‘विश्व वीगन माह’ के उपलक्ष में देशव्यापी अभियान के तहत PETA इंडिया ने बछड़ों के हक में आवाज़ उठाई
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18 November 2021
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PETA समूह ने देशभर के लोगों से बछड़ों की सहायता करने हेतु डेरी का त्याग करने का अनुरोध किया
दिल्ली – “मादा बछड़े आगे चलकर दूध नहीं दे पाएंगे इसलिए डेरी उद्योग में उन्हें बेकार मानकर कूड़े की तरह फेंक दिया जाता है। कृपया वीगन जीवनशैली अपनाए।“ पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने ‘विश्व वीगन माह’ (नवंबर) के उपलक्ष्य में देश भर के शहरों में यह अत्यंत महत्वपूर्ण संदेश पहुंचाया। इस अभियान के अंतर्गत बछड़ों के जन्म के तुरंत बाद उन्हें अपनी माँ से अलग करने की व्यापक तौर पर प्रचलित डेरी प्रथा के खिलाफ़ आवाज़ उठाई गयी है। मादा बछड़ें दूध नहीं दे सकते इसलिए उन्हें भूखा मरने के लिए छोड़ दिया जाता है या चमड़ी के लिए इन जानवरों को बेच दिया जाता है। डेयरी फार्मों में बछड़ों को खलबच्चों में बदल दिया जाता है अर्थात मृत बछड़ों के शरीर की खाल में भूसा भरकर उन्हें नकली बच्चा बनाकर गायों एवं भैसों के पास ऐसे खड़ा कर दिया जाता है ताकि गायें भैंसे उन्हें अपना जीवित बछड़ा समझे और दूध देती रहें।
PETA इंडिया का बिलबोर्ड दिल्ली में लाजपत नगर मार्केट में 3CS सिनेमा के प्रवेश द्वार के निकट लगाया गया है। यह बिलबोर्ड अहमदाबाद, बेंगलुरु, चंडीगढ़, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में भी लगवाए गए हैं। डेयरी उद्योग में गायों और भैंसों पर की जाने वाली क्रूरता के विडियो को यहाँ से डाउनलोड किया जा सकता है।
PETA इंडिया की सीनियर कैम्पेन कोर्डिनेटर राधिका सूर्यवंशी के अनुसार, “बछड़ों का पूरा हक है कि वह अपनी माँ के पास रहकर उनका दूध पिए, लेकिन डेयरी उद्योग के अंतर्गत आमतौर पर मादा बछड़ो को मरने के छोड़ दिया जाता है जिससे इंसानों के लिए उनकी माताओं का दूध चुराया जा सके। इस “विश्व वीगन माह”, PETA इंडिया सबसे अनुरोध करता है कि वह समझे कि गाय और भैस का दूध उनके बछड़ों के लिए है इंसानों के लिए नहीं।“
डेरी उद्योग जानवरों की आपूर्ति करके गोमांस और चमड़ा उद्योग का भी समर्थन करता है , जो भारत में बड़े पैमाने पर मौजूद हैं। University of Oxford के शोधकर्ताओं के अनुसार, केवल मांस और डेयरी उत्पादों का त्याग करके अपने कार्बन फूटप्रिंट को 73 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है और यह इस ग्रह पर अपने नकारात्मक प्रभाव को कम करने का सबसे सफ़ल तरीका है। इसके अलावा डॉक्टरों द्वारा डेयरी उपभोग को हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह, कुछ प्रकार के कैंसर, और अन्य बीमारियां से भी जोड़कर देखा गया है।
PETA इंडिया जो इस सिद्धांत के तहत काम करता है कि “जानवर हमारा भोजन बनने के लिए नही हैं” प्रजातिवाद का विरोध करता है क्यूंकी यह एक ऐसी धारणा है जिसके तहत इंसान इस दुनिया में स्वयं को सर्व शक्ति मानकर दूसरी अन्य प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी वेबसाईट PETAIndia.com पर जाएँ एवं हमें Twitter, Facebook, और Instagram पर फॉलो करें।
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