दूध के पीछे की सच्चाई

जो लोग अपने आस-पास के परिवेश के प्रति जागरूक हैं, उनके लिए जानवरों और जलीय जीवों पर बढ़ते अत्याचारों के कारण मानव प्रजाति पर जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिक (इकोलॉजी) संकट और पर्यावरण प्रदूषण से बढ़ता खतरा चिंता का विषय है. दूसरी तरफ जो लोग इन घटनाक्रमों की ओर अपनी आंख मूंदे बैठे हैं उन्हें यह एहसास नहीं है कि अगर कोई एक प्रजाति खतरे में होती है, तो दूसरी प्रजातियां भी खतरे में पड़ जाती हैं. कोई इंसान एक सही समझ से तभी काम कर पाता है, जब उसका विवेक जागृत और सूचित हो. औद्योगिक समाज इस खतरे को हमारी समझ से दूर रखने के लिए इन जानवरों की पीड़ा हम तक पहुंचने नहीं देता.

यदि हम अपने आस-पास के परिवेश पर ध्यान दें तो हमें पाएंगे कि प्रकृति ब्रह्मांड की एक ऐसी क्रियाविधि का हिस्सा है जो स्वयं के बल से स्वचालित है. इस क्रियाविधि का हिस्सा होने के नाते यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम प्रकृति व अन्य जीवों के साथ एक स्वस्थ सामंजस्य स्थापित करते हुए आगे बढ़ें. हमारे लिए यह समझना बेहद ज़रूरी है कि इस धरती पर हर प्रजाति एक-दूसरे के जीवन का अभिन्न अंग है. हमारा जीवन इस तरह से आपस में गुथां हुआ है कि शांति और सद्भाव से जीवन व्यतीत करने के लिए हमारी आपसी निर्भरता बेहद ज़रूरी है.

इस लेख का उद्देश्य मुख्य रूप से डेरी उद्योग के गोरख धंधे से पर्दा हटाना है. यह लेख डेयरी फार्मिंग के चेहरे बेनकाब करने का एक प्रयास है, जो हर साल लाखों गायों और बछड़ों का असहनीय मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न करता है. यह लेख उन लोगों को नींद से जगाने का प्रयास है जो पशुओं पर अत्याचार के विरुद्ध तो हैं लेकिन बिना किसी संकोच के डेरी उत्पादों का सेवन करते हैं. अब समय आ गया है कि आपको डेयरियों में पशुओं के क्रूर जीवन और उनकी भयानक स्थितियों की सच्चाई से अवगत कराया जाए.

दूध के नाम पर भ्रम और गायों पर अत्याचार

‘हां, दूध प्रकृति का दिया हुआ ‘सर्वोत्तम भोजन’ है… एक बछड़े के लिए…जब तक उससे दूध छुड़वा ना दिया जाए. दूध को लेकर फैलाए गए भ्रम पर वेबमास्टर ऑफ www.notmilk.com से संबंधित डेव रिट्ज़ ने लिखा है संभव है कि आप गाय के दूध व डेयरी के बारे में जो भी जानते हैं वह डेरी उद्योग द्वारा फैलाया गया भ्रम है।’

भ्रम तोड़ने और सच्चाई जानने का समय आ गया है, ताकि यह जाना जा सके कि एक गिलास दूघ के लिए कितनी क्रूरताएं की जाती हैं. दूध के हर घूंट में ग्रोथ हारमोन्स, फैट, कोलेस्ट्रॉल, एलर्जी उत्पन्न करने वाला प्रोटीन, खून, मवाद, एंटीबायटिक, बैक्टीरिया व वायरस मौजूद होते हैं.

एक गाय को लगातार दूध देते रहने के लिए हर साल एक बछड़े/बछड़ी को जन्म देना पड़ता है. दूध की सप्लाई जारी रखने के लिए गायों को बार-बार गर्भवती किया जाता है.

वैसे तो गाय एक दिन में केवल उतना ही (7 किलो से थोड़ा ज़्यादा) में दूध देती है जितनें में उसके बछड़े का पेट भर सके. लेकिन 2004 में आई राष्ट्रीय कृषि  सांख्यिकी सेवा की एक रिपोर्ट के अनुसार, जैनेटिकली छेड़छाड़ कर, एंटीबायोटिक्स व गोजातीय विकास हॉर्मोन (बीजीएच) की मदद से गायों का प्रतिदिन करीब 23 किलो दूध निकला जाता है. यानी एक गाय से साल भर में करीब 8000 किलोग्राम दूध अप्राकृतिक रूप (जबरन) से निकला जाता है. हारमोन्स गायों की सेहत पर बहुत गंभीर प्रभाव डालते हैं और इसके चलते उनके नवजात बछड़े जन्मजात गुणदोष के शिकार हैं. बीजीएच इंसानों के लिए भी स्तन व गले के कैंसर का खतरा बढ़ा देता है.

दिन में कई बार बिजली से चलने वाली मशीनों का इस्तेमाल कर गायों का दूध निकाला जाता है जिससे कई बार बिजली के झटके लगने की वजह से थनों में सूजन और दर्दनाक घाव हो जाते हैं. इसके अलावा मशीन से दूध निकालने के कारण गाय के स्तन कठोर और भारी हो जाते हैं और खिंचते-खिंचते कई बार ज़मीन तक पहुंच जाते हैं. कई गायें अपना सारा जीवन पथरीली ज़मीन पर बिता देती हैं तो कई कीचड़नुमा मिट्टी में.

गाय की औसत प्राकृतिक आयु 20 से 25 साल की होती है जिसमें से 8-9 साल वह दूध देती हैं. लेकिन डेयरी फार्मों में उन पर पड़ने वाला दबाव की वजह से उनके शरीर में बहुत जल्दी कई तरह की बीमारियां घर कर लेती हैं. जोकि उनकी प्रजनन क्षमता पर असर डालती हैं. नतीजतन 8 से 9 साल डेरी के काम आने वाली गायें केवल 4 से 5 सालों में ही डेरी उद्योग के लिए बेकार हो जाती हैं और बूचड़खानों में कत्ल कर दी जाती हैं.

मां से अलगाव और बछड़ों की दयनीय स्थिति

बेहद सौम्य और स्नेहशील होने के कारण गायें एक-दूसरे के साथ, खासतौर पर अपने बछड़ों के साथ बहुत जल्दी एक मार्मिक संबंध स्थापित कर लेती हैं. हालांकि उन्हें यह मातृ प्रेम दिखाने का ज़्यादा समय नहीं मिलता। बछड़े को उसके जन्म के 1 या 2 दो दिन बाद ही उसकी मां से अलग कर दिया जाता है जबकि प्राकृतिक नियम अनुसार बछड़े कई महीनों तक अपनी मां से अलग नहीं होते. गाय को भी एक दूसरी प्रजातियों की तरह अपने बच्चे से खासा लगाव होता है. ‘इफैक्ट्स ऑफ अर्ली सैप्रेश्न ऑन द डेयरी काऊ एंड काल्फ’ नामक एक अध्ययन में फ्रांसेस सी फ्लावर और डैनियल एम वेरी कहते हैं कि जन्म के 5 मिनट बाद ही गाय अपने बछड़े से एक गहरा लगाव स्थापित कर लेती है. ऐसे में जब बछ़ड़े को गाय से अलग किया जाता है तो वह गहरे तनाव में आकर पागलों की रम्भाने लगती है. अपनी मां से अलग हुए बछड़े भी बेहद डर जाते हैं. इस परिस्थिति को अगर ठीक से संभाला जाए तो भी मां और बछड़े का यह अलगाव दोनों के लिए असहनीय तनाव पैदा करता है. मां बनी गाय को मुनाफा कमाने के लिए दूध निकालने वाले झुंड में शामिल कर दिया जाता है और अपने उपयोग के लिए इंसान बछड़े के हिस्से के दूध को छीन लेते हैं.

कुछ उपभोक्ताओं को ही पता होगा कि बछड़े का मांस डेयरी उद्योग का प्रत्यक्ष उत्पाद है. दूध उत्पादन के लिए गायों का गर्भवती होना जरूरी होता है. इस प्रक्रिया के दौरान मादा बछड़ों का कत्ल कर दिया जाता है या डेयरी झुंड में जोड़ा जाता है. नर बछड़ों को उनकी माताओं से उनके जन्म के दिन ही अलग कर दिया जाता है और जंजीरों में जकड़कर मांसाहार के लिए बनाए गए छोटे स्टालों में डाल दिया जाता है.

अपनी मां से अलग किए उन बछड़ों को, इतनी तंग जगहों पर रखा जाता है कि बछड़े वहां आराम से बैठना तो दूर आगे-पीछे मुड़ भी नहीं पाते. इस पर लेखक जॉन रॉबिन्स लिखते हैं कि इतने छोटे पिंजरों में जकड़ने की बजाय इन बछड़ों को यदि जिन्दगीभर के लिए किसी छोटी गाड़ी की डिक्की में बंद कर दिया जाए तब भी वह इससे ज्यादा आरामदायक स्थिति में रह पाते.

इन बछड़ों को जानबूझकर भूखा-प्यासा रखा जाता है ताकि उनमें खून की कमी के कारण हल्के रंग का मांस प्राप्त कर होटलों को ज्यादा दामों में बेचा जा सका. उनके पोषण में आयरन की कमी उनके लिए कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां खड़ी कर देती हैं. जन्म के समय ही मां से अलग कर दिए गए ये बछड़े अल्सर, दस्त, निमोनिया, व लंगड़ेपन से जूझते हैं. ऐसी बर्बर स्थिति में 3 से 18 हफ्ते रखने के बाद इन्हें ट्रकों में भरकर बूचड़खाने पहुंचाया जाता है जहां इन नन्ही जानों को क्रूरता से क़त्ल कर दिया जाता है.

वीगन (डेयरी प्रोडक्ट इस्तेमाल ना करने वाले शाकाहारी) हेल्थ ऐडुकेटर व अमेरिकी चिकित्सक माइकल क्लैपर कहते हैं, ‘मैंने अपने जीवन की सबसे उदास अवाज़ा विस्कॉन्सिन में सुनी थी. तब मैं 5 वर्ष का था और अपने अंकल के फार्म पर था. वहां गाय ने एक बछड़े को जन्म दिया था लेकिन जन्म के दूसरे ही दिन मेरे अंकल ने बछड़े को उसकी मां से अलग कर एक वील पैन (बछड़े को रखने के लिए बनाया गया एक जेलनुमा ढांचा) में रख दिया था. गाय बछड़े से दस मीटर से भी कम की दूरी पर थी. वह उसे देख सकती थी, सूंघ सकती थी, सुन सकती थी लेकिन छू नहीं सकती थी, प्यार नहीं कर सकती थी, दुलार नहीं कर सकती थी. 5 दिनों तक उसकी दिल दहला देने वाली चींखें सुनना बेहद कष्टदायक था. मेरे जीवन की सबसे दर्दनाक और मार्मिक आवाज़ें आज भी मेरे दिमाग को घेरे हुए हैं.’

जैविक (ऑर्गेनिक) दूध का भ्रम

जैविक (ऑर्गेनिक) दूध का भ्रम

जैविक का सरल भाषा में मतलब होता है दवाओं और रसायनिक पदार्थों से मुक्त. हालांकि संभव है कि ‘जैविक’ पशुओं के साथ भी वही क्रूरता बरती जाती हो जो फैक्ट्री फार्म्स वाले पशुओं के साथ बरती जा रही है. जिस पशु को ड्रग्स का डोज़ नहीं दिया गया हो या फिर जिसके आहार को उगाने में कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया गया हो उस पशु के दूध व मांस को ऑर्गेनिक यानी जैविक मीट कहा जाता है. क्योंकि पशुपालक अपने पशुओं को ड्रग्स देकर अधिक पैसा कमाने के आदि हो चुके हैं तो ऐसे में इस बात के आसार बहुत कम ही रहते हैं कि कोई पशुपालक पूरी तरह से कैमिकल और ड्रग्स फ्री हो जाए.

अमेरिका के कृषि विभाग के अनुसार, अमेरिका में खाने के लिए कटने वाले पशुओं में ऑर्गेनिक पशुओं की संख्या 1 प्रतिशत से भी कम है. अपने पशुओं के ऑर्गेनिक होने का दावा करने वाले अधिकांश पशुपालक लगातार पशुओं को ड्रग्स देते रहते हैं और फिर कपटता से उनके उत्पादों पर ऑर्गेनिक का लेबल लगा देते हैं. इसके अलावा ऑर्गेनिक फॉर्म पर भी पशु विकृतियों से नहीं बच पाते. ऑर्गेनिक फार्म पर भी पशुओं के सींग व अंडकोश निकाल दिए जाते हैं. उन्हें बांधकर गर्म लोहे की छड़ों से दागा जाता है जिससे उनके शरीर पर थर्ड डिग्री जैसे जलने के निशान पड़ जाते हैं.

डेयरी उद्योग का दुष्प्रभाव

बढ़ता तापमान, बढ़ता समुद्री जलस्तर, पिधलती बर्फ व ग्लेशियर्स, समुद्र के बहाव में बदलाव और जलवायु परिवर्तन जैसे समस्याएं हमारे लिए चुनौती बनी हुई हैं. पशुपालन पर्यावरण परिवर्तन, जल प्रदूषण, भूमि अवक्रमण और जैव विविधता में कमी से जुड़ा हुआ है. अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के नोट्स फ्रॉम अंडरग्राउंड (2001) के अनुसार, एक गाय दिन भर में करीब 55 किलो मल (वेस्ट) त्यागती है. यह 20-40 इंसानों द्वारा त्यागने जाने वाले वेस्ट के बराबर है. इसका मतलब है कि कैलिफोर्निया में 14 लाख गायों (डेरी) द्वारा त्यागा गया वेस्ट 5.60 करोड़ इंसानों द्वारा त्यागे गए वेस्ट के बराबर है। साथ ही एक पशु आधारित आहार में पशु मुक्त आहार से अधिक ऊर्जा, पानी व ज़मीन लगती है.

भारतीय डेयरी उद्योग

पश्चिमी देशों के समान ही आज भारत में भी दूध व डेरी उत्पाद प्राप्त करने के लिए गायें प्रताड़ित की जा रही हैं. यहां भी गाय व भैंसों को 6-7 साल प्रतिवर्ष लगातार गर्भधारण करवाया जाता है और जब वे प्रजनन बंद कर देती हैं तब उन्हें बूचड़खानों में कटने के लिए भेज दिया जाता है. नवजात बछड़ों को यहां भी उनकी मां से अलग कर दिया जाता है। वह दूध जिस पर उसका अधिकार है उससे उसे वंचित कर दिया जाता है. गाय के बछड़े को मोटा करने के लिए हॉर्मोन्स वाले टीके लगाए जाते हैं. उसे धूप से दूर तनावग्रस्त जगहों पर रखा जाता है ताकि वह अच्छा वील मीट बन सके। गाय का दूध जोकि मूलत: उसके बच्चे के लिए होता है वह इंसानों द्वारा पीया जाता है. 1 लीटर दूध के लिए 2000 लीटर पानी खर्च किया जा रहा है जिससे जल स्रोतों पर दबाव बढ़ रहा है. कुल मिलाकर डेरी फार्मिंग या उत्पादन गाय व उसके बछड़े को अस्वीकार्य व असहनीय दर्द से गुज़रने के लिए मजबूर करता है.

इसी हिंसा के प्रति अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए कई महात्माओं ने बारंबार प्रेम व दया की शिक्षा पर ज़ोर दिया है. इसीलिए पुरातन काल से ही सर्वधर्मा की मूल शिक्षा में अंहिसा का पाठ रहा है. इसलिए इसके अनुयायी शाकाहारी होते हैं और मांस, मछली, समुद्री आहार व अंडे नहीं खाते. प्राचीन काल में गाय का दूध पीना लाभदायक था क्योंकि तब गाय का पालन-पोषण परिवार के ही सदस्य की तरह किया जाता था. तब बछड़ों को अपनी मां से अलग नहीं किया जाता था और ना ही उन्हें अपनी मां का दूध पीने से रोका जाता था. उस समय गायों को बंद और तनावपूर्ण वातावरण में नहीं रखा जाता था, तब वे खुले में घूम और चर सकती थीं. लेकिन अब कहानी अलग है. अब गाय व बछड़ों पर जो ज़ुल्म ढाए जाते हैं और जिन अस्वीकार्य परिस्थितियों में उन्हें रखा जाता है इसी से प्रेरित होकर लाखों ने वीगनिज़्म का रास्ता चुना है.

वीगनिज़्म क्या है

वीगनिज़्म शब्द का अर्थ है ऐसा जीवन जिसमें अपने आहार, वस्त्र या अन्य किसी भी चीज़ के लिए पशुओं को किसी भी तरह की तकलीफ ना पहुंचाई जाए. इसके साथ ही वीगनीज़्म इंसानों, पशुओं व पर्यावरण की उन्नति के लिए ऐसे विकल्पों को बढ़ावा देता है जिसमें पशुओं का दोहन ना हो. वीगनिज़्म के तहत हमें अपने आहार से उन सब खाद्य व पेय पदार्थों को हटाना होता है जो आंशिक व पूर्ण रूप से पशुओं से मिला हो (वीगन सोसायटी के एसोसिएशन का ज्ञापन, 1979) उदाहरण के लिए दूध, दही, मक्खन, शहद आदि. एक वीगन केवल पेड़ों से प्राप्त आहार पर निर्भर रहता है. ठीक इसी प्रकार वस्त्रों व आभूषणों में भी उन वस्त्र व आभूषणों से दूरी बनानी होती है जिसके निर्माण में पशु को क्षति पहुंची हो. जैसे चमड़ा, ऊन, रेशम व मोती आदि.

गाय, भैंस, हाथी, कुत्ता या अन्य किसी भी पशु का दूध विशिष्ट रूप से उसके बच्चे के विकास के लिए सूत्रबद्ध होता है. एक बछड़े और एक इंसान के बच्चे की ज़रूरतों में बहुत अंतर होता है. जहां एक बछड़े को अपने जन्म के समय के वजन से दुगना होने में 45 दिनों का समय लगता है वहीं, एक इंसान के बच्चों को दुगना होने में लगभग 180 दिन का समय लगता है. बात अगर दूध की करें तो गाय के दूध में जहां 15 प्रतिशत प्रोटीन होता है वहीं एक महिला के दूध में 5 से 7 प्रतिशत प्रोटीन होता है। और इंसान ही एक ऐसी प्रजाति है जो बाल्यावस्था पार करने के बाद भी दूध पीती है वह भी किसी और प्रजाति का.

गाय के दूध का इंसानों के लिए सही ना होने के पीछे एक कारण यह भी है कि महिला का दूध जहां बच्चों के तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) या कहें बौद्धिक विकास लिए होता है वहीं गाय का दूध बछड़े के शारीरिक विकास के लिए होता है। जैसा की हमने उपर देखा कि गाय के दूध में इंसानों के दूध से दोगुना प्रोटीन होता है. इसका कारण यह है कि संरचना एक मज़बूत हड्डियों व मांसपेशियों  वाली 180 किलो की गाय तैयार करने के अनुसार हुई होती है. वहीं, एक महिला के दूध में गाय के दूध से 10 गुना अधिक फैटी ऐसिड होता है खासतौर पर एओलिक एसिड और डीएचए जो बच्चों के मानसिक विकास के लिए बहुत ज़रूरी होता है. एक शोध के अनुसार, मां का दूध ना पीने वाले बच्चों का आइक्यू मां का दूद पीने वाले बच्चों से 10 अंक कम ही रहता है.

वीगन बनने का सबसे आम कारण है किसी व्यक्ति की पशुओं के अधिकार, पर्यावरण के प्रति नैतिक प्रतिबद्धता, इंसानों का स्वास्थ्य, आध्यात्म व धर्म वह कुछ कारण है जिनकी वजह से कोई वीगन बनता है. इसके अलावा फैक्ट्री फार्मिंग, जानवरों में दवा का परीक्षण व और फार्मिंग के लिए भूमि व अन्य प्राकृतिक संसाधनों का भारी मात्रा में उपयोग कुछ लोगों को वीगनिज़्म की ओर ले जाता है. जो लोग पर्यावरण की चिंता में वीगनिज़्म अपनाते हैं वह ये जानते है कि इस तरह का आहार पशु-आधारित आहार की तुलना में काफी कम संसाधनों के दोहन से प्राप्त हुआ है.

आध्यात्मिक पहलू

अहिंसा धर्म की मूल भावना होती है. अहिंसा का मतलब है किसी भी जीव को किसी भी प्रकार से क्षति ना पहुंचाना, दूसरों के दर्द व भावनाओं से समानुभूति रखना. अहिंसा भारत में जन्में कई धर्मों का मुख्य अंग है. अहिंसा आचरण का पहला नियम है जो एक जीव को दूसरे जीव की हत्या से रोकती है. यह कारण और प्रभाव के सिद्धांत से जुड़ा हुआ है. यानी किसी भी प्रकार की हिंसा नकारात्मक कार्मिक परिणाम लेकर आती है और जैसे ही मनुष्य किसी पशु को मारता है या क्षति पहुंचाता है वह धर्म के आचरण का पहला नियम तोड़ देता है.

इसलिए जब भी कोई बछ़डा दूध पीने से रोका जाता है और इंसान उसकी अप्राकृतिक मौत का कारण बनता है तो इससे एक नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है. कुछ भी ऐसा करना या किसी को ऐसे कार्यों के लिए उकसाना हमारे आस-पास नकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है. जब किसी गाय व बछड़े की समय से पहले पीड़ादायक मौत होती है और उसकी मौत का कारण इंसान होता है तो वह अपनी मौत के लिए भी इसी प्रकार का मार्ग प्रशस्त कर रहा होता है. किसी और की आयु घटा कर हम अपनी भी आयु कम कर रहे होते हैं.

आध्यात्मिक रूप से जागृत लोग यह जानते हैं कि बिना अनुमति के किसी से कुछ भी लेना चोरी के समान है. तो क्या हम गाय से उसका दूध लेने से पहले उसकी अनुमति लेते हैं, नहीं ना? इस तरह से हम धर्म का एक और सिद्धांत तोड़ते हैं, वह है चोरी ना करना. जब मां को अपने बच्चे से जबरन अलग किया जाता है तो यह एक यह किसी व्यक्ति के जीवन में बाधक कर्म बनता है. इसके अलावा महात्माओं ने आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए ऐसे भोजन से किनारा करने के सलाह दी है जो जोशवर्धक हो. लेकिन सभी पशु उत्पाद जोशवर्धक होते हैं तो ऐसे में क्या हमें ऐसे उत्पादों का त्याग नहीं करना चाहिए?

करुणा का भाव

इतना सब जानने के बावजूद अगर हम अपनी खाने की आदतों को लेकर सोचने पर मजबूर नहीं होते तो हमें अपनी आस्था और धर्म के प्रति हमारी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाने की ज़रूरत है. धर्म ही प्रकृति का कानून है और प्रकृति का कानून है कर्म और प्रभाव (फल) का। जो हम बोएंगे वही हम काटेंगे. यदि हम किसी भी प्राणी को दुख पहुंचाते हैं चाहे वह इंसान हो, जानवर हो, कीड़ा हो या कोई अन्य जीव तो उसको पहुंचाया हुआ दुख लौटकर हमारे पास आएगा. यदि यह सब पढ़ के आपके मन में करुणा का भाव उत्पन्न होता है इसे नज़रअंदाज ना करें. इस लेख को पढ़ने के बाद आपके अंदर जो भावनाएं उत्पन्न हुई हैं उस पर विचार करें और तय करें कि आपको एक करुणापूर्ण जीवन व्यतीत करना है या क्रूरतापूर्ण. हम किसी दूसरे के दुख का कारण बनकर कभी सुख से नहीं रह सकते. वीगनिज़्म को अपनाकर हम सीमित संसाधनों पर पड़ने वाले दबाव को प्रभावी तौर पर कम कर सकते हैं और इस तरह हम जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाकर अनगिनत प्रजातियों को विलुप्त होने से बचा सकते हैं.

कुछ महत्वपूर्ण लिंक –

http://www.vegetarian.org.uk
• http://www.notmilk.com
• http://www.vegsource.com
• http://www.newstarget.com
• http://www.thechinastudy.com/
• http://www.milkmyths.org.uk/pdfs/dairy_report.pdf
• http://www.milkmyths.org.uk/intro.php
• http://www.vegetarian.org.uk/index.htm
• http://www.factoryfarming.org.uk/dairy.html
• http://www.vegansociety.com/html/animals/exploitation/cows/dairy_cow.php
• http://www.animalaid.org.uk/campaign/vegan/cattle01.htm
• http://www.halexandria.org/dward074.htm
• http://essenes.net/whyv.html
• http://www.naturalmom.com/milk.htm
• http://nomilk.com/
• http://www.spice-of-life.com/columns/bcancer.html
• http://themilkblog.blogspot.com/
• http://www.foodrevolution.org

वीगन फिल्में- 

• नेल बर्नार्ड की “Raw for 30 Days”
• कॉलिन केम्पबेल की vegsource.com/video/colin.wmv.htm

• Earthlings
http://www.earthlings.com/

• “Peaceable Kingdom: The Journey Home”
http://www.peaceablekingdomfilm.org/

• “Meat Your Meat”
http://www.goveg.com/factoryFarming.asp

• वीगन परिवार
http://www.breakthroughthedocumentary.com

कुछ महत्वपूर्ण वीगन किताबें- 
• The No-Dairy Breast Cancer Prevention Program by Jane A. Plant
• Milk A-Z by Robert Cohen
• Don’t Drink Your Milk! by Frank A. Oski
• The Food Revolution by John Robbins
• The Milk Imperative by Russell Eaton (http://www.milkimperative.com/)

डेरी दूध का विकल्प- आपस्वयम भी बना सकते हैं 

बादाम दूध-
3/4 कप पिसा बादाम
3 1/4 कप  पानी
2 चम्मच मीठा
1/4  चम्मच नमक
1 चम्मच वनीला
1/4 कप  सोयाबीन

• Blend the almonds with a small amount of the water first, then add the remaining water and ingredients.
• Blend until smooth.
• Strain, chill, and serve.

काजू दूध 
1 कप काजू पेस्ट
1 कप गर्म पानी (add 1/4 चम्मच नमक)
1 चम्मच वनीला
3 चम्मच मीठा
3 कप पानी

•  सभी सामग्री को अच्छे से मिलाएँ .
• ठंडा होने पर परोसे.

चावल दूध 
2/3 कप पके चावल
1/3 कप काजू पेस्ट
1 चम्मच वनीला
1/2 चम्मच नमक
1/2 चम्मच मीठा
3 कप गर्म पानी

•  सभी सामग्री को अच्छे से मिलाएँ .
• ठंडा होने पर परोसे

ओटमील दूध
2 कप पका ओटमील
4 कप पानी
1/2 चम्मच नमक
1 मथा केला
1 चम्मच वनीला
2 चम्मच मीठा

•  सभी सामग्री को अच्छे से मिलाएँ .
• ठंडा होने पर परोसे

सीसेम दूध
1 कप सीसेम के बीज़, हल्के
1/4 चम्मच नम
2 कप पानी
1/4 कप  मीठा

• Bring the sesame seeds and water to a boil.
• Simmer 10 minutes.
• Add the remaining ingredients, and blend until smooth.
• Chill and serve.

Note: Non-alcoholic vanilla is now available, extracted with vegetable glycerine.

उपरोक्त समस्त विधियाँ जीव दया डाईजेस्ट के जुलाई-सितंबर 1998 के अंक से ली गयी हैं।

 



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