PETA इंडिया के समर्थकों ने हैलोवीन से पहले ‘Leather Is Dead’ का संदेश किया
हैलोवीन से ठीक पहले, PETA इंडिया के तीन समर्थकों ने ग्रीम रिपर की वेशभूषा पहनकर बेंगलुरु के World War I memorial के सामने प्रदर्शन किया और जनता को चमड़े के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया। इन सभी प्रदर्शनकारियों ने चमड़े के जूते, बैग, बेल्ट और जैकेट को जंजीरों से घसीटा और ‘Leather Is Dead’ का प्रचार किया।
चमड़े के लिए इस्तेमाल होने वाले जानवरों को हर मौसम में बूचड़खानों की भीषण यात्रा के दौरान भोजन और पानी से वंचित कर दिया जाता है। भीड़भाड़ वाले ट्रकों में ठूस ठूस कर भरा जाता है जिसके चलते परिवहन के दौरान उनकी हड्डियाँ टूट जाती हैं, वह कुचल जाते हैं या मौत का शिकार होते हैं। बूचड़खाने पहुंचने पर उन्हें घसीटते हुए अंदर ले जाया जाता है और फिर एक एक करके साथी जानवरों के सामने खुलेआम उनके गले काट दिये जाते हैं। जानवरों की खाल से बनाया जाने वाला चमड़ा जलवायु तबाही में योगदान देता है और इस व्यवसाय में काम करने वाले श्रमिकों को गंभीर स्वास्थ समस्याओं का कारण बनता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, बांग्लादेश के चमड़े के कमाना क्षेत्रों में, चमड़ा उद्योग में काम करने वाले 90% श्रमिक जिनमे बच्चे भी शामिल हैं जहरीले रासयानों के संपर्क में रहने के कारण 50 वर्ष की आयु से पहले ही मर जाते हैं।
वैश्विक वीगन चमड़े के बाजार को वर्ष 2028 तक 80.55 आमेरिकी बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। इस आधुनिक युग में अब पहले से कहीं अधिक तरीके हैं जिसके चलते सिंथेटिक सामग्री से तैयार शानदार वीगन चमड़ा तैयार किया जाता है जैसे अनानास के पत्तों, कॉर्क, फलों के कचरे, पुर्नवीनीकरण किए गए प्लास्टिक, मशरूम, शहतूत के पत्ते, सागौन के पत्ते, मंदिरों से फेंके गए पुराने फूल, नारियल का कचरा और टमाटर के मिश्रण से बनाकर वीगन चमड़ा तैयार हो रहा है।