प्रजातिवाद क्या है?

Posted on by PETA

क्या आपने कभी सोचा है कि एक कुत्ते के साथ हुए दुर्व्यवहार के बारे में पढ़कर तो  लोगों की आँखों में आसूं आ जाते हैं लेकिन मुर्गी की टंगड़ी खाकर उन्हें ज़रा भी पछतावा क्यूँ नहीं होता और इन्हीं लोगों की वजह से रोज अनेकों मुर्गियों को दर्दनाक मौत का शिकार क्यूँ होना पड़ता है ?

इसका उत्तर “प्रजातिवाद” है। यह एक गलत धारणा है कि इस दुनिया में कोई एक प्रजाति किसी दूसरी प्रजाति की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। हमारे समाज में इस गन्दी विचारधारा का गहरा असर दिखाई देता है और इसके परिणामस्वरूप बहुत से नकारात्मक परिणाम हमारे सामने आते हैं।

हमने बचपन से यह देखा है की कुछ प्रजातियों को बड़ी करुणा और देखभाल की नजर से देखा जाता है जबकि कुछ को बेकार समझा जाता है और यह सब इंसान की  प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है।

जानबूझकर या अनजाने में, माता-पिता, शिक्षक, मीडिया और अपना समाज बच्चों को यह संदेश देता है कि, कुत्ते और और बिल्ली के बच्चे हमारे “दोस्त” होते हैं, मछली और मुर्गियां “भोजन” हैं, चूहों और छछूंदर “नुकसान पहुंचाने वाले जीव” होते हैं। अधिकांश बच्चों को यह भी सिखाया जाता है कि मनुष्य की इच्छाएँ, ज़रूरतें, और रुचियाँ चाहे कितनी भी तुच्छ क्यों न हों उन्हें पूरा करने के लिए दूसरी प्रजातियों का इस्तेमाल किया जा सकता है या उनसे छीना जा सकता है।

परिणामस्वरूप, हम अपने ही विवेक को अनदेखा करना सीख जाते हैं, जो हमें यह सिखा देता है कि दूसरों के साथ गलत व्यवहार करना बुरी बात नहीं है। हम यह मान लेते हैं की प्रयोगशालाओं में जानवरों को कैद करके उन पर जानलेवा प्रयोग करना और उन्हें मौत के घाट उतार देना हमारा “अधिकार” है क्योंकि ऐसा करके हम समाज की मदद कर रहे हैं। हम यह भी स्वीकार कर लेते हैं गायों के दूध से बनी आइसक्रीम खाना ठीक है, क्योंकि गाय का दूध उसके बछड़े की देखभाल से ज्यादा हमारे मिठाई खाने की इच्छा को तृप्त करने के लिए जरूरी है। हमारे स्वेटर और स्कार्फ के लिए भेड़ के शरीर की ऊन चोरी करना ठीक है, तकिए के लिए बत्तख के पंखों का इस्तेमाल करना भी ठीक है और सजावट और मनोरंजन के हेतु मछलियों को छोटे एकवेरियम में रखना भी सही है। पानी में काँटा डालकर मछली पकड़ना हमें मजेदार लग सकता है, लेकिन हमें मिलने वाली इस ख़ुशी से भी ज्यादा उस मछली की पीड़ा है जिसके होंटो को छेदकर वह काँटा उसे पकड लेता है और झटके से उसे पानी से बहार निकलता है जहाँ वे सांस ले नहीं पाती

इंसान की जो भी सोच हो लेकिन सच तो यह है की हर प्रजाति प्यार और सम्मान की हकदार है। हम में से अधिकांश लोग जिंदगी भर प्रजातिवाद के चलते अपने फ़ायदों के लिए दूसरी प्रजातियों का इस्तेमाल करते आए हैं लेकिन फिर भी हम अपनी इस विनाशकारी विचारधारा को समाप्त कर सकते हैं।

अन्य प्रजातियों के बारे में हम क्या सोच रखते हैं, अपने इस नजरिए को बदलने की शुरुवात हम आज से ही कर सकते हैं। जानवर भी हमारी ही तरह पीड़ा एवं दर्द का अनुभव करते हैं इसीलिए हमें उनके साथ किसी निर्जीव या प्राणहीन वस्तु की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए। उन्हें वस्तु की तरह संबोधित न करके प्राणी की तरह संबोधित करना चाहिए।

प्रजातिवाद को अस्वीकार करने का मतलब हमारे व्यक्तिगत नजरिये को बदलना है और जानवरों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले लोगों की विचारधारा को भी बदलना। जानवरों पर प्रयोग किए जाने का विरोध का सबसे अच्छा तरिका है कि हम वही चींजे खरीदे जो जानवरों पर बिना परिक्षण किये तैयार की जाती हैं। पशुओं से उत्पन्न खाद्य पदार्थों को त्यागकर वीगन जीवनशैली अपनाना यह भी एक संकल्प है। वीगन जीवनशैली अपनाने के लिए PETA इंडिया के पास कई सारे संसाधन है जैसे कि मुफ्त वीगन स्टार्टर किट आदि जिस हेतु PETA इंडिया आपकी मदद कर सकता है।  जब हम अन्य प्रजातियों को इन्सानों की भांति भाव-भावनाओं वाले प्राणी के रूप में देखना शुरू करेंगे, तब ही हम उनका शोषण करना बंद कर सकेंगे जैसे उनकी त्वचा या फर या ऊन के लिए उन्हें बेदर्दी से मौत के घाट उतार देना। और यही शुरुवात होगी गैर पशु प्रयुक्त वस्त्र पहनने की। ठीक इसी तरह चिड़ियाघरों में और सर्कस का बहिष्कार करके हम वहाँ पीड़ा सहने वाले जानवरों की मदद कर सकेंगे।

आज यह जानने और समझने का सही वक्त है कि सभी जीव दर्द, पीड़ा, व प्यार महसूस कर सकते हैं और उनके साथ सम्मान और करुणा के साथ व्यवहार करना आवश्यक है। हम प्रजातिवाद को अस्वीकार कर सभी जानवरों के प्रति निष्ठा और सम्मान भरा व्यवहार कर सकते हैं, और इसके लिए सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि जानवरों को मानव शोषण से मुक्त रहने का अधिकार है।

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