मुर्गे-मुर्गियों के साथ क्या हो रहा है?
विशाल मुर्गीफार्मों में कई सौ हजारों मुर्गों और अंडे देने वाली मुर्गियों को रखा जाता है. इतने बड़ी संख्या में मुर्गों को एक साथ गंदी और बहुत भीड़भाड़ वाली परिस्थितियों में बंद रखे जाने से वहां बर्ड फ्लू समेत कई दूसरी बीमारियां फैल सकती हैं. मुनाफा बढ़ाने के लिए पशुपालक, मुर्गों के साथ जैनेटिक्ली छेड़छाड़ कर उन्हें ड्रग्स देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई मुर्गे हड्डियों और रीढ़ की विकृतियों के कारण दर्दनाक अपंगता से पीड़ित हो जाते हैं. सात या आठ अंडे देने वाली मुर्गियों को एक पिंजरे में कैद रखा जाता है. कभी उड़ न पाने के कारण उनके पंख खराब हो जाते हैं. इतना ही नहीं, तार से बने पिंजरों की उबड़-खाबड़ सतह पर खड़े रहने के कारण उनके पैर और पंजे भी मुड़ जाते हैं और विकृत हो जाते हैं.
पोल्ट्रीफार्मों में मुर्गों की चोंच को काट दिया जाता है और उन्हें ऐसी ड्रग्स दी जाती हैं जो उन्हें अप्राकृतिक तरीके से इतना बड़ा कर देती हैं कि वे अक्सर खुद के वजन से ही अपंग हो जाते हैं.
जब इतनी बड़ी संख्या में रखा जाता है, तो मुर्गे तनाव और भड़क दूर करने के लिए एक दूसरे को चोंच मारते हैं. नुकसान को कम करने के लिए मुर्गीपालक गर्म ब्लेड पर रगड़ कर छोटे-छोटे चूजों की चोंच जलाकर छोटी कर देते हैं. मांस के टुकड़ों को काटने की तरह नाजुक सी चोंच को काटने की इस दर्दनाक प्रक्रिया को देखकर कई मुर्गे तो सदमे से ही मर जाते हैं. कटी चोंच से होने वाले दर्द की वजह से कुछ खा न सकने के चलते कई मुर्गे भूख से भी मर जाते हैं. अंडा उद्योग हर साल अंडा उत्पादन में अक्षम लाखों मुर्गों को कूड़े के थैलों में बांधकर फेंक देते हैं या चक्कियों में पिसकर या कूचलकर मार देते हैं.
हजारों मुर्गियों को एक साथ गंदी और अत्यधिक भीड़भाड़ वाली परिस्थितियों में बंद रखे जाने के कारण वहां बर्ड फ्लू समेत कई दूसरी बीमारियां फैलती हैं.
कत्ल करने के लिए मुर्गियों को जब दर्दनाक परिस्थितियों में टैंकरों में बंद कर जब बूचड़खाने में ले जाया जाता है, तो वे अक्सर टूटे हुए पंखो और पैरों से पीड़ित होते हैं, और कई वहां तक पहुंचने से पहले ही मर जाते हैं. बूचड़खाने में उनके पैरों में बेड़ियां डालकर उनका गला काट दिया जाता है और उनके पंख/त्वचा निकालने के लिए जला देने वाले भयंकर गर्म पानी के टैंक में डाल दिया जाता है. कई मुर्गे जिनकी गर्दनें कटर मशीन से बच जाती हैं, वे गर्म पानी में जलकर मर जाते हैं.
फैक्टरियों में न रखे जाने वाले मुर्गों को जीवित चिकन मार्केटों में रखा जाता है. स्थानीय चिकन की दुकानों पर आप जाकर देखेगें तो पता लगेगा कि मुर्गों को बहुत खराब हालत के जंग खाए तार के पिंजरों में रखा जाता है, जिन्हें “खोखा” कहते हैं. ये खोखे आमतौर पर बहुत गंदे होते हैं और इनमें शायद ही कभी मुर्गों के लिए भोजन या पानी होता है. इन छोटे-छोटे गंदे पिंजरों के अंदर एक साथ कसकर ठूंसे होने के कारण मुर्गों में बीमारी तेजी से फैलती है. उन्हें बेचने के लिए जब उनका गला काटा जाता है तो दूसरे मुर्गे बहुत भयभीत होकर पूरा मंजर देखते हैं. कुछ मुर्गों को तो बेचे और मारे जाने से पहले इन दयनीय परिस्थितियों में महीनों बिताने पड़ते हैं.
मुर्गों के बारे में क्या छुपाया जाता है
मुर्गे जिज्ञासु और दिलचस्प जीव हैं जिनमें कुछ मामलों में बुद्धि छोटे बच्चों से अधिक होती है. पोल्ट्रीफार्मों से दूर जब वे अपने प्राकृतिक परिवेश में होते हैं तो वे दोस्त और सामाजिक रिश्ते बनाते हैं, एक दूसरे को पहचानते हैं, अपने बच्चों से लाड-प्यार और उनकी देखभाल करते हैं. वे रेत में खेलने से लेकर घोंसले बनाकर पेड़ों में बसावट कर अपनी पूरी जिंदगी का आनंद लेते हैं. मुर्गों के बारे में और पढ़ें.