PETA इंडिया की अपील के बाद राजस्थान ने नन्हें जीवों की रक्षा हेतु ग्लू ट्रेप पर रोक लगाई
PETA इंडिया की अपील के बाद, राजस्थान पशुपालन विभाग के निदेशक और राज्यकीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड के सदस्य सचिव ने सभी जिला कलेक्टरों और पशु क्रूरता निवारण समिति के अध्यक्षों को एक पत्र लिखकर ग्लू ट्रेप के आयात, निर्माण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध हेतु कार्यान्वयन सुनिश्चित करने और आवश्यक आदेश जारी करने का निर्देश दिया है। इस पत्र में ग्लू ट्रेप के उपयोग के खिलाफ भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड (AWBI) द्वारा प्रसारित संबंधित सलाह के अनुपालन का अनुरोध भी किया गया है। इस पत्र को AWBI के सचिव, राज्यकीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड के माननीय अध्यक्ष और प्रमुख सचिव, पशुपालन विभाग के संयुक्त सचिव एवं संयुक्त निदेशक (जिला स्तरीय पशु क्रूरता निवारण समिति के पदेन सचिव) को भी भेजा गया है। इसके साथ-साथ पत्र को सूचना और आवश्यक कार्यवाही के लिए उद्योग, वाणिज्य और CSR राजस्थान के आयुक्त और भारतीय कीट नियंत्रण संघ को भी भेजा गया है।
PETA समूह ने अपनी अपील में राज्य सरकार से भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड द्वारा जारी किए गए सर्कुलरों को लागू करने के लिए तत्काल कदम उठाने का अनुरोध किया था जिससे ग्लू ट्रेप के क्रूर और अवैध उपयोग पर रोक लगाई जा सके। इससे पहले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, लद्दाख, लक्षद्वीप, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड , ओडिशा, पंजाब, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल सहित 30 राज्य इस प्रकार के सर्क्युलर ज़ारी कर चुके हैं।
ग्लू ट्रेप जैसे क्रूर उपकरणों का उपयोग पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 11 के तहत दंडनीय अपराध है। इन्हें आम तौर पर प्लास्टिक ट्रे या गत्ते की शीट को बेहद मज़बूत ग्लू से ढककर बनाया जाता हैं जो अक्सर गैर-लक्ष्य जानवरों को फँसाते हैं। इस प्रकार के ट्रेप “वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972” का उल्लंघन है जिसके अंतर्गत संरक्षित देसी जंगली प्रजातियों का “शिकार करना” पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है। इस प्रकार के ट्रेप में फंसे चूहे या अन्य जीव भूख-प्यास या अत्यंत पीड़ा के चलते अपनी जान गवा सकते हैं। कुछ जीव इसका ग्लू नाक या मुंह फंस जाने के कारण दम घुटने से मर जाते हैं या अन्य आज़ादी की छटपटाहट में अपने ही अंगों को स्वयं कुतरने लगते हैं जिसके चलते खून की कमी के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। इतने पर भी जो जीव जीवित रह जाते हैं उन्हें ट्रेप सहित कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है या इन्हें कुचलने और डूबने जैसी अधिक बर्बर मौत का सामना करना पड़ता है।
PETA इंडिया उल्लेखित करता है कि चूहों व छुछुंदरों की जनसंख्या को नियंत्रित करने का एकमात्र दीर्घकालिक तरीका किसी क्षेत्र को उनके लिए अनाकर्षक या दुर्गम बनाना है। काउंटर की सतहों, फर्श और अलमारियाँ को साफ रखकर उनके भोजन के स्रोतों को समाप्त करना और भोजन को च्यू-प्रूफ कंटेनरों में स्टोर करना भी एक अच्छा उपाय है। इन नन्हें जीवों को बाहर निकालने के लिए कूड़ेदानों को सील करें और अमोनिया में डूबाकर रुई या कपड़े का एक गोला रखे क्योंकि इन्हें गंध से सख्त नफरत होती हैं। जीवों को बाहर निकलने हेतु कुछ दिन देने के बाद, प्रवेश बिंदुओं को फोम सीलेंट, स्टील वूल, हार्डवेयर क्लॉथ या मेटल फ्लैशिंग का उपयोग करके सील करें जिससे यह वापस अंदर न आ सके। किसी भी नन्हें जीव को घर से निकालने हेतु मानवीय पिंजरे का उपयोग किया जाना चाहिए और उन्हें कम दूरी के भीतर छोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि अपने प्राकृतिक क्षेत्र से बाहर स्थानांतरित होने वाले जानवरों को पर्याप्त भोजन-पानी खोजने में परेशानी होती है जिसके परिणामस्वरूप इनकी मृत्यु भी हो सकती है।
ग्लू ट्रेप एक स्थायी समाधान नहीं हैं क्योंकि वे समस्या की जड़ से निपटने में अक्षम हैं। यानि, ग्लू ट्रेप के कारण खाली हुई जगह पर और अधिक चूहों का प्रजनन होता है क्योंकि फूड सप्लाई में थोड़ी सी वृद्धि उन्हें अधिक प्रजनन के लिए प्रेरित करती है। इसका परिणाम एक भयानक हत्या चक्र है जिसमें फंसकर अनेक पशु अपनी जान गवां देते हैं।