PETA इंडिया की नयी जांच से खुलासा – बकरियों के साथ भयानक बर्बरता, धारदार चाकू से कटने एवं खाल उतरने के दौरान दिल दहला देने वाली पीड़ा से तड़फती एवं चिल्लाती दिखी।
PETA इंडिया मांग करता है कि भारत के डेयरी एवं माँस उद्योग की इन क्रूर प्रथाओं में बदलाव लाया जाए व सामान्य जनता से अनुरोध करता है कि ईद से पहले वीगन बनें।
अलवर, राजस्थान- अगस्त माह में ईद के आगमन से पहले ‘पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया’ ने राजस्थान के अलवर में बकरी दूध एवं माँस व्यापार से संबन्धित चौंका देने वाला वीडियो जारी किया है जिसमे सड़क के किनारे माँस बिक्री की दुकानों में मासूम बकरियों को उनके माँस के लिए, बिना किसी बेहोशी की दवा दिये, अन्य डरी सहमी बकरियों के सामने बेदर्दी से काटा जा रहा है। इस वीडियो को ईद से ठीक पहले जारी कर यह बताने की कोशिश की गयी है कि बकरियों को भी पीड़ा होती है चाहे उन्हे कत्लखानों के अंदर काटा जाए या फिर बाहर कहीं, वो भी मरना नहीं चाहती।
दिल दहला देने वाली विडियो फूटेज यहाँ पर देखी एवं डाऊनलोड की जा सकती है।
इसके जवाब में, PETA इंडिया ने केंद्रीय मंत्री – पशु कल्याण, डेरी एवं मतस्य, श्री गिरिराज सिंह को तत्काल पत्र लिखकर यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि बकरियों का बधियाकरण प्रक्रिया बेहोश किए जाने के बाद ही की जानी चाहिए, कत्लखानों एवं जहाँ पशुओं को मारा जा रहा है वहाँ का निरीक्षण किया जाए, पशु परिवहन एवं कत्लखाना अधिनियम को प्रभाव पूर्ण तरीके से लागू किया जाए व अवैध कत्लखानों, खुलेआम सड़कों पर दी जाने वाली पशुबलि/कुर्बानी के खिलाफ भी कठोर कार्यवाही की जाए।
PETA इंडिया के लीगल एसोसिएट आमिर नबी कहते हैं- “बेहोश किए बिना बकरियों को काटने से लेकर उनके बच्चों को उनके दूध से वंचित रखने, जिंदा रहते बकरियों के गले काटने, उनका दूध प्राप्त करने एवं मार दिये जाने तक, यह सभी क्रूर एवं उत्पीड़न भरी प्रथाएँ हैं। PETA इंडिया सरकार से मांग करता है कि इन बेरहम एवं पीड़ादायी प्रचलनों पर रोक लगाए व साथ ही साथ सामान्य जनता से अनुरोध करता है कि त्यौहारों पर पशुओं का उत्पीड़न करने की बजाय, आपस में कपड़े एवं मिठाईयां बांटकर व पशुओं की जान बचाकर त्यौहार मनाएँ।“
PETA इंडिया द्वारा “Sentient” नामक संस्था के सहयोग से शूट की गयी इन वीडियो फूटेज में देखा जा सकता है कि बकरियों के स्तन संक्रमित हैं, एक बकरी के संक्रमित घाव में कीड़े लगे हैं तथा एक अन्य बकरी के पैर में फ्रेक्चर है। बहुत सी बकरियों को तंग छोटे पिंजरों में कैद करके तथा इतनी छोटी रस्सियों से बांध कर रखा गया है कि वो सही से हिलडुल भी नहीं सकती। छोटी बकरियों के मुंह में जबरन लकड़ी घुसेड़ दी गयी ताकि वो अपनी माँ का दूध न पी सके ताकि उस दूध को इन्सानों को बेचा जा सके।
इस इलाके कि अधिकांश बकरियों के हिस्से में गैरकानूनी रूप से चल रही माँस की दुकानों पर दर्दनाक मौत मिलती है या फिर तप्ति गर्मी में पीड़ा भरी लंबी यात्रा के बाद किसी कत्लखाने में मारना। सड़क के किनारे खुले बूचडखानों एवं कत्लखानों में इन बकरियों को मरने के लिए जबरन गंदे फर्श पर खड़ा किया जाता है जहाँ गर्दन कटी व खून से लथपथ पड़ी छटपटाती बकरियाँ पड़ी होती हैं। फर्श पर गिरि व तड़फती हुई बहुत सी बकरियों के पैर हिल रहे होते हैं जबकि आधी गर्दन कटी बकरियाँ किसी तरह बचने का प्रयास कर रही होती है। बूचडखानों या फिर कुर्बानी के दौरान भी बर्बरता का यही मंजर देखने को मिलता है।
PETA इंडिया जो इस सरल सिधान्त के तहत काम करता है कि “जानवर हमारा भोजन बनने या फिर किसी भी तरह से दुर्व्यवहार सहने के लिए नहीं है”, प्रजातिवाद का विरोध करता है क्यूंकि यह मनुष्य का स्वयं को वर्चस्ववादी मानने वाली मानसिक्ता का प्रतीक है। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी वेबसाईट www.Petaindia.com पर जाएँ।