PETA इंडिया की अपील के बाद कर्नाटक सरकार ने गर्भधारण के दौरान सुअरों को क्रूर पिंजरों में कैद करने पर रोक लगाई

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17 September 2021

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Pradeep Ranjan Doley Barman; [email protected]

PETA इंडिया की अपील के बाद, कर्नाटक राज्य के जीव-जन्तु कल्याण बोर्ड ने सभी जिला उप निदेशकों को एक सर्कुलर ज़ारी करके सुअर फार्मिंग में जानवरों को कैद करने हेतु प्रयोग होने वाले क्रूर पिंजरों के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर रोक लगाने के निर्देश दिए।

इस प्रकार के विशेष पिंजरे व्यापक रूप से की जाने वाली सुअर फार्मिंग के विवादास्पद औज़ार हैं। लोहे से निर्मित इस प्रकार के तंग पिंजरों को जेस्टेशन क्रेट या “सो स्टॉल” कहा जाता है जो बिल्कुल सुअर के आकार के होते हैं और इनका फर्श कंक्रीट से बना होता है। इस प्रकार के तंग पिंजरों में जानवरों की किसी भी प्रकार की शारीरिक गतिविधि जैसे आसानी से उठाना या चलना-फिरना पूर्ण रूप से बाधित होती है। अधिकतर इनका प्रयोग गर्भवती सुअरों को कैद करने हेतु किया जाता है। गर्भवती सुअरों को प्रसव के समय इन पिंजरों में रखा जाता है और इनके द्वारा नवजात शिशुओं को अपनी माताओं से अलग किया जाता है।

KAWB की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों प्रकार के पिंजरों में सूअरों को किसी प्रकार की शारीरिक गतिविधि हेतु पर्याप्त जगह नहीं मिलती। इसके कारण सुअरों को स्वयं के मल-मूत्र के बीच रहने हेतु बाध्य किया जाता है जिसके चलते उनके शरीर पर गहरे घाव हो जाते हैं।

अपनी अपील में PETA इंडिया ने बताया, सुअरों के राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र ने इस प्रकार के पिंजरों को अवैध घोषित किया है क्योंकि यह “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” की धारा 11(1)(e) का उल्लंघन करते हैं। यह पिंजरे इतने तंग होते हैं कि इनमें पशु कोई भी शारीरिक गतिविधि नहीं कर सकता। इन पिंजरों में सुअरों को कैद करके उन्हें उनकी हर प्राकृतिक और महत्वपूर्ण ज़रूरत से वंचित रखा जाता है जैसे भोजन की खोज हेतु सुरक्षित वातावरण, अपने नवजात शिशुओं को पोषित करना, अन्य सूअरों के साथ सामाजिक संबंध स्थापित करने और मिट्टी में छेद करके अपने शारीरिक तापमान को नियंत्रित करना। इस कैद के चलते होने वाले अत्यधिक तनाव और हताशा के परिणामस्वरूप सुअरों में गंभीर मानसिक बीमारी के लक्षण देखने को मिलते हैं जैसे अपने दांतों से पिंजरे की तारे काटने का लगातार प्रयास करना और लगातार खाली मुंह चलाना।

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