समुद्री जीवों के साथ क्या हो रहा है ?

समुद्री जीव कुत्ते, बिल्ली और इंसानों की तरह ही दर्द और डर महसूस करते हैं, लेकिन बहुत से लोगो समुद्री जीवों को तैरने वाली सब्जियों से भी बहुत कमत्तर समझते हैं. क्योंकि लोगों को यह एहसास ही नहीं होता है कि वे क्रूरता से पीड़ित हैं. जब उन्हें हुक पर या जाल के साथ पकड़र जीवित मांसाहार की मंडियों में रखा जाता है या मछली फार्मों में पाला जाता है, तो समुद्री जीव दर्दनाक क्रूरता का शिकार होते हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 60 लाख मीट्रिक टन मछलियों का कत्ल किया जाता है.

मछुआरे एक साथ भारी मात्रा में समुद्री जीवों को पकड़ने के लिए विशाल नावों और जालों का उपयोग करते हैं. मछली पकड़ने के लिए फेंके गए जाल लक्षित प्रजातियों और दूसरे जीवों के बीच कोई अंतर नहीं करते और रास्ते में आने वाले सभी अवांछित (गैर जरूरी) जीवों को भी लपेट लेते हैं. जालों को ऊपर खींचने के बाद मृत और मर रहे सभी अवांछित जीव जिन्हें “बाय-कैच” कहा जाता है, को वापस समुद्र में फेंक दिया जाता है. मछली पकड़ने वाली कुछ नावों पर, जालों में 90 प्रतिशत तक अवांछित जीवों को पकड़ लिया जाता है.

वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है कि मछली बुद्धिमान होती हैं जो मछुआरों द्वारा पानी के नीचे अपने घरों से खींचने पर डर और दर्द महसूस करती हैं.

मछुआरों के जाल में फंसे जीवों को चट्टानों और प्रवाल के बीच समुद्र में घंटों तक खींचा जाता है, जिसके कारण मछलियों के साथ पीसकर केकड़े जैसे अनेकों जीवों के पैर टूट जाते हैं. भयंकर रूप से भींचे होने के कारण फंसे हुए कुछ जीवों की जाल के किनारों से रगड़ खाकर आँखें फट जाती हैं. जब मछली को पानी से बाहर खींचा जाता है, तो सांस की कमी के कारण पड़ने वाला तीव्र आंतरिक दबाव स्विम ब्लैडर को तोड़ देता है. इतना ही नहीं, उनकी आंखों को बाहर निकल आती हैं और उनकी भोजन नली और पेट मुंह से बाहर आ जाता है.

कुदाल-फावड़ों से अवांछित जीवों को छांटने के बाद मछवारे उन जीवों को अलग कर बर्फ में ठंडा होने के लिए रख देते हैं या मछलियों के अतिरिक्त ढेर को उनपर फेंककर उन्हें कुचल कर मार देते हैं. कुछ जहाजों पर मछलियों को काटना तुरंत शुरू कर दिया जाता है, जिंदा होने के बावजूद डरी हुई मछलियों को काट दिया जाता है. हर साल व्यावसायिक मछवारों द्वारा अरबों समुद्री जीव इसी तरह मार दिए जाते हैं.

आमतौर पर मछलियों को मारने के लिए उनके गलफड़ों को काटना, उन्हें डंडों से पीटना या टैंकों से पानी निकालने जैसी विधियां प्रचलित हैं, जबकि मछली उस समय भी जीवित होती हैं.

अब जब व्यावसायिक मछुआरे हमारे महासागरों को खाली कर रहे हैं, तो भारत में व्यवसायी मछली फार्म खोल रहे हैं. इन फार्मों पर हजारों मछलियों को तालाबों, टैंकों या तटवर्ती इलाकों में जालनुमा पिंजरों में रखा जाता है. इतने छोटे क्षेत्रों में हजारों मछलियों को रखने से बेहद घने मल प्रदूषण, पैरासाइट के प्रकोप और घातक बीमारियां फैल जाती हैं. मछली, झींगा और अन्य जीव इन रोग-संक्रमित गंदे तालाबों में तब तक रखा जाता है, जब तक कि मांसाहार के लिए मारने लायक नहीं हो जाते. आमतौर पर मछलियों को मारने के लिए उनके गलफड़ों को काट दिया जाता है, उन्हें डंडों से पीटा जाता है या टैंकों से पानी निकाल दिया जाता है, जबकि मछली उस समय भी जीवित होती हैं.

समुद्री जीवों के बारे में क्या नहीं बताया जाता

समुद्री जानवर समझदार होते हैं और प्रभावशाली लंबी यादगिरी रखने के साथ-साथ, विवेकशील सामाजिक संरचनाएं और संसाधनों का प्रयोग करने की क्षमता रखते हैं, हालांकि वे हमें बाहरी लग सकते हैं. वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि समुद्री जीव जासूसी से जानकारी इकट्ठा करते हैं, एक दूसरे को देखकर सीखते हैं और संरचनाएं भी बनाते हैं.

शोधकर्ताओं को अब पता चला है कि मछली और अन्य समुद्री जीवों को उसी तरह से दर्द महसूस होता है जैसे इंसानों समेत सभी जानवरों में होता है. असल में न्यूरोबायोलॉजिस्ट लंबे समय से मानते आए हैं कि समुद्री जीवों में तंत्रिका-तंत्र(नरवस सिस्टम) होते हैं जो दर्द महसूस कर प्रतिक्रिया करते हैं. कोई भी जीव विज्ञान(बायोलॉजी) पढ़ने वाला जानता होता है कि मछली, केकड़ों और सीप में तंत्रिका(नरवस सिस्टम) और दिमाग होते हैं, जिससे वे दूसरे जानवरों की तरह ही दर्द महसूस करते हैं. वैज्ञानिक हमें यह भी बताते हैं कि कई समुद्री जीवों के दिमाग और तंत्रिका-तंत्र इंसानों से मेल खाते हैं. उदाहरण के लिए मछली, मनुष्यों और दूसरे जानवरों में मस्तिष्क रसायन होते हैं जो दर्द से राहत देते हैं. उनके तंत्रिका तंत्र द्वारा ये दर्दनिवारक रसायन बनाने का एकमात्र कारण दर्द से राहत देना होता है. समुद्री जीव बौद्धिक और वैज्ञानिक रूप से पंगु नहीं होते जो धरती को समतल बताने के लिए बहसबाजी कर सकें. समुद्री जीवों के बारे में अधिक पढ़ें.

 



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