जानवरों पर प्रयोग करना क्यों गलत है?

प्रगतिशील वैज्ञानिक यह जानते हैं और लगातार हुए अध्ययनों ने साबित कर दिया है कि जानवरों पर प्रयोग करने से न केवल जावनरों और इंसानों को क्षति पहुंचती है, बल्कि अनमोल संसाधनों और समय की भी बर्बादी होती है. शुक्र है कि नई गैर-पशु प्रौद्योगिकी और अनुसंधान विधियां आसानी से उपलब्ध हैं जोकि बेहतर परिणाम देती हैं और वैज्ञानिक बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए मनुष्यों पर इस्तेमाल कर सकते हैं.

सही सूचनाओं से लैस निम्नलिखित प्रतिक्रियाएं मिथकों को खारिज करते हुए उन दावों के जवाब में हैं, जो आमतौर पर जानवरों पर प्रयोगों के समर्थन में किए जाते हैं.

दावा: “हर प्रमुख चिकित्सा प्रगति जानवरों पर प्रयोगों के कारण हुई है.”

यह बिल्कुल गलत है. रॉयल सोसाइटी ऑफ मेडिसिन नामक सम्मानित जर्नल में प्रकाशित एक लेख ने भी इस दावे का मूल्यांकन किया है और यह निष्कर्ष निकाला है कि इस दावे के पक्ष मे कोई भी सबूत नहीं है. जानवरों पर प्रयोग मानव स्वास्थ्य के लिए विश्वसनीय नहीं हैं, और कई प्रयोग तो केवल जिज्ञासा भर में किए जाते हैं, जो बीमारियों का इलाज करने का झूठा ढोंग तक भी नहीं कर पाते.

येल स्कूल ऑफ मेडिसिन और कई ब्रिटिश विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं ने बीएमजे (BMJ) में एक पत्र प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था “जानवरों पर शोध करने से मनुष्य के लाभान्वित होने के प्रमाण कहाँ है?” शोधकर्ताओं ने व्यवस्थित रूप से उन अध्ययनों की जांच की जिनमें जानवरों का उपयोग हुआ है और यह निष्कर्ष निकाला कि जानवरों पर प्रयोग से मनुष्यों को फायदा होने वाले विचार के समर्थन में बेहद कम साक्ष्य मौजूद हैं.

वास्तव में, स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई सबसे महत्वपूर्ण उत्थान (खोजें) इंसानों पर हुए अध्ययनों के चलते हुए हैं, जिनमें कोलेस्ट्रॉल और हृदय रोग और धूम्रपान और कैंसर के बीच संबंधों की खोज, एक्स-रे के विकास और एड्स वायरस के आइसोलेसन शामिल हैं.

गैर-पशु परीक्षण विधियों के विकास में संसाधनों को समर्पित कर मानव स्वास्थ्य क्षेत्र के उन्नत होने की अधिक संभावना है, जिसमें आमतौर पर जानवरों पर गलत परीक्षणों की बजाय मनुष्यों के लिए सस्ता, तेज, और अधिक प्रासंगिक होने की क्षमता है.

दावा: “अगर हमने जानवरों का उपयोग नहीं किया, तो हमें लोगों पर नई दवाओं का परीक्षण करना पड़ता.”

हम पहले से ही मनुष्यों पर दवाओं का परीक्षण करते हैं क्योंकि जानवरों की शरीर विज्ञान हमारे से अलग है. हर प्रजाति वायरस, ड्रग्स और अन्य पदार्थों पर अलग तरह से प्रतिक्रिया करती है. यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, पशु परीक्षणों में सुरक्षित और प्रभावी दिखने वाली 95 फीसदी दवाइयां मानव परीक्षणों में विफल होती हैं क्योंकि वे कोई असर नहीं कर पाती हैं और खतरनाक होती हैं. अमेरिका में मानव उपयोग के लिए अनुमोदित दवाओं में से आधी दवाओं को उन गंभीर या घातक दुष्प्रभावों के कारण दोबारा चिन्हित किया जाता है जो जानवरों पर परीक्षण करते वक्त नहीं खोजे गए थे. यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा है, “वर्तमान में, दस प्रयोगात्मक दवाओं में से नौ क्लीनिकल अध्ययनों में विफल रही हैं क्योंकि प्रयोगशाला और जानवरों पर अध्ययन के आधार पर हम सटीक रूप से भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं कि वे लोगों पर कैसा असर करेंगी.”

दावा: “हमें जीवित जानवरों में कोशिकाओं, टिश्यूज और अंगों के जटिल संबंधों का निरीक्षण करना होगा.”

पूरी तरह से अलग-अलग प्रजातियों के स्वस्थ प्राणियों में, कृत्रिम रूप से एक ऐसी स्थिति उत्पन्न करना, जोकि उनके लिए सामान्य नहीं है और उन्हें अप्राकृतिक व तनावपूर्ण वातावरण में रखकर हासिल हुए परिणामों को स्वाभाविक रूप से इंसानों में होने वाली बीमारियों में लागू करने की कोशिश करना एक संदिग्ध उपक्रम मात्र है. आधुनिक, अत्याधुनिक तकनीक, जैसे परिष्कृत मानव कोशिका- और ऊतक-आधारित अनुसंधान विधियों से शोधकर्ताओं को नई दवाओं, टीकों और रासायनिक कंपाउड्स की सुरक्षा और प्रभावशीलता के परीक्षण से प्राप्त होने वाले परिणाम, जानवरों को मारने से प्राप्त आंकड़ों की तुलना में मनुष्यों में स्वाभाविक रूप से होने वाली बीमारियों के लिए अधिक विश्वसनीय और प्रासंगिक हैं.

दावा: “पशु कैंसर के खिलाफ लड़ाई में मदद करते हैं.”

2003 और 2011 के बीच विकसित 4,451 प्रयोगात्मक कैंसर दवाओं के सर्वेक्षण में पाया गया कि इंसानों पर क्लीनिकल परीक्षणों के दौरान 93 प्रतिशत से अधिक दवाएं पहले चरण में ही असफल रहीं, भले ही सभी दवाओं का जानवरों पर सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था. इस अध्ययन के शोधकर्ता बताते हैं कि चूहों पर इंसानी ट्यूमर को प्लांट करने जैसी तकनीकों के माध्यम से बनाए गए मानव कैंसर के पशु “मॉडल” यह बताने में बेहद कमजोर साबित हो सकते हैं कि मनुष्य में दवा कैसे काम करेगी. पूर्व अमेरिकी नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. रिचर्ड क्लाऊसनर के अनुसार, “कैंसर अनुसंधान का इतिहास चूहों के कैंसर का इलाज करने का इतिहास रहा है. हमने दशकों से कैंसर के चूहों को ठीक किया है और यह केवल मनुष्यों में काम नहीं करता है.”

दावा “हम जानवरों का उपयोग नहीं करना चाहते हैं, लेकिन हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है.”

आधुनिक अनुसंधान में सबसे महत्वपूर्ण यह मान्यता है कि जानवर शायद ही कभी मानव शरीर के लिए अच्छे मॉडल के रूप में काम करते हैं. ह्युमन क्लीनिकल ​​और महामारी विज्ञान के अध्ययन, मानव ऊतक- और कोशिका-आधारित अनुसंधान विधियां, शवों पर प्रयोग, कृत्रिम मानव-रोगी सिम्युलेटर और कम्प्यूटेशनल मॉडल, जानवरों पर प्रयोग करने के मुकाबले अधिक विश्वसनीय, अधिक सटीक, कम खर्चीले हैं, और प्रयोग करने के लिए अधिक मानवीय विकल्प हैं. डाक टिकट के आकार के कार्यशील अंगों को विकसित करने के लिए वास्तविक मानव कोशिकाओं और टिश्युज का उपयोग कर बनने वाली उन्नत किस्म की माइक्रोचिप्स, शोधकर्ताओं को रोगों का अध्ययन करने और उनके इलाज के लिए नई दवाओं को विकसित करने और परीक्षण करने में सहायता करती हैं. प्रगतिशील वैज्ञानिकों ने मानव मस्तिष्क कोशिकाओं का उपयोग कर एक मॉडल “माइक्रोब्रेन” विकसित किया है, जिसका उपयोग ट्यूमर के साथ-साथ कृत्रिम त्वचा और बोन मैरो का अध्ययन करने के लिए भी किया जा सकता है. अब हम पुनर्निर्मित ह्युमन टिश्यूज (उदाहरण के लिए MatTek’s EpiDerm ™) का उपयोग करके त्वचा की जलन, ख़ाज-खुजली का परीक्षण कर सकते हैं. इतना ही नहीं ह्युमन टिश्यूज का उपयोग कर टीके विकसित कर उनका परीक्षण कर सकते हैं, और खरगोशों को मारने के बजाय खून के सैम्पलों का इस्तेमाल कर प्रैगनेंसी टेस्ट भी कर सकते हैं.

दावा: “जानवर मनुष्यों के उपयोग के लिए होते हैं. यदि हमें एक इंसान के हित के लिए 1,000 या 100,000 पशुओं की बलि देनी पड़े, तो कोई दिक्कत नहीं है.”

खोजार्थी शारीरिक और संज्ञानात्मक विशेषताओं के आधार पर जानवरों को दर्द करने का “अधिकार” होने का दावा करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनका तर्क इतना अनैतिक है कि यह “कमत्तर” मानसिक क्षमताओं वाले मनुष्यों, जैसे शिशुओं और बौद्धिक विकलांग लोगों के साथ प्रयोग करने को भी उचित ठहरा देगा. अगर ऐसे एक व्यक्ति पर प्रयोग करने से 1,000 बच्चे लाभान्वित हो सकते हैं, तो क्या हम ऐसा करेंगे? बिलकूल नहीं! इसके अलावा, जानवरों पर किए गए प्रयोगों पर बर्बाद किए जाने वाले धन का इस्तेमाल आधुनिक, प्रासंगिक, गैर-पशु परीक्षणों पर करके इंसानों की सहायता की जा सकती है.

 



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