मांस खाना पर्यावरण के लिए नुक्सानदायक है

मांस खाने से पर्यावरण को होने वाली क्षतियों से आने वाली पीढ़ियों को झूझने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. मांस उद्योग प्रदूषण, भोजन की कमी और हमारे महासागरों के खाली होने जैसी समस्याओं के लिए मुख्य जिम्मेदारों में से एक है. भोजन के लिए पशुपालन करने के लिए भी भारी मात्रा में पानी, ऊर्जा और भूमि की आवश्यकता होती है.

प्रदूषण

औद्योगिक दुनिया में भोजन के लिए पशुओं को पालना जल प्रदूषण के सबसे बड़े कारणों में से एक है. पशुओं के मांस में पाए जाने वाले बैक्टीरिया, कीटनाशक और एंटीबायोटिक्स उनके मल-मूत्र में भी पाए जाते हैं, और इन रसायनों का आसपास के बड़े क्षेत्रों के इकोसिस्टम पर भयावह प्रभाव पड़ सकता है. कुछ देशों में, भोजन के लिए पाले जाने वाले पशु वहाँ रहने वाले मनुष्यों के मल-मूत्र से 130 गुना अधिक मल-मूत्र निष्कासित करते हैं! फार्म फैक्ट्रियों और बूचड़खानों से निकलने वाला ज्यादातर कचरा (मल-मूत्र) जलाशयों और नदियों में बह जाता है और जल स्रोतों को दूषित करता है.

भोजन के लिए पाले जाने वाले पशु अपने मलमूत्र के साथ-साथ अमोनिया और मीथेन जैसे जहरीले गैसे भी छोड़ते हैं. वर्ल्डवाच इंस्टीट्यूट के अनुसार, दुनियाभर में उत्सर्जित होने वाली मीथेन गैस का 15 से 20 प्रतिशत हिस्सा भोजन के लिए पाले जाने वाले पशु उत्सर्जित करते हैं. इन गैसों के कारण जलवायु परिवर्तन होता है और ये पशु फार्मों के आसपास रहने वाले समुदायों के लोगों को बीमार कर सकती हैं.

पशुफार्मों में पशुओं द्वारा उत्पादित भारी मात्रा में मल-मूत्र के जलस्त्रोतों में मिल जाने से पानी दूषित हो जाता है और यह पानी लोगों को बीमार करता है.

भोजन की कमी

भोजन के लिए पशु पालना, उत्पादकता के हिसाब से अत्यधिक नुकसानदायक है क्योंकि जानवर बड़ी मात्रा में अनाज खाते हैं, और बदले में उनसे बेहद कम मात्रा में मांस, डेयरी खाद्य पदार्थ या अंडे प्राप्त होते हैं. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जानवरों से सिर्फ 1 किलोग्राम मांस प्राप्त करने के लिए उनको 10 किलोग्राम अनाज खिलाया जाना चाहिए. अकेले विश्व के मवेशी ही 870 करोड़ लोगों की कैलोरी की जरूरत के बराबर जितना भोजन खाते हैं, जो घरती पर संपूर्ण मानव आबादी से अधिक है.

वर्ल्डवॉच इंस्टीट्यूट के अनुसार, “हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां हर छह में से एक व्यक्ति हर रोज भूखा रहता है, ऐसे में मांस की खपत की राजनीति तेजी से गर्मा रही है, क्योंकि मांस उत्पादन में अनाज का बहुत दुरुपयोग होता है और इंसानों द्वारा सीधे उपभोग किए जाने पर अनाज का सही ढ़ंग से उपयोग होता है. मांस उत्पादन में निरंतर वृद्धि जानवरों को अनाज खिलाने, मांस खाने वाले संपन्न लोगों और दुनिया के गरीबों के बीच अनाज के लिए प्रतिस्पर्धा पैदा करने पर निर्भर है. शोधकर्ताओं ने हाल ही में चेतावनी दी है कि हम भोजन के भयंकर अभाव का सामना कर सकते हैं क्योंकि अत्यधिक मात्रा में हमारा अनाज अब लोगों के बजाय जानवरों को खिलाया जा रहा है.

1 किलोग्राम मांस प्राप्त करने के बदले, गायों को 10 किलोग्राम तक अनाज खिलाया जाना चाहिए.

हमारे महासागरों का सूखना

मछली पकड़ने से दुनिया भर में समुद्री वातावरण को गंभीर नुकसान हो रहा है. पिछले 50 वर्षों में, मछली उद्योग ने बड़ी मछलियों की 90 प्रतिशत आबादी को समाप्त कर दिया है. आज, दुनिया के 17 प्रमुख मछली क्षेत्रों में से 13 क्षेत्र खत्म हो गए हैं या जल्द ही खत्म होने की कगार पर हैं. मछली पकड़ने के जाल रास्ते में आने वाले सभी जानवरों को जाल में फांस लेते हैं. भोजन के लिए उपयोग होने वाली प्रत्येक मछली के साथ-साथ कई अन्य जानवरों को जाल में फंसाकर मार दिया गया जाता है. अकेले एक वर्ष के दौरान, दुनिया भर में प्रति व्यक्ति औसतन 16 किलोग्राम मछलियाँ बेची गईं. उसी वर्ष, प्रति व्यक्ति 200 किलोग्राम समुद्री जानवरों को नेट में फंसाकर मारा गया और उन्हें अनावश्यक बताकर फेंक दिया गया.

पिछले 50 वर्षों में, मछली उद्योग ने बड़ी मछलियों की 90 प्रतिशत आबादी को समाप्त कर दिया है और आज, दुनिया के 17 प्रमुख मछली क्षेत्रों में से 13 खत्म हो गए हैं या जल्द ही खत्म होने की कगार पर हैं.

पानी

इस समय दुनिया भर में लाखों लोग सूखे और पानी की कमी का सामना कर रहे हैं, इसके बावजूद दुनिया की अधिकांश जलापूर्ति को पशु पालन में खपा दिया जा रहा है. 1 किलोग्राम मांस का उत्पादन करने के लिए 20,940 लीटर पानी की खपत होती है, जबकि 1 किलोग्राम गेहूं का उत्पादन करने के लिए केवल 503 लीटर पानी ही चाहिए होता है. शुद्ध शाकाहारी भोजन के लिए प्रतिदिन केवल 1,137 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि मांसाहार के लिए प्रतिदिन 15,160 लीटर से अधिक पानी की आवश्यकता होती है. यह स्पष्ट है कि भोजन के लिए पशु पालना, पहले से ही सीमित पानी की आपूर्ति पर भारी दबाव डालता है, जबकि पानी का सही इस्तेमाल तब होता है जब लोगों की खपत अनुसार फसलों का उत्पादन करने के लिए इसे उपयोग में लाया जाता है.

शुद्ध शाकाहारी भोजन के लिए प्रति दिन केवल 1,137 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि मांसाहार के लिए प्रति दिन 15,160 लीटर से अधिक पानी की आवश्यकता होती है.

ऊर्जा

मांस से हमारी भूख मिटाने से पहले कई तरह की उर्जा खर्च होती है, जैसे कि पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे को उगाने के लिए ईंधन की आवश्यकता होती है. उर्जा खपत की इस लिस्ट में कत्ल करने के लिए बूचड़खानों तक ले जाने वाले ट्रकों के तेल और उनके मांस को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल होने वाली बिजली की खपत शामिल है. कुछ देशों में, प्रत्येक वर्ष इस्तेमाल होने वाले ईंधन और कच्चे माल का एक तिहाई से अधिक भोजन के लिए पाले जाने वाले पशुओं पर खर्च होता है.

भूमि

जैसे-जैसे दुनिया में मांस खाने वालों की संख्या बढ़ी है, वैसे ही दुनिया भर के देश, मांस की आपूर्ति करने के लिए जमीन के बड़े-बड़े हिस्सों को फैक्ट्री फार्मों में तब्दील कर रहे हैं. पालतु पशुओं के चारे के लिए जंगलों को साफ करने की वजह से स्वदेशी पौधों और जानवरों की प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं. इतना ही नहीं, जंगलों की अंधाधुध कटाई से होने वाले मिट्टी के कटाव की वजह से उपजाऊ जमीनें बंजर मरूस्थलों में तब्दील हो रही हैं. असल में, गाय और बकरी जैसे चरने वाले जानवर, भारत के कई हिस्सों को रेगिस्तान में तब्दील करने के लिए जिम्मेदार हैं. ये जानवर सूखे क्षेत्रों में उगने वाले सभी पौधों को खा जाते हैं, और पौधों की जड़ उखड़ने के कारण मिट्टी ढ़ीली हो जाती है, जिसके कारण मिट्टी की अधिकांश उपजाऊ ऊपरी परत बारिश से बह जाती है. जो बच जाता है, वह है एक शुष्क, बेजान रेगिस्तान, जहाँ पौधे नहीं उगते हैं. जिस हिसाब से इतनी अधिक भूमि मांस उद्योग के हाथों अपूरणीय रूप से बर्बाद हो रही है, उसे देखें तो बची-खुची कृषि योग्य जमीन हमारी आबादी को खिलाने के लिए पर्याप्त फसलों का उत्पादन नहीं कर सकती.

फैक्ट्री फार्मों के लिए जगह बनाने और पशुओं को चराने के लिए पूरे इकोसिस्टम को नष्ट किया जा रहा है. ये चरने वाले पशु सभी पौधों को खा जाते हैं और जमीनों को रेगिस्तानों में तब्दील कर उसे बंजर बना देते हैं.

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