतरे के अलावा जानवरों के लिए भी सर्कस स्वाभाविक रूप से क्रूर होती है। सर्कस के जानवरों को हमेशा जंजीरों से जखडकर पिंजरे मैं कैद करके रखते हैं, जहाँ उन्हें पर्याप्त भोजन, पानी और पशु चिकित्सा नहीं मिलती। उन्हें असुविधा के साथ, भ्रामक और पीड़ा देने वाले करतब दिखाने के लिए मजबूर किया जाता है और उन्हें हर उस स्वाभाविक और महत्वपूर्ण आवश्यक्ता से वंचित रखा जाता है जो उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण है। कई जानवर एक ही तरह की अजीबो गरीब हरकत दोहराते रहते हैं जो उनके मानसिक तनाव को दर्शाता है।
जानवरों का शोषण करके उनका इस्तेमाल करना और उन्हें पैसे कमाने का जरिया बनाने वाले प्रजातिवाद, मानव-वर्चस्ववादी विचारधारा का PETA इंडिया विरोध करता है। बोलीविया, बोस्निया और हर्ज़ेगोविना, साइप्रस और ग्रीस जैसे देशों ने सर्कस में जानवरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
सर्कस में जानवरों के इस्तेमाल पर रोक लगाएँ