PETA इंडिया ने आगाह किया है कि “राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्य योजना” में जानवरों से होने वाले टीबी के खतरों को अनदेखा किया जा रहा है
परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा एक नोटिस जारी कर वर्ष 2020-2025 हेतु प्रस्तावित राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन रणनीति कार्य योजना पर लोगों से इनपुट की मांग की गयी थी जिस पर प्रतिक्रिया देते हुए ‘पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने अपने लिखित सबमिशन में कहा है कि जानवरों जैसे हाथियों एवं गौजातीय जानवरों में तपेदिक (TB) की व्यापकता पर बिना काम किए भारत से TB का उन्मूलन संभव नहीं है क्यूंकि यह जानवरों से इन्सानों एवं इन्सानों से जानवरों में फैलने वाला संक्रमण है।
हमने इंगित किया है कि हाल फिलहाल के वैज्ञानिक लेखों के भारत में गौजातियों की कुल जनसंख्या का 7.3% अनुमानित संख्या 2 करोड़ 18 लाख (जिसमे डेयरी उद्योग में इस्तेमाल होने वाल पशु भी शामिल हैं) पशु टीबी से संक्रमित हैं। PETA ने उस भारतीय अध्ययन का भी हवाला दिया है कि एक समूह के 12.6% इंसान गौजातिए जानवरों से हस्तांतरित हुए टीबी से पीड़ित है और इसका मुख्य कारण था कि उन्होने बैक्टीरिया से दूषित कच्चे दूध का सेवन किया था। PETA समूह द्वारा सांझा किए गए तथ्यों में एक अन्य वैज्ञानिक अध्ययन का संदर्भ देते हुए कहा गया है कि कैद में रहने वाले हाथी, सुअर, भेड़, मुर्गियाँ एवं पक्षियों से टीबी फैलाने वाली घटनाओं के संकेत मिले हैं।
प्रत्येक जानवर की टीबी जांच करना अव्यवहारिक माना जाता है (वास्तव में भारत में जानवरों की टीबी जांच होती ही नहीं है), जानवरों में टीबी रोग का निदान मुश्किल है, जानवरों में टीबी का इलाज़ महंगा एवं अप्रभावी है, जानवरों में टीबी की रोकथाम एवं नियंत्रण लगभग असंभव है क्यूंकि इस हेतु किसी भी तरह का प्रभावी टीकाकरण उपलब्ध नहीं है और इस रोग के मनुष्यों में फैलने के संकेत भी है जो इसके बैक्टीरिया को और भी प्रसारित कर सकता है।
जयपुर के आमेर के किले पर हाथीसवारी में इस्तेमाल होने वाले हाथगि टीबी रोग से संक्रमित पाये गए हैं लेकिन आज भी उनसे हाथीसवारी कारवाई जा रही है जिससे पर्यटकों में टीबी संक्रमण होने का बड़ा खतरा है। क्यूंकि यह कानून के घेरे में नहीं आता है इसलिए हमने केंद्रीय क्षय रोग से अनुरोध किया है कि वो मतस्य, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय से कहकर इंसानी मनोरजन गतिविधियों में हाथियों के इस्तेमाल एवं प्रशिक्षण पर रोक लगवाए और इसमे हाथीसवारी या वह सब अन्य गतिविधियाँ भी शामिल हों जहां इंसान वा हाथी एक दूसरे के संपर्क में आते हैं। टीबी के जोखिम के बारे में स्वास्थ मंत्रालय की ओर से कच्चे दूध के सेवन पर एक सार्वजनिक चेतावनी जारी करना भी मददगार होगा क्यूंकि ग्रामीण अंचलों में लोग गायों एवं भैंसों से मिलने वाले कच्चे दूध का अत्यधिक सेवन करते हैं।
वर्ष 2018 में भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड द्वारा जयपुर में बंदी हाथियों पर की गयी जांच रिपोर्ट से खुलासा हुआ था कि 10 प्रतिशत हाथी टीबी संक्रामण से पीड़ित थे। दक्षिण भारत में 600 हाथियों पर किए गए एक वैज्ञानिक अध्ययन में हाथियों में एम ट्यूबरक्लोसिस संक्रमण के संकेत मिले हैं। इन्सानों से हाथियों एवं हाथियों से इन्सानों में हस्तांतरित होने वाले टीबी संक्रमण पर किए गए एक अन्य अध्ययन से स्पष्ट हुआ है हाथियों एवं उनके महावतों के बीच एम ट्यूबरक्लोसिस संक्रमण हस्तांतरित मिला है। इसके अलावा हाल ही में प्रकाशित एक पेपर ने दक्षिण भारत में हाथियों से रिवर्स ज़ूनोसिस के पुष्टि की है।