COVID 19 महामारी के चलते, PETA इंडिया अनुरोध करता है कि जनता की सुरक्षा के मद्देनजर पर्यटन स्थलों पर पशुओं के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाए
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10 जून 2020
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PETA समूह ने इंगित किया है कि जुनोटिक रोगों का ख़तरा, क़ानूनों का खुलेआम उलंघन और पशु कल्याण से जुडी समस्याओं के चलते ऐसा करना आवश्यक है।
नई दिल्ली – पर्यटन मंत्रालय ने यह घोषणा की थी की COVID-19 के चलते वह जनता की सुरक्षा के मद्देनजर पर्यटन उद्योग के लिए नयी सर्टिफिकेशन प्रक्रिया बनाने पर काम कर रहा है ताकि सुरक्षा एवं सेनिटेशन के न्यूनतम मानक तय किए जा सकें।पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ़ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने पर्यटन मंत्री प्रल्हाद सिंह पटेल जी को पत्र भेजकर आग्रह किया है कि भारत के सभी पर्यटन स्थलों पर जानवरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाए। PETA समूह ने इंगित किया है कि ज़ूनोटिक रोगों का संक्रमण (जो जानवरों से मनुष्यों में फैलते हैं), पशु संरक्षण कानूनों के बड़े पैमाने पर हो रहा उल्लंघन और अन्य पशु कल्याण से संबन्धित मुद्दों के चलते पशुओं को तत्काल प्रभाव से पर्यटन स्थलों से हटाया जाना जरूरी है।
हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्य में COVID-19 का सबसे पहला संक्रमण चीन के वुहान शहर की मांस मंडी से आया था। पर्यटन मंत्रालय द्वारा जंगली एवं अन्य पशुओं को पर्यटन गतिविधियों में शामिल करने से इन पशुओं से मनुष्यों में जुनोटिक रोग फ़ेल सकते हैं जैसे हाथियों से ट्यूबरक्युलोसिस, घोड़ों से ग्लैंडर्स, ऊँटों से कैमलपॉक्स और मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (जो कोरोनोवायरस से ही उत्पन्न होते हैं) यह रोग शामिल हैं।
PETA इंडिया के CEO डॉ. मणिलाल वलियाते कहते हैं,- “ हाथी, घोड़े तथा ऊंट केवल इसलिए मनुष्यों को अपनी पीठ पर सवारी करवाते हैं क्यूंकि उन्हें हिंसक प्रशिक्षणों के माध्यम से ऐसा करने के लिए मजबूर किया जाता है। हम पर्यटन मंत्रालय को बताना चाहते हैं कि, ऐसा करना केवल जानवर के लिए ही नहीं बल्कि इंसानों के लिए भी सुरक्षित नहीं है। दुर्व्यवहार से पीड़ित जानवर खतरनाक हो सकता है क्योंकि वह कभी भी और कहीं भी आक्रामक हो सकते हैं। । पर्यटन स्थलों पर इस्तेमाल होने वाले जानवर अक्सर विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रासित होते हैं जिनका संक्रमणउनके आस–पास के इंसानों में आसानी से हस्तांतरित हो सकता है।“
जिन हाथी, ऊँट और घोड़ों का उपयोग पर्यटकों के लिए किया जाता है वे स्पष्ट रूप से अवैध हैं क्योंकि यह जानवर जीव जंतु कल्याण बोर्ड ऑफ इंडिया (AWBI) के साथ पंजीकृत नहीं होते इसलिए इनका इस्तेमाल सीधे तौर पर ‘परफोर्मिंग एनिमल (रजिस्ट्रेशन) रूल्स 2001’ का उल्लंघन करता है। जानवरों की सवारी करना, करतब दिखाने के लिए मजबूर करना, इन्सानों के साथ संपर्क में आना, उनके साथ फोटो एवं सेल्फ़ी खिचवाना इत्यादि समस्त गतिविधियां पशु कल्याण से जुड़े मुद्दों से संबन्धित हैं। उ जब सवारी करने के लिए जानवरों का उपयोग किया जाता है, तो जानवरों को हथियारों से नियंत्रित किया जाता है और उन्हें मनुष्यों, गाड़ियों और पर्यटकों के सामान का भार उठाने के लिए मजबूर किया जाता है। हाथी व अन्य जानवर जब काम पर नहीं होते है तो उन्हें जंजीरों में बांधकर रखा जाता है। हेरिटेज एनिमल टास्क फोर्स द्वारा संकलित आंकड़ों के मुताबिक, अकेले केरल राज्य में बंदी हाथियों ने 15 साल के भीतर 526 लोगों की जान ली है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने “AWBI एवं ए नगरजा व अन्य” मामले में दिनांक 7 मई 2014 को दिये गए अपने आदेश में उल्लेख किया था कि “पशुओं को मनोरंजन एवं प्रदर्शनी हेतु इस्तेमाल करना, द प्रीवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल एक्ट, 1960 के नियम 11 के तहत छूट की श्रेणी में नहीं आता इसलिए सिर्फ आवश्यकता के अनुसार उनसे ऐसा करवाना किसी अधिकार में नहीं आता।
PETA इंडिया इस सिद्धांत के तहत काम करता है कि – “जानवर हमारा मनोरंजन करने हेतु नहीं हैं”- PETA इंडिया वर्ष 2017 में AWBI द्वारा केंद्र सरकार को जारी की गई उस एडवाइजरी का समर्थन करता है, जिसमें सर्कस में जानवरों के उपयोग को समाप्त करने के लिए मजबूत कानून बनाए एवं लागू किए जाने की सिफारिश की गई है और साथ ही 2016 की एडवाइजरी का भी समर्थन करता है जिसमे यह सिफारिश की है कि, केंद्र सरकार भारत में हाथियों के उपयोग, प्रशिक्षण एवं प्रदर्शनी पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक अधिसूचना जारी करे।
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