सफलता : भारतीय फार्माकोपिया आयोग ने घातक पशु प्रयोगों की अनिवार्यता समाप्त की
PETA इंडिया के सुझाव से सरकारी संस्था को यह दयालु निर्णय लेने की प्रेरणा मिली
नयी दिल्ली : दिनांक 29 अप्रेल को हिमांचल प्रदेश के कसौली में आयोजित विशेषज्ञों की सातवीं समूह बैठक के दौरान भारतीय फार्माकोपिया आयोग ने जानवरों की रक्षा हेतु यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया। पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया के वैज्ञानिकों ने भी इस बैठक में हिस्सा लिया व फार्माकोपिया द्वारा पशुओं पर परीक्षण न किए जाने के निर्णय का समर्थन किया। भारतीय फार्माकोपिया 2018 भारत में निर्मित एवं विपणन होने वाली दवाओं के लिए अनुमोदित परीक्षणों का आधिकारिक संकलन हैं। आईपीसी के इस निर्णय का तात्पर्य यह है कि गिनी सुअरों एवं चूहों पर परीक्षण करके संदूषण की संभावना का आंकलन करने की अनिवार्यता अब समाप्त हो गयी है। अभी तक होने वाले इन परीक्षणों में जानवरों को जैविक दवा दी जाती है और यदि दवा खाने के बाद किसी जानवर की मृत्यु नहीं होती तो उस दवा को सुरक्षित मान लिया जाता है। परीक्षण समाप्त होने तक अगर जानवर की मृत्यु नहीं होती तो उस अध्ययन के अंत में उसकी हत्या कर दी जाती है। जानवरों पर यह पीड़ा भरे प्रयोग न करने के इस मानवीय निर्णय से हजारों जानवरों की जिंदगी बच सकेगी।
PETA इंडिया की साईन्स पॉलिसी एडवाईजर दिप्ति कपूर कहती हैं- “आईपीसी का यह एतिहासिक कदम क्रूर एवं दोषपूर्ण वैज्ञानिक परीक्षणों में संवेदनशील गिनी सुवरों एवं चूहों को पीड़ा सहने एवं मरने से बचाएगा। विज्ञान का भविष्य भी पशु क्रूरता मुक्त है व PETA इंडिया यह सुनिश्चित करने के लिए काम करता रहेगा कि बाकी अन्य पशुओं पर होने वाले प्रयोगों को भी आधुनिक एवं मानवीय तकनीकों में बदला जा सके।“
PETA इंडिया जो इस सरल सिधान्त के तहत काम करता है “जानवर हमारे प्रयोग करने के लिए नहीं हैं”, यह मानता है कि इंसान एवं जानवरों के बीच शारीरिक भिन्नता होती है तथा जानवरों पर किए गए प्रयोग इन्सानों के लिए अक्सर भ्रामक होते हैं।
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