चीन एवं मंगोलिया में कश्मीरी ऊन के उद्योग में PETA इंडिया द्वारा की गयी जांच से खुलासा हुआ है की दुनिया के शीर्ष कश्मीरी ऊन निर्यातक भेड़ों पर गंभीर क्रूरता कर रहे हैं व हिंसक रूप से उनकी हत्या कर रहे हैं।
वीडियो में देखा जा सकता है कि जब श्रमिक भेड़ों के शरीर से ऊन नोचते हैं तो भेड़ें कैसे दर्द से कराहती हैं व डर से चिल्ला रही हैं। बाद में कत्लखानों में इन भेड़ों के गले काट दिये जाते है और उन्हें तड़फ-तड़फ कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। PETA एशिया के जांचकर्ता ने विजिट के दौरान चीन व मंगोलिया के सभी ऊन निर्यातक केन्द्रों पर इस दर्दभरे मंजर को रिकॉर्ड किया।
विश्व की कुल कश्मीरी ऊन का 90 प्रतिशत उत्पादन चीन एवं मंगोलिया से किया जाता है।
श्रमिक डरी सहमी भेड़ों के ऊपर चड़ कर उनके अंगो को मरोड़ देते हैं
जांचकर्ता ने देखा की श्रमिक डरी सहमी भेड़ों को अपने पैरों के नीचे दबा कर, एक हाथ से कान को मरोड़ कर धातु की कंगी से उनके शरीर से ऊन उतार रहे थे।
भेड़ों को किसी भी प्रकार की पशु चिकित्सा नहीं प्रदान की गयी
ऊन कतरने की प्रक्रिया के दौरान अंगो के कटने के से लहू-लुहान भेड़ों को किसी दर्द निवारक दवा या पशु चिकित्सा दिये बिना ही तड़फते रहने के लिए छोड़ दिया गया। एक श्रमिक ने चावल की शराब को भेड़ के जख्मों पर उड़ेल दिया।
भेड़ें जब उनके काम की नहीं रह जाती तो उनको हथोड़ो से पीट-पीट कर मार दिया जाता है
कश्मीरी भेड़ों से जब ऊन मिलना बंद हो जाता है तो उन्हे बेकार मान कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है। जांचकर्ता ने चीन के एक कत्लखाने में देखा की भेड़ों को बेहोश करने के लिए श्रमिक उनके सर पर हथोड़ों से वार करते हैं। मंगोलिया के कत्लखानों में श्रमिक भेड़ का गला काटने से पहले उन्हे खून से लथपथ फर्श पर पैर से घसीट कर लाते हैं व अन्य भेड़ों के सामने उनका गला काट दिया जाता है और उसी गंदे फर्श पर तड़फने के लिए छोड दिया जाता है। उनमे से कई भेड़े कटे गले के साथ बहुत देर तक तड़फती रहती है व अपने पैर हिलती रहती है।
अधिकांश्ता कश्मीरी ऊन चीन एवं मंगोलिया से आती है
लगभग ज़्यादातर कश्मीरी ऊन चीन एवं मंगोलिया से आती है इसलिए यदि आप कश्मीरी ऊन से बना कोई उत्पाद खरीदते हैं तो यह संभवतः उन्ही भेड़ों से कतरी गयी ऊन से बना होगा जो इन दोनों देशो में अपनी ऊन के लिए ददर्नाक यतनाए सह रही हैं।
एक भेड़ के शरीर पर औसतन प्रतिवर्ष केवल 240 ग्राम ऊनी बाल उगते हैं। यह इतनी कम मात्र है कि महज़ एक कश्मीरी स्वेटर बनाने के लिए कम से कम 6 भेड़ों के शरीर की ऊन की जरूरत पड़ती है।
चीन में इस प्रकार के ऊन कतरन करने वाले केन्द्रों पर पशुओं के साथ दुर्व्यवहार करने के खिलाफ किसी प्रकार की सज़ा का प्रावधान नहीं है व मंगोलिया में भी ऐसा कोई कानून नहीं है। इन भेड़ों की मदद करने का सबसे अच्छा तरीका यही है की हम इस उद्योग का समर्थन न करें व इन कश्मीरी भेड़ों की ऊन से बने उत्पाद न खरीदें ।
यह मायने नहीं रखता की यह उत्पाद कहाँ से आते है और इनको बनाने वाली कंपनियाँ किस प्रकार के आश्वासन देती हैं, कश्मीरी ऊन से बने उत्पाद भेड़ों पर ज़ुल्म करके बनाए जाते हैं और यह क्रूरता इस उद्योग पूरी तरह व्याप्त है। जब यह भेड़ें ऊन प्रदान करने लायक नहीं रह जाती तो उनके माँस के लिए उन्हें दर्दनाक मौत मरने हेतु कत्लखानों में भेज दिया जाता है।
पर्यावरण के लिए विनाशकारी
जानवरों से प्राप्त होने वाले फाइबर के मुक़ाबले कश्मीरी वूल पर्यावरण के लिए 100 गुना अधिक विनाशकारी है क्यूंकि इन कश्मीरी भेड़ों को प्रतिदिन अपने शरीर के भार के 10 प्रतिशत बराबर भारी भोजन की आवश्यकता होती है, यह भेड़ें घास की जड़ें खाती हैं जो की दुबारा नहीं उग पाती इसलिए यह उद्योग जमीन के मरुस्थलीकरण में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। मंगोलिया के 60 प्रतिशत घास के मैदान पहले से ही खराब हो चुके हैं जबकि मंगोलिया के 90 प्रतिशत घास के मैदानों को मरुस्थलीकरण का खतरा है जिसके चलते दुनिया के सबसे खतरनाक धूल भरे तूफान एवं वायु प्रदूषण इन मैदानों से उठकर उत्तरी अमेरिका तक जाने के लिए तैयार हो रहे हैं।