PETA इंडिया की कार्यवाही के बाद दो तोतों, एक पहाड़ी मैना और एक रीसस मकाक (बंदर) को बचाया गया

Posted on by Erika Goyal

एक पशु हितैषी नागरिक से यह जानकारी प्राप्त होने के बाद कि यरवदा की झुग्गी बस्ती में एक रीसस मकाक (बंदर) को जंजीरों से कैद करके रखा गया है, PETA इंडिया ने इस बंदर को बचाने के लिए RESQ चैरिटेबल ट्रस्ट और पुणे वन विभाग के साथ मिलकर कार्य किया। इस घटना स्थल पर पहुँचने पर, अधिकारियों को दो एलेक्जेंड्रिन तोते और एक पहाड़ी मैना भी मिली जो कि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (WPA) के तहत संरक्षित प्रजातियों की सूची में शामिल हैं। इस बस्ती में, जहां पीड़ित बंदर को जंजीरों से बांधकर गया था, ठीक उसके पास ही पक्षियों को भी छोटे-छोटे पिंजरों में कैद करके रखा गया था। इन चारों पशु-पक्षियों को तात्कालिक रूप से वन विभाग द्वारा जब्त कर लिया गया था।

इन पशु-पक्षियों को रेस्कयू के बाद, स्वास्थ्य जांच, उपचार एवं अस्थायी पुनर्वास हेतु RESQ चैरिटेबल ट्रस्ट में भेजा गया है और इन्हें पूरी तरह ठीक होने के बाद प्रकृति में छोड़ दिया जाएगा। पहाड़ी मैना और एलेक्जेंड्राइन तोते वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA) की अनुसूची I और II के तहत संरक्षित प्रजाति की श्रेणी में आते हैं। अनुसूची I के अंतर्गत किसी भी संरक्षित प्रजाति के पशु को खरीदना, बेचना या पालना WPA की धारा 9, 39 और 51 के तहत अपराध है और इसके लिए तीन से सात साल की जेल की सजा और कम से कम 25,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। PETA इंडिया ने महाराष्ट्र वन विभाग को पत्र लिखकर संबंधित अपराधियों के खिलाफ़ WPA की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज करने की मांग की है।

पक्षियों के अवैध व्यापार में, अनगिनत पक्षियों को उनके परिवारों से अलग कर दिया जाता है और हर उस चीज़ से वंचित कर दिया जाता है जो उनके लिए प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण है ताकि इन पक्षियों को “पालतू जीवों” के रूप में बेचा जा सके या फर्जी तौर पर, भाग्य-बताने वाले के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। नन्हे-नन्हे पक्षियों को अक्सर उनके घोंसलों से जबरन उठा लिया जाता है जिस कारण अन्य पक्षी भी घबरा जाते हैं। इस दौरान पिंजरों से निकलने का प्रयास करते हुए कई पक्षी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और अपनी जान भी गवां देते हैं। पकड़े गए पक्षियों को छोटे-छोटे पिंजरों में बंद किया जाता है, एवं अनुमानित तौर पर इनमें से 60% पक्षी टूटे हुए पंख और पैर एवं प्यास या अत्यधिक घबराहट के कारण रास्ते में ही मर जाते हैं। इसके बाद भी जो पक्षी बचा जाते हैं उन्हें अंधेरे पिंजरों की कैद और अकेले जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है और वह कुपोषण, मानसिक बीमारियों एवं तनाव का सामना करते हैं और दुर्व्यवहार से पीड़ित होते हैं।

लोगों के घरों में “पालतू पशुओं” के रूप में रखे गए या नाच करवाने के लिए मजबूर किए जाने वाले बंदरों को अक्सर जंजीरों से बांध दिया जाता है या छोटे पिंजरों में कैद करके रखा जाता है। इंसानों के मनोरंजन के करतब सिखाने के लिए उन्हें आम तौर पर पिटाई और भोजन से वंचित करके, प्रताड़ित करके और डर के द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है, और वह स्वयं का बचाव न कर सकें इसलिए उनके दांत नोच लिए जाते हैं। 1998 में, केंद्र सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत एक अधिसूचना जारी कर कहा था कि बंदरों और जंगली पशुओं की कई अन्य प्रजातियों को प्रदर्शन करने वाले पशुओं के रूप में प्रदर्शित या प्रशिक्षित नहीं किया जाना चाहिए।

पशु क्रूरता के खिलाफ़ कुछ महत्वपूर्ण सुझाव