PETA इंडिया की अपील के बाद दिल्ली सरकार ने ग्लू ट्रेप पर भी रोक लगाई

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13 September 2023

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दिल्ली – पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA), इंडिया की अपील के बाद, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के पशुपालन निदेशक ने एक परिपत्र जारी कर सभी उप निदेशकों, जिला पशुपालन अधिकारियों और पशु चिकित्सा अधिकारियों को एक अधिसूचना जारी की है, जिसमें भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड (AWBI) द्वारा प्रसारित सलाह को दोहराया गया है। इस अधिसूचना के माध्यम से ग्लू ट्रेप के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर राज्यव्यापी प्रतिबंध लगाया गया है। सर्कुलर में 2001 और 2020 में AWBI द्वारा जारी की गई ऐडवाइसरी का हवाला दिया गया है जिसमें ग्लू ट्रैप के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने का आह्वान किया गया है। इस अधिसूचना में ग्लू ट्रेप में फंसने वाले पक्षियों, गिलहरियों, सरीसृपों और मेंढकों जैसी गैर-लक्षित प्रजातियों सहित जानवरों द्वारा सहन की जाने वाली पीड़ा को भी रेखांकित किया गया है।

दिल्ली सरकार द्वारा PETA इंडिया को भेजी गई अधिसूचना की एक प्रति यहां उपलब्ध है।

समूह ने अपनी अपील में राज्य सरकार से भारतीय जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड द्वारा जारी किए गए सर्कुलरों को लागू करने के लिए तत्काल कदम उठाने का अनुरोध किया था जिससे ग्लू ट्रेप के क्रूर और अवैध उपयोग पर रोक लगाई जा सके। इससे पहले आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, लक्षद्वीप, मध्य प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य भी इस प्रकार के सर्क्युलर ज़ारी कर चुके हैं।

PETA इंडिया की एडवोकेसी ऑफिसर फरहत उल ऐन ने कहा, “ग्लू ट्राप्स के निर्माण और विक्रेता छोटे जीवों को बेहद धीमी और दर्दनाक मौत की सजा देते हैं और इस प्रकार के क्रूर उपकरण आम जनता को अपराधी बना देते हैं। PETA इंडिया दिल्ली सरकार का आभार प्रकट करते है कि उन्होंने इन कमजोर जानवरों के हित में कदम उठाकर पूरे देश के लिए एक दयालु मिसाल कायम करी।”

ग्लू ट्रेप जैसे क्रूर उपकरणों का उपयोग “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम”, 1960 की धारा 11 के तहत एक दंडनीय अपराध है। इन्हें आम तौर पर प्लास्टिक ट्रे या गत्ते की चादरों को बेहद मज़बूत ग्लू से ढककर बनाया जाता हैं। इस प्रकार के ट्रेप में पक्षी, गिलहरी, सरीसृप, मेंढक और अन्य जानवरों भी अनचाहे में कैद हो सकते है जो “वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972” का उल्लंघन है जिसके अंतर्गत संरक्षित देसी जंगली प्रजातियों का “शिकार” पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है। इस प्रकार के ट्रेप में फंसे चूहे या अन्य जानवर भूख-प्यास या अत्यंत पीड़ा के चलते अपनी जान गवा सकते हैं। कुछ जानवर इस ग्लू में अपनी नाक या मुंह फंस जाने के कारण दम घुटने से मर जाते हैं या अन्य आज़ादी की छटपटाहट में अपने ही अंगों को स्वयं कुतरने लगते हैं जिसके चलते खून की कमी के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। इतने पर भी जो जानवर जीवित पाये जाते हैं उन्हें ट्रेप सहित कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है या इन्हें कुचलने और डूबने जैसी अधिक बर्बर मौत का सामना करना पड़ता है।

रोडेंट की जनसंख्या को नियंत्रित करने का एकमात्र दीर्घकालिक तरीका किसी क्षेत्र को उनके लिए अनाकर्षक या दुर्गम बनाना है। काउंटर की सतहों, फर्शों और अलमारियाँ को साफ रखकर उनके भोजन के स्रोतों को समाप्त करना और भोजन को च्यू-प्रूफ कंटेनरों में स्टोर करना भी एक अच्छा उपाय है। इन जानवरों को बाहर निकालने के लिए कूड़ेदानों को सील करें और अमोनिया में डूबाकर रुई या कपड़े का एक गोला रखे क्योंकि इन्हें गंध से सख्त  नफरत होती हैं। जानवरों को बाहर निकलने हेतु कुछ दिन देने के बाद, प्रवेश बिंदुओं को फोम सीलेंट, स्टील वूल, हार्डवेयर क्लॉथ या मेटल फ्लैशिंग का उपयोग करके सील करें जिससे यह वापस अंदर न आ सके। किसी भी रोडेंट को घर से निकालने हेतु मानवीय पिंजरे के जाल का उपयोग किया जाना चाहिए और उन्हें कम दूरी के भीतर छोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि अपने प्राकृतिक क्षेत्र से बाहर स्थानांतरित होने वाले जानवरों को पर्याप्त भोजन-पानी खोजने में परेशानी होती है जिसके परिणामस्वरूप इनकी मृत्यु भी हो सकती है।

PETA इंडिया इस सिद्धान्त के तहत कार्य करता है कि, “जानवर हमारे किसी भी तरह से दुर्व्यवहार सहने के लिए नहीं हैं”, प्रजातिवाद का विरोध करता है। प्रजातिवाद एक ऐसी धारणा है जिसके तहत इंसान स्वयं को इस संसार में सर्वोपरि मानकर अन्य प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है। सूअर सामाजिक और समझदार पशु होते होते हैं जिनका शोषण नहीं किया जाना चाहिए। अधिक जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट PETAIndia.com पर जाएँ और हमें TwitterFacebook, तथा Instagram पर फॉलो करें।

 

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