अंगूरा, कैशमेर और अन्य प्रकार की ऊन

कोई फरक नहीं पड़ता की आप ऊन को “मोहेयर”, “कैशमेर”, “पश्मीना”, या “शाहतोश” जैसे नामों से जानते हैं क्यूंकि किसी भी प्रकार की ऊन का उत्पादन जानवरों को नुकसान पहुंचाता है और यहां तक कि उन्हें मार देता है.

अंगूरा

अंगूरा ऊन अंगूरा खरगोशों से प्राप्त होती है जिनकी त्वचा बेहद नरम एवं मोटी होती है. PETA-एशिया ने चीन में अंगूरा खरगोश फार्मों में खरगोशों के साथ होने वाली क्रूरता का पर्दाफाश किया, जहां दुनिया की 90% अंगूरा ऊन का उत्पादन होता है. खरगोश अत्यधिक सामाजिक होते हैं, फिर भी उन्हें मल-मूत्र से सने पड़े तार के पिंजरों में कैद करके रखा जाता है, जहां वे मुश्किल से हिल-डुल सकते हैं. उनके पैरों के तलवे बहुत नाजुक होते हैं, इसलिए अक्सर तारनुमा पिंजरों के फर्श पर अपना सारा समय बिताने के कारण उनके पैरों में असहनीय पीड़ा देने वाले दर्दनाक फोड़े हो जाते हैं. दो से पांच साल तक, हर तीन महीने में श्रमिक डरे हुए अंगूरा खरगोशों को उनके बाल उतारने के लिए फट्टों के बीच बांध दिया जाता है या उन्हें छत से लटका दिया जाता है जिससे वे दर्द में चीखते रहते हैं.

मादा खरगोश नर की तुलना में अधिक ऊन का उत्पादन करती हैं, इसलिए बड़े फार्मों पर, जो नर खरगोश प्रजनन करने योग्य नहीं होते हैं, उन्हें पैदा होते ही मार दिया जाता है. चीनी अंगोरा फार्मों पर काम करने वाले मजदूरों ने खरगोशों के सिर पर चाकू का पीछला हिस्सा मारकर, उन्हें उल्टा लटका दिया, और गला काटकर उनकी चमड़ी उधेड़ ली. तब भी कुछ खरगोश लातें मार रहे थे और झटके मार रहे थे, जब मजदूर उनकी खाल निकाल रहे थे.

कैशमेर

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कैशमेर ऊन कैशमेर भेड़ों से निकाली जाती है, जिनकी मोटी त्वचा सर्दियों की हाड़ कम्पाने वाली ठंड के दौरान उन्हें गर्म रखती है. हालांकि, बाजार की मांग को पूरा करने के लिए, श्रमिक सर्दियों के दौरान भेड़ों  की मोटी त्वचा को काट देते हैं, जिससे कई भेड़ें अत्यधिक ठंड के कारण मर जाती हैं. अगर किसी जवान भेड़ की त्वचा में दोष होता हैं, तो उसे मार दिया जाता है.

PETAएशिया ने दुनिया की 90% कैशमेर का उत्पादन करने वाले चीन और मंगोलिया के कैशमेर फार्मों और बूचड़खानों की जांच-पड़ताल कर बड़ा खुलासा किया. जांच टीम ने पाया किया कि श्रमिक बड़ी बर्बरता से भेड़ों को पकड़कर तेज धातु की कंघी से उनके बाल उधेड़ते हैं और बकरियां दर्द से चिखती रहती हैं. कैशमेर फार्मों पर कर्मचारियों की वजह से भेड़ों को होने वाले घावों के लिए कोई दर्दरोधक दवा या पशु चिकित्सा नहीं दी जाती, इतना ही नहीं एक कार्यकर्ता ने तो एक बकरी के घाव में चावल की शराब डाल दी. जब भेड़ें लाभदायक नहीं रहतीं, तो उन्हें उनके मांस के लिए मार दिया जाता है. भेड़ों को बेहोश करने के लिए कर्मचारियों ने हथौड़ों से उनके सिर पर वार किए और दूसरे जानवरों के सामने उनका गला काटने के लिए उनकी एक टांग पकड़ बूचड़खाने में खींचकर ले गए. भेड़ें को गंदे फर्श पर मरने के लिए छोड़ दिया गया, जिसके कारण कुछ भेड़ें तो दो मिनट बाद भी तड़प रही थीं.

चीन में कैशमेर फार्मों पर जानवरों के साथ क्रूर व्यवहार करने के लिए कोई दंड नहीं है, और मंगोलिया में भी यही हाल है. कैशमेर उद्योग पर्यावरणीय रूप से विनाशकारी भी है और मिट्टी के कटाव और भूमि को बंजर बनाने में अहम भूमिका निभाता है. असल में, मंगोलिया के 65% घास के मैदान ख़राब हो चुके हैं, और देश की 90% जमीन बंजर होने की कगार पर है.

पश्मीना एक प्रकार की कैशमेर ऊन है जो तिब्बती पहाड़ी भेड़ों से निकाली जाती है जिनका शोषण कर ऊन उधेड़ने के लिए मार दिया जाता है.

मोहेयर (महीन नरम ऊन)

मोहेयर उद्योग द्वारा पाले जाने वाली अंगूरा भेड़ों का कोई बेहतर हाल नहीं है. PETA-एशिया ने दुनिया में सबसे ज्यादा मोहेयर उत्पादन करने वाले दक्षिण अफ्रीका के मोहेयर उद्योग की जांच-पड़ताल की. जांच पड़ताल में टीम ने पाया कि कर्मचारियों ने बड़ी कैंची से भेड़ों के कान काट दिए और बाल काटने से पहले भेड़ों के बालों में लगी गंदगी को दूर करने के लिए उन्हें जहरीले कैमिकल के टैंकों में फेंक दिया गया. इतना ही नहीं, उन्हें टांगों, सिंग और पूंछ से पकड़कर बुरी तरह घसीटा और फेंका गया. चूंकि ऊन काटने वाले कर्मचारियों को घंटे के बजाय कटरी गयी ऊन की मात्रा के हिसाब से भुगतान किया जाता है, इसलिए वे जल्दी और असभ्य/क्रूर तरीके से काम निपटाने के चलते, अक्सर त्वचा के कई गैर-जरूरी हिस्सों को भी काट देते हैं, और वे कोई दर्द निवारक दवा का उपयोग किए बिना ही घावों को सील देते हैं.

उनके शरीर से ठंड की प्राकृतिक रोधक और सुरक्षा करने वाली मोटे बालों की परत हटाए जाने से कई भेड़ों की मृत्यु हो जाती है. एक किसान ने स्वीकार यह किया कि इस प्रक्रिया के कारण पूरे दक्षिण अफ्रीका में एक सप्ताह के भीतर 40,000 भेड़ों की मौत हो गई थी, और एक दूसरे किसान का कहना था कि कुछ फार्मों पर 80% तक बकरियों की मौत हो जाती है.

इस क्रूरता से पांच या छह साल दोहन करने के बाद, मोहेयर उद्योग बकरियों को बूचड़खाने में भेज देता है, जहां उन्हें उल्टा लटकाकर बिजली के झटके दिए जाते हैं और उनके गले काट दिए जाते हैं. जांच टीम ने एक कर्मचारी को चाकू से पूरी तरह से सचेत भेड़ों के गले काटते हुए, उनकी गर्दन को तोड़ते और एक जानवर का सिर फोड़ते हुए देखा.

शाहतोश

शाहतोश खत्म होने के कगार पर खड़े तिब्बती हिरनों की त्वचा से बनती है. तिब्बती हिरनों को पाला नहीं जा सकता, इसलिए मनुष्य उनसे ऊन प्राप्त करने के लिए उन्हें मार देते हैं. 1976 के बाद से शाहतोश उत्पादों को बेचना या अपने पास रखना गैरकानूनी है, लेकिन लोग आज भी हर साल हजारों तिब्बती हिरनों से शॉल बनाने और काले बाजार में बेचने के लिए उनकी हत्या करते हैं.

जानवरों को अपने वस्त्रों के लिए मारने की बजाय उन्हें बचाइए

भेड़, खरगोश, और हिरनों के बाल उनके शरीर के लिए बने हैं, इसलिए उनके बालों से बने उत्पादों को पहनना छोड़ दें और उन्हें जानवरों पर ही रहने दें! जो आप खरीद और पहन रहे हैं, उस उत्पाद के लिए किसी जानवर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया है, यह सुनिश्चित करने के लिए PETA-इंडिया की “PETAस्वीकृत वीगन” लोगो लगी हुई कम्पनियों की लिस्ट चैक करें.

 



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