PETA इंडिया की शिकायत के बाद जंजीर में कैद बंदर का रेसक्यू किया गया
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10 October 2024
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ग्वालियर – एक दयालु नागरिक से यह जानकारी प्राप्त होने के बाद कि ग्वालियर के लश्कर स्थित एक मंदिर में रीसस मकाक नामक प्रजाति के एक बंदर को अवैध रूप से बंधी बनाया गया है, पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने मध्य प्रदेश वन विभाग के सहयोग से इस पीड़ित बंदर को सफलतापूर्वक रेस्कयू किया। अब इस बंदर को वापस जंगल में सुरक्षित छोड़ दिया गया है।
इस बंदर का जंजीर में बंधे हुए एवं वापिस उसके प्रकृतिक निवास जंगल में रिहा करने का वीडियो मांगे जाने पर उपलब्ध कराया जाएगा।
PETA इंडिया के क्रुएल्टी रिस्पांस कोर्डिनेटर वीरेंद्र सिंह ने कहा, “हम ग्वालियर के संभागीय वन अधिकारी श्री अंकित पांडे, IFS, का अत्यंत आभार प्रकट करते हैं जिनके सहयोग से PETA इंडिया द्वारा जंजीरों से कैद बंदर को दयनीय परिस्थिति से बचाया गया। PETA इंडिया जनता से अनुरोध करता है कि वह किसी भी प्रकार की पशु क्रूरता के खिलाफ़ अपने स्थानीय पशु संरक्षण समूह और पुलिस या वन्यजीव से संबंधित मामलों में अपने स्थानीय वन विभाग के पास रिपोर्ट दर्ज़ कराए।“
लोगों के घरों में “पालतू पशुओं” के रूप में रखे गए या नाच करवाने के लिए मजबूर किए जाने वाले बंदरों को अक्सर जंजीरों से बांध दिया जाता है या छोटे पिंजरों में कैद करके रखा जाता है। इंसानों के मनोरंजन के ख़ातिर करतब सिखाने के लिए उन्हें अक्सर मारा-पीटा जाता है और भूखा रखकर प्रताड़ित किया जाता है एवं डरा-धमकाकर प्रशिक्षित किया जाता है। यहाँ तक कि, यह स्वयं का बचाव न कर सकें इसलिए इनके दांत तक नोच लिए जाते हैं। वर्ष 1998 में, केंद्र सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत एक अधिसूचना जारी कर निर्देश दिया था कि बंदरों और जंगली पशुओं की विभिन्न प्रजातियों को प्रदर्शन करने वाले पशुओं के रूप में प्रदर्शित या प्रशिक्षित नहीं किया जाना चाहिए।
PETA इंडिया जो इस धारणा में विश्वास रखता है कि “पशु हमारा दुर्व्यवहार सहने के लिए नहीं है”, प्रजातिवाद का विरोध करता है क्योंकि यह एक ऐसी विचारधारा है जिसमे मनुष्य इस संसार में स्वयं को सर्वोपरि मानकर अन्य समस्त प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी वेबसाईट PETAIndia.com पर जाएँ और हमें X, Facebook, व Instagram सोशल मीडिया पर फॉलो करें।
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