PETA इंडिया की शिकायत के परिणामस्वरूप रायपुर वन प्रभाग ने एक सपेरे के खिलाफ़ मामला दर्ज किया

Posted on by Shreya Manocha

एक सजग नागरिक से रायपुर के शिवानंद नगर में एक सपेरे द्वारा कोबरा को एक छोटी सी टोकरी में बंधक बनाकर रखे जाने का वीडियो प्राप्त होने के बाद, PETA इंडिया ने प्रकाश बघेल और तुषार कुंडे नामक दो स्थानीय स्वयंसेवकों के साथ मिलकर कार्य किया और इस कोबरा के अवैध कब्जे, प्रदर्शन और उपयोग के खिलाफ़ POR दर्ज़ कराई। कोबरा ‘वनजीव (संरक्षण) अधिनियम (WPA), 1972’ की अनुसूची I के भाग C के तहत संरक्षित प्रजाति के पशु हैं, जिन्हें बंदी बनाना, अपने पास रखना या चोट पहुंचाना एक गैर-जमानती अपराध है, जिसके खिलाफ़ कम से कम तीन साल की जेल की सजा, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है और न्यूनतम 25,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।

संबंधित मामले में रायपुर वन प्रभाग ने सपेरे के खिलाफ WPA, 1972 की धारा 39, 43, 49 (c), 50 और 58 (c) के तहत POR दर्ज़ किया है। पीड़ित सांप को वन विभाग द्वारा जब्त कर लिया गया है एवं पशुचिकित्सकीय देखभाल और पुनर्वास हेतु रायपुर की एक वन्यजीव संरक्षण सुविधा में ले जाया गया है जहाँ इसे अपनी प्राकृतिक प्रवृत्ति के अनुरूप वातावरण उपलब्ध कराया जाएगा।

सांपों को सपेरों द्वारा WPA, 1972 की अवहेलना करते हुए पकड़ा जाता है और उनके प्राकृतिक आवास से दूर किया जाता है। उनके दांतों को हिंसक रूप से निकाल दिया जाता है; उनके सिर की मांसपेशियों को दर्दनाक रूप से दबाकर उनकी जहरीली ग्रंथियां को खाली किया जाता है; और उनके मुंह को जबरन बंद किया जाता है जिसमें केवल पानी या दूध डालने के लिए थोड़ा सा गैप छोड़ दिया जाता है। इसके बाद उन्हें सांप का खेल या अन्य क्रूर प्रदर्शनों में इस्तेमाल करने हेतु शहरों में ले जय जाता है। बीन की धुन पर सांप का खेल असल में नाच नहीं बल्कि सांप का सपेरे की बीन से डरते हुए अपने मुँह को इधर उधर घुमाना है। बंदी सांपों में से कोई भी बहुत लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाता, और उन्हें धीमी और दर्दनाक मौत का सामना करना पड़ता है।

सांप आकर्षक जीव होते हैं जिनमें शारीरिक चाल-चलन के माध्यम से संवाद करने की क्षमता होती है। इनमें से अजगर स्वयं अपने बच्चों की रक्षा करते हैं, जबकि किंग कोबरा अपने अंडों के लिए घोंसला बनाते हैं। बंदी सांपों को आमतौर पर ऐसे छोटे, अंधेरे डिब्बों या बक्सों में रखा जाता है जहाँ वे अपनी पूरी लंबाई तक फैल भी नहीं पाते और उन्हें अपने प्राकृतिक आवास अर्थात हरे-भरे जंगलों, दलदलों के आज़ादी भरे सुख से वंचित रह जाते हैं।

 

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