PETA इंडिया, FIAPO, और Aashray Foundation के डरे हुए ‘बंदरों’ की टोली, विदेशी पशु प्रयोगकर्ताओं और अन्य क्रूरता से बचने की गुहार लगाई

Posted on by Erika Goyal

हाल ही में, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत ‘रीसस मकाक’ (बंदरों की एक प्रजाति) को 50 वर्षों से प्रदान की गई सुरक्षा के हटने के बाद, PETA इंडिया, फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गेनाइजेशनस (FIAPO) और आश्रय फाउंडेशन के समर्थक, शुक्रवार को बंदर के बड़े-बड़े मुखौटे पहनकर एवं अपने हाथों में साइन पकड़कर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से रीसस मकाक को प्रदान की गयी रक्षा बहाल करने का आग्रह किया। इस प्रकार का संरक्षण प्राप्त होने पर, रीसस मकाक को परीक्षण, मांस, या पालतू पशु उद्योग एवं अन्य प्रकार के शोषण से बचाया जा सकेगा।

PETA इंडिया ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को लिखे अपने पत्र में सबूतों के साथ उल्लेखित किया कि कुछ क्रूर विदेशी बंदर आयातक भारत की रीसस मकाक आबादी को चुराने का प्रयास कर रहे हैं। विशेष रूप से, 11 मई 2022 को वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) द्वारा प्रकाशित एक कार्यालय ज्ञापन में Laboratory Corporation of America Holdings द्वारा भारत से पशु परीक्षणों हेतु बंदरों का निर्यात करने के संभावित प्रयासों पर प्रकाश डाला गया था। इसके परिणामस्वरूप, WCCB ने भारत से प्राइमेट्स के अवैध निर्यात को रोकने के लिए अपने क्षेत्रीय अधिकारियों को स्थिति के प्रति सचेत भी किया था। इस कार्यवाही से स्पष्ट ज़ाहिर है कि  भारतीय रीसस मकाक को बड़े खतरे का सामना करना पड़ रहा है।

रीसस मकाक हिंदू धर्म में पूजनीय होने के साथ-साथ, लगातार फल खाने के कारण, उनके बीज फैलाकर स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाते हैं और उनकी अनुपस्थिति जंगलों के लिए हानिकारक हो सकती है। वन्यजीव डीलरों द्वारा अपने प्राकृतिक आवासों से चुराए गए बंदरों को अक्सर छोटे-छोटे बक्सों में ठूंस-ठूंसकर बंद किया जाता है और विमानों के अंधेरे, भयानक कार्गो डिब्बे में 30 घंटे तक की यात्रा करने के लिए जबरन बाध्य किया जाता है। इस प्रकार की क्रूर कैद और परिवहन का तनाव उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकता है, जिससे भारत और दुनिया भर में ज़ूनोटिक रोग फैलने का खतरा बढ़ सकता है। प्रयोगशालाओं में, बंदरों को आमतौर पर अकेले रखा जाता है और लोहे के छोटे-छोटे पिंजरों में कैद किया जाता है। यहाँ पशु परीक्षणों के दौरान, इन्हें अत्यंत क्रूरता का सामना करना पड़ता है जिसमें पशुओं को मारना-काटना, ज़हर देना, अपंग बनाना, नशीली दवाओं का आदी बनाना, करेंट लगाना, और अंततः मौत के घाट उतारना शामिल है।

आज ही भारत के बंदरों की सहायता करें