सर्कस में जानवरों के इस्तेमाल पर रोक की मांग हेतु PETA इंडिया द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर
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17 July 2020
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PETA समूह ने जानवरों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार, पशु संरक्षण क़ानूनों का उलंघन एवं जूनोटिक रोगों के खतरे का हवाला दिया
नयी दिल्ली : पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने “प्रदर्शनकारी पशु (पंजीकरण) (संशोधन) नियम 2018” का हवाला देते हुए माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सर्कस में जानवरों के इस्तेमाल पर रोक की मांग की है।
याचिका में PETA इंडिया ने कहा है कि सर्कस में जानवरों के साथ अत्यधिक दुर्व्यवहार एवं मारपीट की जाती है तथा मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रखा जाता है जो कि अनेकों दिशानिर्देशों के अलावा ‘पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960’ तथा ‘प्रदर्शनकारी पशु (पंजीकरण) नियम 2001’, ‘वन्यजीव संरक्षण कानून 1972’, ‘चिड़ियाघर मान्यता नियम 2009’ का स्पष्ट उलंघन है। PETA इंडिया ने सर्कस में इस्तेमाल होने वाले पशुओं से उन गंभीर जूनोटिक रोगों के फैलने का हवाला भी दिया है जिनका संक्रमण इन्सानों में भी फैल सकता है जैसे हाथियों से टीबी का रोग, घोड़ों से ग्लेन्डर, पक्षियों से पिस्टाकोसिस (तोता बुखार), ऊंटों से कैमलपोक्स एवं मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (यह कोरोना वायरस के कारण होता है)। जैसे COVID-19 के बारे में माना जाता है कि इन्सानों में इसका पहला संक्रमण वन्यजीवों से ही आया है।
PETA इंडिया की सीनियर लीगल काउंसिल स्वाति सुंबली कहती हैं- “दुनिया पहले से ही जानवरों से इन्सानों में फैली एक जानलेवा बीमारी से जूझ रही है इसलिए यह उचित समय है की सर्कसों में जानवरों के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाए व कमजोर एवं बीमार जानवरों को एक शहर से दूसरे शहर घसीटे जाने से मुक्त किया जाए। भारतीय सर्कसों में जानवरों के इस्तेमाल पर रोक लगाने में पहले से ही एक वर्ष की देरी हो चुकी है जिस कारण जानवर बेचारे लगातार दुर्व्यवहार का शिकार हो रहे हैं। PETA इंडिया ने अब उच्च न्यायालय का रुख किया है ताकि इन बेकसूर जानवरों की पीड़ा को समाप्त किया जा सके”।
PETA इंडिया ने यह भी इंगित किया है कि सर्कसों में जानवरों के साथ बहुत ज्यादा क्रूरता की जाती है, उन्हें जंजीरों में जकड़कर रखा जाता है, पर्याप्त भोजन, पानी, चिकित्सीय देखभाल एवं शेल्टर से वंचित रखा जाता है। उनसे जबरन भ्रामक, दर्दनाक एवं असहज कर दिये जाने वाले करतब करवाए जाते हैं व उन सब महत्वपूर्ण सुविधाओं से वंचित रखा जाता है जो प्रकर्तिक रूप से उनके कल्याण के लिए जरूरी हैं। बहुत से जानवर ऐसा व्यवहार करते नजर आते हैं जो उनके तनावग्रस्त होने का संकेत देता है। याचिका में PETA इंडिया ने माननीय उच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि वर्तमान में इन सर्कसों में इस्तेमाल होने वाले जानवरों में से घोड़ों, हाथियों, ऊंटों एवं पक्षियों को किसी मान्यता प्राप्त सेंक्चुरी या पुनर्वास केंद्र भेजा जाए जबकि कुत्तों को गोद लिए जाने हेतु कार्यवाही की जाए।
पिछले महीने, लॉकडाउन में बंद पड़े सर्कसों में फसे जानवरों की स्थिति पर PETA इंडिया ने AWBI से शिकायत की थी। उस पर कार्यवाही करते हुए भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड, जो कि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत गठित केंद्र सरकार की सलाहकार संस्था है, ने समस्त राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को अधिसूचना जारी कर समस्त जिलों में बंद पड़ी सर्कसों के अंदर फसे जानवरों को खाना दिये जाने के तरीकों, उनको रखे जाने की व्यवस्था, प्रदर्शनकारी पंजीकरण नियम के तहत AWBI के साथ पंजीकृत किए गए जानवरों की संख्या पर एक विस्तृत जांच रिपोर्ट AWBI में जमा करने के आदेश दिये गए थे।
सन 2015 से अब तक PETA इंडिया एवं अन्य पशु अधिकार संगठनों द्वारा पुलिस तथा वन विभाग के साथ मिलकर किए गए प्रयासों के चलते 100 से अधिक जानवरों का रेसक्यू कर उन्हें देखभाल हेतु सेंक्चुरी में भेजा जा चुका है । इन जानवरों में 15 हाथी व अनेकों घोड़े, ऊंट, कुत्ते एवं पक्षी शामिल हैं।
बोलिविया, बोबोसनिया, हेर्जेगोविना, साइप्रस, ग्रीस, गौटेमाला, इटली एवं माल्टा ऐसे देश हैं जिंहोने सर्कस में जानवरों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा दी है।
PETA इंडिया प्रजातिवाद का विरोध करता है क्यूंकि यह मनुष्य की उस वर्चस्ववादी सोच को दर्शाता है जिसमे इंसान दुनिया में स्वयं को सबसे ऊपर मानकर अपने फ़ायदों के लिए संसार की अन्य प्रजातियों के शोषण को सही मानता है। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी वेबसाईट PETAIndia.com पर जाएं।
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