Anonymous for Animal Rights के एक गवाह ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना स्थित Diamond Group, Mulpuri Group, Sakku Group, SH Group, Skylark Hatcheries, SR Group, Sri Lakshmi Narasimha Poultry Farms Private Limited, Suguna Foods, और Venkateshwara Hatcheries Private Limited की प्रमुख हैचरी और फ़ार्मों का दौरा किया जहाँ मुर्गियों को कैद कर उनसे अंडा और मांस का उत्पादन किया जाता है। इस गवाह ने अपने द्वारा इकट्ठा किए गए सभी सबूतों को PETA को सौंप दिया। इनमें से कई कंपनियां मांस या अंडा उद्योग के प्रमुख नाम हैं, जिससे यह पता चलता हैं कि मुर्गियों के साथ यह दुर्व्यवहार देश भर में नियमित रूप से किया जाता है। इन क्रूरतापूर्ण सबूतों के अनुसार, इन फ़ार्मों में एक ही सिरिंज से कई-कई मुर्गियों को जबरन गर्भवती किया जाता है, चूजों की चोंच को तेज-गर्म ब्लेड से काटा जाता है, और एक ही पिंजरे में इतने पक्षियों को कैद किया जाता है कि वे हिल भी न सकें। प्रत्येक फ़ार्म पर हर प्रकार का दुर्व्यवहार तो नहीं देखने को मिला, लेकिन सभी जगह अलग-अलग प्रकार की भारी क्रूरता देखने को मिली। विस्तृत रिपोर्ट को यहाँ पढ़ें।
लेयर एवं ब्रॉयलर फार्मों और हैचरी में इन्क्यूबेटर का प्रयोग करके चूजों को अंडों से कृत्रिम ढंग से निकाला जाता है जिसके कारण वह अपनी मां से कभी नहीं मिल पाते। फ़ार्म कर्मचारियों द्वारा सभी मुर्गियों से जबरन अंडे दिलवाने और ज़रूरत न रहने पर उनकी हत्या कर देने का एक भयानक चक्र चलाया जाता हैं जिसमें मुर्गियों कि अनेकों पीड़ियों को अपनी जान गवानी पड़ती है। कर्मचारियों द्वारा मादा चूजों को नर चूजों से अलग कर दिया जाता है और इन्हें अंडा उद्योग में “बेकार” समझा जाता है। इन नर चूजों को बेहद हिंसक रूप से मार दिया जाता है या इनकी चोंच को तेज-गर्म ब्लेड से काटा दिया जाता है। ऐसा इन्हें एक-दूसरे को घायल करने से रोकने के लिए किया जाता है, क्योंकि कर्मचारियों द्वारा एक ही पिंजरे में बहुत से जानवरों को भर दिया जाता है जिससे वह आक्रामक हो जाते हैं। प्रजनन के लिए उपयोग की जाने वाली मुर्गियों को उनके गंदे, भीड़-भाड़ वाले पिंजरों से बाहर निकाल कर एक ही सिरिंज का उपयोग करके कृत्रिम रूप से गर्भाधान किया जाता है और फिर उन्हें उनके भीड़ और गंदगी से भरे तार से बने जालों में दोबारा भर दिया जाता है। इन बुद्धिमान, संवेदनशील माताओं को अपने बच्चों का पोषण करने, ताजी हवा में सांस लेने या भोजन ढूंढने का कोई अवसर नहीं मिलता।
यौन हिंसा सहने के लिए मजबूर किया जाता है
अंडा और मांस उद्योग में मुर्गों को स्वाभाविक रूप से संभोग नहीं करने दिया जाता। इसके बजाय, कर्मचारी मुर्गों का शारीरिक शोषण करते हैं, उन्हें वीर्य पैदा करने के लिए मजबूर करते हैं और नियमित रूप से अस्वच्छ उपकरणों से उनके शारीरिक अंगों के साथ छेड़खानी करते हैं। Diamond Group के ब्रॉयलर फार्म में, जब कर्मचारी मुर्गों का वीर्य निकालते हैं या जब वह तार के पिंजरों से मुर्गियों को जबरन खींचकर उन्हें वीर्य का इंजेक्शन लगाते है तो उनमें से कोई भी दस्ताने नहीं पहनता। इसके बाद उन्हें फिर से भीड़ और गंदगी से भरे तार से बने जालों में दोबारा भर दिया जाता है जिसमें कई पीड़ित मुर्गों को एक साथ कैद रखा जाता है। इस क्रूर और हिंसक प्रक्रिया को तब तक दोहराया गया जब तक कि हर मुर्गी का शोषण नहीं किया गया हो।
प्राकृतिक रूप से अंडों को सींचने, उनका ध्यान रखने और अपने बच्चों से मिलने तक नहीं दिया जाता
भले ही मुर्गियां अपने चूजों के साथ संवाद कर सकती हैं लेकिन अंडा और मांस उद्योग में जानवरों को कभी भी अपने अंडों को सींचने या उनसें भावनात्मक संबंध बनाने का मौका नहीं मिलता है। इसकी जगह मुर्गियों के अंडो को बड़े-बड़े इन्क्यूबेटरों में कृत्रिम ढंग से सींचा जाता है। लेकिन मुर्गियों को अपने बच्चों को स्वाभाविक रूप से इनक्यूबेट करने से रोकना चूजों के विकास में बाधा डालता है। SR Group की ब्रॉयलर हैचरी में यांत्रिक इन्क्यूबेटरों का तापमान इतना अधिक हो गया कि जांचकर्ता ने चूजों के शरीर से अंगों को बाहर निकलते हुए देखा। Sakku Group की इन्क्यूबेटरों में स्वचालित बैकअप सिस्टम हैं जिसे कंपनी के अधिकारियों द्वारा मैन्युअल रूप से नियंत्रित किया जाता है, लेकिन कर्मचारियों के अनुसार, तापमान फिर भी बढ़ जाता है जो चूजों में विकृति का कारण बनता है। ऐसे चूजों को कर्मचारियों द्वारा बर्बर तरीके से मौत के घाट उतार दिया जाता हैं।
बर्बर बैटरी पिंजरों में कैद रखा जाता है
मुर्गियाँ को अपना जीवन छोटे-छोटे तार से बने “बैटरी” पिंजरों तक सीमित रखने के लिए मजबूर किया जाता हैं जो मल से भरे होते हैं और इतने तंग होते हैं कि मुर्गियाँ अपना एक पंख भी नहीं हिला सकती। इन आदतन साफ-सुथरे जानवरों के पास एक-दूसरे पर पेशाब और शौच करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता, जिससे बड़े पैमाने पर बीमारी फैलने का ख़तरा बना रहता है। बीमारी को रोकने के लिए, किसान आमतौर पर मुर्गियों को एंटीबायोटिक दवाओं से पंप करते हैं। Mulpuri Group’s layer में एक प्रत्यक्षदर्शी ने देखा कि नौ मुर्गियों को एक ही पिंजरे में ठूसा गया है। जब भी कोई कार्यकर्ता पिंजरे के पास पहुंचता या इसे हाथ लगाता, तो मुर्गियां घबरा जातीं और स्पष्ट रूप से व्यथित हो जातीं।
बैटरी पिंजरों का तार मुर्गियों के पंखों को रगड़ता है, उनकी त्वचा को जलता है और उनके पैरों को मोड़ देता है। Sri Lakshmi Narasimha’s farm में, प्रत्यक्षदर्शी ने आंखों और त्वचा के संक्रमण, बालों के झड़ने, और शारीरिक अंगों की सूजन से पीड़ित मुर्गियों को पिंजरों में कैद पाया, जिसमें मलमूत्र के ढेर के बीच खड़े होने के लिए कोई जगह नहीं थी। कई मुर्गियाँ प्रतिदिन मर जाती हैं, और कर्मचारी अक्सर शवों को पिंजरों में छोड़ देते हैं, जिसके कारण बाकी घायल मुर्गियों को शवों के साथ रहना पड़ता हैं।
मुर्गियों को भूखा रखना जिससे वह अधिक से अधिक अंडे दें
Sakku Group के अंडा फ़ार्म में, प्रत्यक्षदर्शी ने 40-सप्ताह की मुर्गियों के एक समूह को “जबरन मोल्टिंग” से गुजरते हुए देखा, जो एक क्रूर तकनीक है जिसमें आम तौर पर मुर्गियों के शरीर को झटका देने के लिए उन्हें भूखा रखा जाता हैं जिससे वह अधिक से अधिक अंडे दें। इसके चलते कई मुर्गियाँ अपने पंख और अपने शरीर का अधिकांश वजन खो देती हैं, और कुछ मर भी जाती हैं। इस फार्म के पक्षियों के पंख मिट्टी से भरे थे, और वे एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर लड़ रहे थे। वर्ष 2011 में, भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड ने भारत के सभी पोल्ट्री फार्मों को यह कहते हुए जबरन मोल्टिंग बंद करने का आदेश दिया कि यह प्रथा भारत के पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 का उल्लंघन करती है, और यह एक दंडनीय अपराध है।
कृपया नीचे दी गई अपील पर हस्ताक्षर करके मुर्गियों की मदद करने के हमारे प्रयास को और मज़बूत करें, जिसे एकत्र करके मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री जी को भेजा जाएगा।
अपील:
माननीय मंत्री जी,
भारत में अंडा उद्योग में इस्तेमाल की जाने वाली मुर्गियों की दुर्दशा के बारे में जानकर मैं बहुत परेशान और दुखी हूं। इस प्रकार की प्रणालीगत हिंसा और यातना किसी भी प्रजाति को नहीं दी जानी चाहिए।
मुर्गियों को अमानवीय रूप से छोटे, भीड़-भाड़ वाले बैटरी पिंजरों में बंद कर दिया जाता है, जहाँ वे एक पंख भी नहीं फैला सकती हैं और अक्सर हताशा में एक-दूसरे को चोंच मारती हैं। अंडा उद्योग में “जबरन मोल्टिंग” का सहारा लिया जाता है जिसमें मुर्गियों के शरीर को झटका देने के लिए उन्हें भूखा रखा जाता हैं जिससे वह अधिक से अधिक अंडे दें और मादा चूजों को नर चूजों से अलग कर दिया जाता है जिन्हें डूबाकर, जलाकर या कुचलकर मार दिया जाता है। जब मुर्गियों के अंडे का उत्पादन कम हो जाता है, तो उन्हें ट्रकों में फेंक दिया जाता है और बूचड़खानों में ले जाया जाता है, जहाँ उन्हें अपने साथियों के सामने मार दिया जाता है।
इन जानवरों को आपकी मदद की सख्त जरूरत है। मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप अपने अधिकार का उपयोग करके यह सुनिश्चित करें कि चूजों की अवैध हत्या के खिलाफ़ पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (PSA) अधिनियम, 1960 और भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के अंतर्गत कार्यवाही हो। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि भारत में कम से कम ovo sexing तकनीक लागू की जाए जिसके द्वारा विकास के प्रारंभिक चरण में ही नर भ्रूण वाले अंडे की पहचान की जा सकती है और इससे कई चूजों को भयानक मौत से बचाया जा सकता है।
मैं आपसे निवेदन करता हूं कि आप भारतीय अंडा कंपनियों से भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड (AWBI) द्वारा 16 फरवरी 2012 को जारी सर्कुलर पर ध्यान देने का आग्रह करें, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मुर्गियों को बैटरी के पिंजरों में कैद रखना PCA अधिनियम, 1960 की धारा 11(1)(e) का उल्लंघन है।
पक्षियों को खुला और साफ वातावरण प्रदान करने के साथ-साथ उनकी चोंच काटने पर भी रोक लगाए। यह PCA अधिनियम, 1960 की धारा 3 और 11(1)(l) का स्पष्ट उल्लंघन है।
साथ ही, अंडा कंपनियों को AWBI की 9 मार्च 2011 को ज़ारी एडवाइजरी पर ध्यान देने हेतु बाध्य किया जाना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि मुर्गियों को ज़्यादा दिनों तक भोजन से वंचित रखना PCA अधिनियम, 1960 के तहत पशुओं के प्रति क्रूरता है, और इसलिए यह एक दंडनीय अपराध है।
किसी भी जीवित प्राणी के साथ ऐसा शोषणपूर्ण और पीड़ादायक व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए इसलिए कृपया सुनिश्चित करें कि मुर्गियाँ और चूजों को इस तरह की क्रूरता का सामना न करना पड़े।
आभार सहित,
[आपके हस्ताक्षर]