PETA इंडिया ने पंजाब विधानसभा को याद दिलाया की बैलगाड़ी दौड़ क्रूर एवं आपराधिक हैं
PETA समूह ने चेतावनी दी है की यदि पंजाब विधानसभा राज्य में बैलगाड़ी दौड़ को मान्यता प्रदान करती है तो वो अदालत का रुख करेंगे।
चंडीगड़ : पंजाब मंत्रिमंडल द्वारा “प्रीवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल्स (पंजाब संशोधन) अध्यादेश, 2019 को विधानसभा के वर्तमान बजट सत्र में पारित कराने हेतु पेश किए जाने की खबर पर PETA इंडिया ने तत्काल कार्यवाही करते हुए एक पत्र के माध्यम से समस्त विधानसभा सदस्यों से अनुरोध किया है की वो राज्य में इन क्रूर बैलगाड़ी दौड़ों को मान्यता प्रदान करने वाले अध्यादेश खासकर लुधियाना के निकट किला रायपुर में होने वाली वार्षिक खेलकूद आयोजन का समर्थन न करें। PETA समूह ने अपने पत्र में इंगित किया है कि इस तरह की क्रूर दौड़ों के आयोजन का समर्थन करना केंद्र सरकार द्वारा पारित “प्रीवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल्स, एक्ट 1960” तथा भारतीय दंड संहिता जिसमे बैलगाड़ी दौड़ों को आपराधिक माना गया है व उनके आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया गया है, का सीधे तौर पर उलंघन है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दिनांक 7 जुलाई 2011 को एक अधिसूचना में यह कहा गया है कि बैलों को किसी भी तरह के आयोजनों में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। माननीय सुप्रीम कोर्ट के 7 मई 2014 के फैसले के अनुसार पूरे भारतवर्ष में बैलगाड़ी दौड़ों का आयोजन गैरकानूनी है।
अपने पत्र में PETA इंडिया ने यह भी इंगित किया है कि उत्तक विज्ञान, शरीर विज्ञान, पशु व्यवहार एवं कल्याण, पशु चिकित्सक एवं स्वतंत्र विशेषज्ञों के अनुसार बैल का शरीर इस प्रकार की दौड़ों के अनूकूल नहीं है। बैलगाड़ी दौड़ों में बैलों के प्रति अत्यधिक क्रूरता शामिल होती है। बैलों का इस तरह से इस्तेमाल पशु एवं इन्सान दोनों की जिंदगी को खतरे में डालता है। इन दौड़ों से जुआ एवं सट्टे को बढ़ावा मिलता है। इसलिए पूर्व में माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए भारतीय पशु कल्याण विभाग एवं पशुपालन विभाग पंजाब द्वारा अब तक इस प्रकार की दौड़ों के आयोजन की अनुमति प्रदान नहीं की गयी थी, अतः इन दौड़ों को कानूनी मान्यता प्रदान करने का प्रयास वैश्विक स्तर पर पंजाब की साख को धूमिल करेगा। PETA समूह की योजना है की यदि पंजाब में बैलगाड़ी दौड़ों की अनुमति दी जाती है तो वो निश्चित रूप से अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।
PETA इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एवं जानवरों के विशेषज्ञ डॉ. मणिलाल वालियाते कहते हैं- “बोवाईन एनाटॉमी का विज्ञान निर्विवाद रूप से यह कहता है की बैलों का भरी भरकम शरीर इस तरह की दौड़ों के लिए उपयुक्त नहीं है। इस प्रकार दौड़ना उनके लिए बेहद तनावपूर्ण, शारीरिक कष्ठदाई व खतरनाक स्थिति है। देखभाल करने वाले लोग मनोरंजन के लिए संवेदनशील, बुद्धिमान बैलों को पीटने, यातनाएं और दर्द सहने के लिए मजबूर नहीं करते हैं।
PETA इंडिया जो इस सरल सिद्धांत के तहत कार्य करता है कि पशु किसी भी तरह से हमारे मनोरंजन के लिए नहीं है, ने बैलगाड़ी की बहुत सी दौड़ों की जांच के दौरान पाया है कि दौड़ के दौरान तप्ति धूप में तेज दौड़ने के लिए बाध्य करने हेतु बैलों को डंडों से पीटा जाता है, नुकीली छड़े चुभोई जाती हैं, पूंछ को मरोड़ा जाता है, अनेकों यतनाए दी जाती है जिससे उन्हे बेहद शारीरिक कष्ट पहुंचता है व खून भी आ जाता है। बैलगाड़ी दौड़ों पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पाबंदी लगाने से पहले, फरवरी 2014 को किला रायपुर खेलकूद समारोह के दौरान तीन बैल नियंत्रण से बाहर होकर घायल हुए थे उनमे से एक के घुटने में फ्रेक्चर हो गया था। इसी आयोजन के दौरान दो अन्य बैल अपना नियंत्रण खो बैठे व सीधे वाहन पार्किंग एरिया में खड़ी एक गाड़ी से टकरा कर गंभीर रूप से घायल हुए थे। PETA इंडिया की याचिका महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं तमिलनाडू के उस संविधान की मान्यता को चुनौती दे रही है जिसका उद्देश्य बैलों को इस प्रकार के आयोजनों में इस्तेमाल करने हेतु कानूनी मान्यता देना है।
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