खास खबर- महीन ऊन (मोहेयर) के लिए भेड़ों के साथ बेरहमी- उनको मारना, काटना व उनकी हत्या कर देना।
आपने पहले कभी ऐसा नहीं देखा होगा। इस वीडियो को देखने के बाद आप मोहेयर वूल से बने स्वेटर, कंबल या ऊनी वस्त्रो को अलमारी में ही पड़ा छोड़ देंगे।
PETA एशिया की जांच में, अपने आप में पहला ओर चौंका देने वाला सच सामने आया है जंहा दक्षिण अफ्रीका में मोहेयर वूल के सबसे बड़े उत्पादकों में गिने जाने वाले एक उत्पादक के श्रमिक भेड़ों से महीन ऊन प्राप्त करने के लिए उनको को बेरहमी के साथ खींच रहे थे, फर्श पर इधर से उधर फेंक रहे थे व उनके पूरी तरह से सचेत अवस्था में होने के बावजूद क्रूरता से उनका गला कट दिया गया था I इस ग्राउंड ब्रेकिंग विडियो फूटेज में प्रत्यक्षदर्शी द्वारा सभी 12 अंगूरा बकरी फार्म्स पर फिल्माए गए विडियो में से क्रूरता भरे विडियो के मुख्य अंश हैं।
PETA अमेरिका तथा पीटा यूके के साथ बातचीत के उपरांत अर्काडिया ग्रुप ने अपने समस्त 8 ब्रांड्स जिसमे टोपशोप भी शामिल है के लिए मोहेयर का ऑर्डर देना बंद कर दिया है। गैप ब्रांड ने भी अपने मुख्य ब्रांड्स जिनमे गैप, ओल्ड नेवी, बनाना रिपब्लिक तथा अथ्लेता के लिए मोहेयर का ऑर्डर न देने पर सहमति दे दी है। इसके अतिरिक्त इंडिटेक्स जो की विश्व का अग्रणी कपड़ा रीटेलर व “जारा” ब्रांड का मालिक है, भी 2020 तक अपने 7 ब्रांड्स के लिए मोहेयर वूल खरीदना बंद कर देगा। H&M ग्रुप ने भी तत्कालीन प्रभाव से अपने 8 ब्रांड्स के लिए मोहेयर न खरीदने का निर्णय लिया है। आप जैसे हजारो करुणामयी खरीदारों से जानने के बाद “एंथ्रोपोलोजी” ने घोषणा की है कि “हम मार्च 2019 के बाद से मोहेयर का न तो उत्पादन करेंगे ओर न ही मोहेयर से बने उत्पाद खरीदेंगे”। एक्सप्रेस ने भी घोषणा कि है कि “हमारा अभी ओर भविष्य में मोहेयर वूल खरीदने का कोई प्लान नही है” अबेरक्रोंबी एंड फिट्च भी आगे से मोहेयर नही खरीदेंगे। zLabels मई 2019 से अपने उत्पादों में मोहेयर का इस्तेमाल बंद कर देगा। Lazy Oaf ने मोहेयर कि खरीद बंद कर दी है और बेस्टसेलर ने निर्णय लिया है कि वो 2020 तक मोहेयर वूल को अपने इस्तेमाल से बाहर कर पूरी तरह से प्रतिबंधित कर देगा।
क्या आप इन जानवरों की मदद नहीं करेंगे ?
भयभीत व डरी सहमी भेड़ों को बेरहम तरीकों से फर्श पर इधर से उधर फेंकना
भेड़ों के लिए अपनी ऊन कतरवाना बेहद तनावपूर्ण होता है, भेड़ों शांत स्वभाव वाला जानवर हैं जब उन्हे बलपूर्वक इस हेतु इस्तेमाल किया जाता है तो वो पूरी तरह से डरी सहमी, कमजोर व रक्षाहीन महसूस करती हैं। भेड़ों के बच्चे जिनके साथ पहली बार ऐसा होता है वो पूरी तरह से डरे हुए होते हैं।
ऊन कतरने वाले भेड़ों को पूंछ से ऐसे ऊपर उठाते हैं जैसे उनकी कमर टूट चुकी हो। जब कोई भेड़ इस पीड़ा से संघर्ष करती है तो ऊन कतरने वाले उनकी पीट पर बैठ जाते हैं। ऊन करतने के बाद श्रमिकों उनको पैरो से पकड़ कर लकड़ी के फर्श पर फेंक देते हैं।
दर्दनाक पीड़ा
भेड़ की त्वचा पर मल लगा होने से उसकी मोहेयर को साफ करने के लिए, एक श्रमिक ने उस भेड़ को क्लीनिंग सोल्यूशंस वाले टैंक में सिर के बल उल्टा लटका दिया जबकि वो जानते थे की टैंक में भरा तरल पदार्थ उनके मुह में जाने से जहर का काम करेगा।
ऊन कतरने वाले श्रमिक को घंटो से नही बल्कि उसके काम के हिसाब से भुगतान किया जाता है, जो उन्हे जल्दी और लापरवाही से काम करने के लिए प्रेरित करता है। तेजी से ऊन उतारने के लिए वो भेड़ों के शरीर पर अनेकों कट लगा देते हैं व चेहरे और कान से खून बहता छोड़ देते हैं। एक श्रमिक के अनुसार वो ऊन कतरने की प्रक्रिया में कई बार जानबूझ कर उनकी त्वचा और निप्प्ल्स को कट देते हैं। वो इन भेड़ों को तरह तरह से फर्श पर इधर उधर पटकते है ओर दर्द से कराहती इन भेड़ों को किसी भी प्रकार की दर्द निवारक दवा नही देते।
एक श्रमिक ने बताया की ऊन कतरने के दौरान कई बार उनके शरीर के कुछ हिस्से या कान कट जाते हैं जिनहे बाद में वो लोग सुई से सिल देते हैं ऐसा करते समय भेड़ों को काफी दर्द होता है ओर वो बहुत ज़ोर ज़ोर से चिल्लाती हैं। एक और श्रमिक ने बताया कि दर्द निवारक दवा के बिन ऐसा करने पर उसकी भेड़ें “चिल्लाती हैं और चारों ओर घूमती हैं”। यह बहुत ही ज्यादा दर्दनाक होता है।
एक अन्य किसान ने कहा, ” अगर हमे लगे कि उसके कान में कैंसर है तो हम भेड़ के कान को तोड़ देते हैं”। एक किसान ने तो बकरी के शरीर पर बने फोड़े को निकालने के लिए कोई दर्द निवारक दवा या एनेस्थीसिया दिये बिना ही एक चाकू से उसे निकालने का प्रयास किया।
ऊन कतरन (शीयरिंग) से पहले और बाद में हजारों की मौत होती है
एक किसान ने कहा भेड़ों में पहली कतरनी आमतौर पर 6 महीने की उम्र में होती है और कुछ फार्म्स में कम से कम 25 प्रतिशत भेड़ें अपनी पहली कतरनी से पहले मर जाती हैं।
ऊन कतरना भेड़ों से उनके प्रकर्तिक अंगो को अलग करना है। किसानों ने स्वीकार किया कि कतरनी के बाद, कई भेड़ें ठंडी हवा और बारिश के संपर्क में आने से मर जाती हैं। एक आदमी ने बताया कि दक्षिण अफ्रीका में कतरनी के उपरांत ठंडी हवा और बारिश के संपर्क में आने से सिर्फ एक हफ्ते के अंदर 40,000 भेड़ों की मौत हो गई। एक और ने कहा कि कुछ खेतों में कतरनी के बाद 80 प्रतिशत भेड़ें मर जाती हैं।
बहुत सी अन्य भेड़ें खेतों में भोजन की तलाश करते समय कांटों में फंसने के बाद चोटों या फिर प्यास से मर गयीं। श्रमिकों इन मृत भेड़ों की लाशों पर से भी ऊन कतर लेते हैं।
भेड़ों को बेरहम मौत का सामना करना पड़ा
ऊन कतरनी से जिन भेड़ों की जान नहीं जाती उनका मोहेयर वूल के लिए पांच या छह साल तक शोषण किया जाता है, जब तक की उनके दाँत मोटे व सख्त आहार को चबा पाने में असमर्थ न हो जाये।
उसके बाद, दक्षिण अफ्रीका में अंगूरा प्रजाति की इन भेड़ों में से लगभग 90 प्रतिशत भेड़ों को कत्लखानों को बेच दिया जाता है। एक श्रमिक ने भेड़ के गले को चाकू से रेत दिया ओर सचेत अवस्था में ही उसका उसकी गर्दन तोड़ दी। एक भेड़ का सिर काट दिया, सिर कटने के बाद भी वो भेड़ एक मिनट तक अपने पाँव चलाती रही।
अन्य भेड़ों को बूचड़खानों तक पहुंचाया जाता है। प्रत्यक्षदर्शी ने जहाँ का दौरा किया था वहाँ भेड़ों को बिजली करंट का झटका दिया गया था, एक पैर से ऊपर की ओर लटका दिया गया था और उनके गले और त्वचा को तेज ब्लेड से चीर दिया गया था।
कुछ कपड़ों के निर्माताओं और खुदरा विक्रेताओं का दावा है कि वे भेड़ों के बाल, त्वचा और पंख बेचते हैं जो मांस उद्योग के उप उत्पाद हैं लेकिन अंगूरा भेड़ विशेष रूप से उसकी ऊन के लिए पाली जाती हैं और वे उन्हे कभी भी कत्लखानों में नहीं बेचते।