पशुओं से अभिनय करवाना क्यों गलत है ?

टेलीविजन, फिल्मों या विज्ञापनों में प्रदर्शन करने वाले हाथी, बंदर, शेर, चीते एवं अन्य जानवरों में कुछ भी ग्लैमरस या खास नहीं होता बल्कि उनसे जबरन अभिनय कराया जाता है। इन जानवरों से इस प्रकार के अभिनय करवाने के लिए उन्हें अक्सर चोटी उम्र में ही उनकी माताओं से अलग कर दिया जाता है। बचपन में ही माँ से अलग होने का यह दुख आजीवन माता एवं उसके बच्चे में भावनात्मक डर पैदा कर देता है।

हाथी व अन्य जंगली जानवर सज़ा के डर से प्रदर्शन करते हैं। फिल्म, टेलीविजन और विज्ञापन उद्योगों में समय का बहुत महत्व है इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कम से कम समय में जानवर सही प्रदर्शन करे इस हेतु पशु प्रशिक्षकों पर बहुत अधिक दबाव होता है। कम समय में सही शॉर्ट दे सकें इसलिए अच्छा भुगतान मिले इसके लिए पशु प्रशिक्षक जानवरों को अपने अनुसार प्रशिक्षित करने व अनुशासनात्मक तरीकों से व्यवहार करने के लिए क्रूर प्रशिक्षण विधियों एवं अत्यधिक बल का उपयोग करते हैं। यहाँ तक की उनको भोजन से भी वंचित रख सकते हैं।

यह पशु जब काम पर नहीं होते तो उनको जंजीरों से बांधकर छोटे, तंग व गंदे पिंजरों में रखा जाता है व उन उन सभी चीजों से वंचित किया जाता है जो उनके लिए प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं जैसे खुद की प्रजातियों के अन्य पशुओं के साथ मिलजुल कर खुले वातावरण में आज़ादी से रहना।

फिल्मों, विज्ञापनों और टेलीविजन में “अभिनय” के लिए आज कई तरह की नयी तकनीकें आ चुकी हैं इसलिए अब पशुओं को प्रताड़ित कर उनसे जबरन अभिनय कराये जाने का अब कोई कारण नहीं है। उन्नत प्रभावी दृश्य एवं कंप्यूटर तकनीक के माध्यम से डिजिटल जानवर बना सकते हैं जो नाटकीय प्रदर्शन करते हैं और बॉक्स-ऑफिस पर हिट भी होते हैं।

आप क्या कर सकते है ?
अत्यधिक बुद्धिमान एवं संवेदनशील जानवर, दुर्व्यवहार सहकर इंसान का मनोरंजन करने की बजाय एक बेहतर जिंदगी के हकदार हैं। यदि आप कोई फिल्म, टेलीविज़न शो या कोई विज्ञापन देखते हैं जो जंगली जानवरों का शोषण करता है, तो उस कार्यक्रम के निर्माताओं से संपर्क करें और उन्हें बताएं कि आपको क्यों आपत्ति है।



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