PETA इंडिया के वैज्ञानिकों ने साबित किया कि फोएटल बोवीन सिरम के इस्तेमाल के बिना शोध को कैसे सुधारा जा सकता है
हर साल दुनिया भर में, अनुमानित 18 लाख अजन्मे बछड़ों को FBS के उत्पादन हेतु मौत के घाट उतार दिया जाता है। यह एक प्रकार से अणुओं का मिश्रण होता है जिसमें हार्मोन, प्रोटीन और विकास कारक शामिल हैं जिन्हें बछड़ों की माताओं को मांस के लिए मारने के बाद उनके खून से प्राप्त किया जाता है। FBS, जिसका उपयोग प्रयोगशालाओं में पेट्री डिश (इन विट्रो) में कोशिकाओं को विकसित करने में मदद के लिए किया जाता है, अनुसंधान में प्रजनन क्षमता की समस्या में योगदान देता है, क्योंकि FBS के बैचों के बीच अंतर इससे विकसित कोशिकाओं में अस्थिरता को बढ़ावा देता है।
Toxicology in Vitro से संबंधित शोध-पत्र में सेल कल्चर मीडिया से संबंधित शोध में मानव फेफड़े की कोशिकाओं का FBS या अन्य पशु-व्युत्पन्न घटकों के प्रयोग के बिना विकास को वर्णित किया गया है। इस परियोजना की सफलता अन्य सेल हेतु सामानता का सफल उदहरण पेश करती है और इसका विट्रो अनुसंधान के क्षेत्र के लिए दूरगामी प्रभाव पड़ता है।
Organisation for Economic Co-operation and Development और European Union Reference Laboratory for Alternatives to Animal Testing जैसे वैज्ञानिक संगठनों द्वारा FBS की जगह अन्य पशु-मुक्त विकल्पों के प्रयोग को बढ़ावा दिया गया है।
वर्तमान में, PETA इंडिया द्वारा अपने इस प्रयोग को अन्य प्रयोगशालाओं के साथ साझा किया जा रहा है। वह अन्य प्रकार के प्रयोगों से भी FBS को हटाने का प्रयास कर रहे हैं और अन्य शोधकर्ताओं को भी ऐसा करने हेतु प्रोत्साहित कर रहे हैं।
साइंस कंसोर्टियम और उसके सदस्यों ने गैर-पशु परीक्षण विधियों को सुधारने और लागू करने के लिए लाखों डॉलर का दान दिया है, जिसमें उनके विकास और सत्यापन के साथ-साथ मुफ्त कार्यशालाओं, वेबिनार और वैज्ञानिकों के लिए प्रशिक्षण के अवसरों का आयोजन शामिल है।
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