हमें सभी महिलाओं के हक़ में आवाज़ उठानी चाहिए
सिर्फ़ इंसानीमहिलाओं ने ही दशकों से उत्पीड़न, दुर्व्यवहार एवं क्रूरता का सामना नहीं किया एवं सिर्फ़ इन्ही की प्रजनन प्रणाली को विनियमित और नियंत्रित किया गया बल्कि इसी तरह कई मादा पशुओं का भी शोषण किया जाता है। इस “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” के उपलक्ष्य में हमें नस्ल, धर्म, आर्थिक स्थिति और प्रजाति का बंधन तोड़ते हुए, सभी के हक़ में आवाज़ उठानी चाहिए।
डेयरी उद्योग द्वारा उपयोग की जाने वाली गायों को कई बार जबरन गर्भवती किया जाता है और इस क्रूर प्रक्रिया को विदेशों में “rape racks” भी कहा जाता है। इन गायों के बछड़ों को पैदा होते ही उनकी माँ से अलग कर दिया जाता है ताकि इनके हिस्से का दूध चुराकर इंसानों को बेचा जा सके। मादा मुर्गियों को भी अपनी प्रजनन क्षमता के कारण इस प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है। इन मुर्गियों को अक्सर इतने तंग पिंजरों में क़ैद किया जाता है जिनमें वह ठीक प्रकार से अपने पंख भी नहीं फैला पाती, उनके प्रजनन चक्र में कृत्रिम रूप से बदलाव किया जाता है, और लगभग 18 महीने का होने पर एवं प्रजनन शक्ति समाप्त होने के बाद इन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है। इसी तरह कई गर्भवती सूअरों को लोहे के ऐसे तंग पिंजरों में क़ैद किया जाता है जिनमें वह ठीक तरह से खड़े भी नहीं हो पाते।
किसी भी जीवित एवं सजीव प्राणी का उसकी जाति या लिंग के आधार पर शोषण नहीं किया जाना चाहिए एवं सभी को स्वतंत्र रूप से शांतिपूर्ण जीवन जीने का पूरा हक़ है। लेकिन मानवीय पूर्वाग्रहों के कारण, खरगोश जैसे जिज्ञासु एवं बुद्धिमान जानवरों का प्रयोगशालाओं में शोषण किया जाता है, बकरियों और अन्य जानवरों को बूचड़खानों में क्रूरतापूर्ण ढंग से काटकर मौत के घाट उतारा जाता है एवं केवल हमारे जूतों के लिए इन बेज़ुबान प्राणियों को भीड़भाड़ वाली गाड़ियों में परिवाहित किया जाता है और कुत्तों एवं बिल्लियों को सड़क पर लावारिस छोड़ दिया जाता है।
आइये हम सब मिलकर सभी प्रजातियों के सजीव प्राणियों के साथ होने वाले शोषण के खिलाफ़ आवाज़ उठाए।
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