भारत में, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के अंतर्गत जानवरों को एक-दूसरे से लड़ने के लिए उकसाना अवैध है लेकिन फ़ौना पुलिस द्वारा एकत्र किए गए सबूतों व फ़ुटेज से पता चलता है पिट बुल व अन्य मिश्रित नस्ल के कुत्तों को हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ दिल्ली और जम्मू जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में अवैध रूप से आयोजित डॉगफ़ाईट्स में इस्तेमाल किया जाता है।

फ़ौना पुलिस द्वारा PETA  इंडिया के साथ साझा की गयी फुटेज में कुत्तों को एक-दूसरे पर आक्रमण करते और एक-दूसरे के चेहरे, गले, धड़ और पैरों को नोचते काटते हुए दिखाया गया है। ये भयानक झगड़े दो-दो घंटे तक चलते हैं जिससे सामान्य चोटों के मुक़ाबले गंभीर चोट लगना, गहरे घाव और हड्डियां टूट जाना शामिल हैं। इस खूनी खेल में थकावट के चलते कुत्ते अपना बचाव करने तक की हिम्मत नहीं जता पाते, कुछ रिंग में मर जाते हैं, जबकि अन्य जल्द ही थकावट और चोटों के कारण दम तोड़ देते हैं। खूनी लड़ाई खत्म होने के कुछ दिन बाद भी खून की कमी, सदमे, निर्जलीकरण, थकावट, या संक्रमण के कारण उनकी मौत हो जाते है।

 

हार यानि खतरनाक मौत

जो कुत्ते लड़ाई हार जाते हैं या लड़ने से इनकार कर देते हैं, उन्हें दूसरे कुत्तों द्वारा लड़ाई का अभ्यास करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है या उनके मालिकों द्वारा मार दिया जाता है। उदाहरण के लिए, पंजाब में अपने ही पिट बुल को गोली मारकर मारने वाले एक व्यक्ति के वीडियो आने के बाद, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था, PETA इंडिया ने स्थानीय पुलिस का साथ मिलकर उक्त व्यक्ति के खिलाफ “भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 429” के तहत मामला दर्ज करवाया था। साथ ही PCA अधिनियम, 1960 की विभिन्न धाराओं के तहत, और अपराधियों को पकड़ने में मदद करने के लिए, मामला दर्ज किया गया था।

सामुदायिक कुत्तों और वन्यजीवों पर अभ्यास

लड़ाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कुत्तों को अक्सर सामुदायिक कुत्तों के साथ अभ्यास मैच कराकर प्रशिक्षित किया जाता है, जबकि  दोनों के बीच किसी तरह की कोई समानता नहीं है,  साथ ही साथ एशियाई पाल्म सिवेट, लोमड़ियों, तेंदुओं, जंगली सूअर और अन्य जंगली जानवरों को मारने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है जो कि वन्यजीव  (संरक्षण) अधिनियम, 1972 का उल्लंघन करते हैं।

 

नन्हें कुत्तों को लड़ाके कुत्तों में परिवर्तित करना

प्रशिक्षण तब शुरू होता है जब कुत्ते अभी भी छोटी उम्र के होते हैं और जैसे-जैसे वे परिपक्व होते हैं, उन्हें इतना आक्रामक होने के लिए उकसाया जाता है कि जब उनकी लड़ाई होती है तो वह इतना हिंसक रूप धारण कर लेते हैं कि उनको आपस में छुड़ाने के लिए लकड़ी डंडों का इस्तेमाल करना पड़ता है।

 

क्रूरता पर सट्टा लगाना

इन कुत्तों को यह खूनी खेल ख्लेने के लिए मजबूर क्यूँ किया जाता है। पैसे के लिए। डॉगफाइटिंग एक जुआ है जिसपे लोग हार जीत पर सट्टा यानि जुआ लगाते हैं और मौत का यह खेल और  क्रूरता ही इस खेल की शर्त है।

पिट बुल- इस खेल के लिए सबसे ज्यादा शोषण सहने वाली प्रजाति है।

पिट बुल मूल रूप से बैल और भालू का शिकार (मनोरंजन का एक क्रूर रूप जिसमें कुत्तों को एक बंदी बैल या भालू पर हमला करने के लिए उकसाया जाता है) के लिए पाला गया था। पाकिस्तान में अभी भी भालू का शिकार होता है। ऐसे कुत्तों को अब आमतौर पर भारत में अवैध लड़ाई के लिए पाला जाता है और उन्हें भारी जंजीरों में बांधकर रखा  जाता है और कुत्तों पर हमला करवाया जाता है। कई लोग दर्दनाक शारीरिक विकृति को सहन कर पाते  जैसे कि उनके कान काटना – यह  एक अवैध प्रक्रिया जिसमें कुत्ते के कान का एक हिस्सा काट दिया जाता है ताकि लड़ाई के दौरान दूसरा कुत्ता उसे कान से पकड़ कर काट ना ले । यह सारी क्रूरता उनके लिए डरावनी है जिसके चलते वह अक्सर दोस्त और दुश्मन के बीच अंतर नहीं कर पाते।

इन्सानों को भी इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

कुत्ते अकेले नहीं हैं जो कुत्ते की लड़ाई में निहित क्रूरता का खामियाजा भुगतते हैं।

पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (कुत्ते के प्रजनन और विपणन) नियम, 2017 के अनुसार, कुत्ते के प्रजनकों को अपने संबंधित राज्य पशु कल्याण बोर्ड के साथ खुद को पंजीकृत करना होता है।  इसी तरह, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (पालतू जानवर की दुकान) नियम, 2018, पालतू जानवरों की दुकानों को अपने राज्य के पशु कल्याण बोर्ड के साथ पंजीकृत करने की आवश्यकता होती है। लेकिन हाल ही में सूचना के अधिकार पर मिली जानकारी से पता चला है कि भारत में अधिकांश पालतू जानवरों की दुकानें और प्रजनक पंजीकृत नहीं हैं। सांसद मेनका गांधी ने हाल ही में कहा था कि देश में 1 लाख से अधिक अवैध पालतू जानवरों की दुकानें और ब्रीडर हैं।

ऐसे बेईमान व्यापारी अक्सर बिना किसी चेतावनी के कि इन कुत्तों को लड़ाई के लिए पालते पोसते हैं। जनता को बताए बिना पिट बुल जैसी खतरनाक विदेशी नस्लों के कुत्तों की बिक्री कर देते हैं। इनमें से कुछ लोग कुत्तों को पिंजरों में या जंजीरों में जकड़ कर रखते हैं। गहन कारावास या लंबे समय तक कैद में रहने से कुत्तों को मनोवैज्ञानिक रूप से तकलीफ होती है और उन्हें शारीरिक रूप से भी नुकसान पहुंचा सकता है। इस तरह से रखे गए  कुत्ते विक्षिप्त, चिंतित और आक्रामक हो सकते हैं।

पिछले महज़ दो महीनों में ही पिटबुल प्रजाति के कुत्तों के इन्सानों को काटने या आक्रमण करने की बहुत सी घटनाएँ प्रकाश में आयी हैं जिसमे मेरठ में पिट बुल ने एक किशोरी को गंभीर रूप से घायल कर दिया था, एक अन्य घटना में पिट बुल ने जिसमें पंजाब की एक 13 वर्षीय बच्ची का कान काट लिया था,  गुरुग्राम में पिट बुल हमले के बाद एक महिला गंभीर रूप से घायल हो गयी थी और लखनऊ में एक बुजुर्ग महिला को उसी के बेटे द्वारा पाले गए पिट बुल ने मौत के घाट उतार दिया था।

 

PETA इंडिया क्या मांग कर रहा है

PETA इंडिया पालतू जानवरों की अवैध दुकानों और प्रजनकों पर रोक लगाने एवं देशभर में फैले कुत्तों की अवैध लड़ाइयों के जाल पर शिकंजा कसने की मांग कर रहा है। हमने सिफ़ारिश की है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नागरिकों को निर्देश जारी किए जाएँ कि वह अपने घरेलू कुत्तों की नसबंदी करवाएँ और एक माह के अंदर उनका पंजीकरण करवाएँ। पंजीकरण के दौरान घरेलू कुत्तों की नस्लों को स्पष्ट रूप से बताएं। निर्देश ज़ारी होने के ठीक एक महीने की अवधी के बाद सरकारी प्रतिबंधित सूची के अंतर्गत आने वाले कुत्तों के पालन, प्रजनन, और बिक्री पूरी तरह से रोक लगा दी जाए।

PETA इंडिया अवैध पालतू जानवरों की दुकानों और प्रजनकों को बंद करने और पूरे देश में अवैध डॉगफाइट पर कार्रवाई करने की मांग कर रहा है।

 

आप कैसे मदद कर सकते हैं

कृपया आप भी “मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी” मंत्री को tweet करके डॉगफाइटिंग पर रोक लगाने का अनुरोध करें और इस मुहीम में PETA इंडिया का साथ दें।