PETA इंडिया ने पशुपालन प्रक्रियाओं में मानवीय तरीकों को लागू किए जाने हेतु दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
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10 August 2020
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PETA समूह चाहता है की केंद्र सरकार पशुओं के प्रति क्रूरता को समाप्त करने के लिए नियमावली बनाए।
नयी दिल्ली :- आज, पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमलस (PETA) इंडिया ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर केंद्र सरकार से बैल एवं गायों सहित मवेशियों के लिए दर्दनाक पशुपालन प्रक्रियाओं के संबंध में कुछ नियमावली बनाने व “निर्धारित तरीकों” को परिभाषित करने की मांग की है। PETA समूह ने आग्रह किया है इन पशुओं की नसबंधी से पूर्व उनको बेहोश किया जाना, नाक के अंदर से नकेल बांधने की बजाय मोहरा (बिना नकेल कसे केवल मुंह के ऊपरी हिस्से पर रस्सी पहनाना), जलते सरिये से शरीर पर मुहर अंकित करने की बजाए रेडियों फ्रिकवेंसी पहचान चिन्ह इस्तेमाल किए जाए, उनके सींग उखाड़ने की बजाए सींग रहित ब्रीडिंग जैसे मानकों को निर्धारित किया जाए। PETA इंडिया ने इंगित किया है कि उसने इससे पहले भी कई बार केंद्र सरकार से इस तरह के मानकों को निर्धारित करने के लिए अनुरोध किया है लेकिन कार्यवाही ना होने व जानवरों को दुर्दशा से निजात दिलाने के लिए जनहित याचिका का सहारा लेकर उन्होने अब न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
PETA समूह ने यह भी इंगित किया है कि “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960” के अनुसार गंभीर पीड़ित जानवर को जिंदा रखना उसके साथ क्रूरता करने के समान हो तो उसे मुक्ति दे दी जानी चाहिए तथा “पशुओं में संक्रमण एवं संक्रामक रोगों के प्रसार पर रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम 2009” के अनुसार यह अनिवार्य है कि पशुओं में कोई महामारी फ़ैल जाने पर उस बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए अत्यधिक तादात में पशुओं को एक साथ मार दिये जाने की जरूरत हो तो ऐसे में पशुओं को जीवन से मुक्ति दिया जाना अनिवार्य है लेकिन वर्तमान में प्रचलित तरीकों के तहत दी जाने वाली वेदना रहित जीवन मुक्ति बेहद क्रूर एवं दर्दनाक है जो पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में बताए गए नियमों का उलंघन है। इन क्रूर तरीकों के तहत जानवरों को मारने के लिए उन्हें बिना बेहोश किए बिना ऐसे रसायन से भरे टीके लगाए जाते है जिससे अत्यधिक पीड़ा के साथ उनका दिल व फेफड़े काम करना बंद कर देते और उनके जिंदा रहते ही उन्हें उठाकर दफना या जला दिया जाता है। PETA इंडिया इस बात पर ज़ोर देता है कि जानवरों को दर्द व वेदना रहित तरीकों से जीवन से मुक्ति दिये जाने का एकमात्र उपाय है कि उनको बेहोशी की दवा की बड़ी डोज़ दी जाए इसलिए वेदना रहित तरीकों से जीवन मुक्ति के नियमों में इस तरीके को शामिल किया जाना चाहिए।
जानवरों के पालन पोषण के संबंध में क्रूर एवं दर्दनाक प्रथाओं के फोटोग्राफ यहाँ से डाऊनलोड किए जा सकते हैं।
PETA इंडिया के CEO जो पेशे से एक पशु चिकित्सक भी है, डॉ. मणिलाल वलियाते कहते हैं- “कोई भी इस बात का अंदाजा लगा सकता है कि जब अंडकोश के साथ जुड़ी नस को कुचल दिया जाए, जब एक मोटी सुई को आरपार करके नाक को छेद दिया जाए या जब गरम सरिये से शरीर को जला दिया जाए तो कितना दर्द होता होगा। सरकार की तरफ पशुओं की सामान्य देखभाल के संबंध में निर्धारित दिशानिर्देश ना दिये जाने से पशुओं की देखभाल के दौरान पशु चिकित्सक उन्हें बेहद दर्दनाक, क्रूर एवं वहशियत भरे तरीकों से हैंडल करते हैं जिसके चलते अनगिनत पशु डर, पीड़ा एवं मानसिक तनाव का शिकार होते हैं। जिस तरह इन्सानों को बिना बेहोश किए दर्दनाक चिकित्सीय उपचार दिये जाने की अनुमति नहीं है ठीक उसी तरह से जानवरों के संबंध में भी यह नियम लागू होना चाहिए।“
“पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960” का सेक्शन 11 पशुओं के साथ क्रूरता भरे व्यवहार तथा उप सेक्शन 3 पशुओं की देखभाल के संबंध में हैं जिसमे कहा गया है कि पशुओं की नसबंदी करने, उनके शरीर पर मुहर अंकित करने व उनकी नकेल डालने की प्रक्रिया यदि निर्धारित नियमों व दिशानिर्देशों के तहत हो तो इन क्रटयोन को क्रूर नहीं माना जाएगा। ‘पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960’ के सेक्शन 38 में केंद्र सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वो पशुओं की वेदना रहित तरीकों से जीवन मुक्ति देने एवं सामान्य देखभाल के तरीकों पर आवश्यक दिशानिर्देश एवं नियमवाली बनाए।
भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड तथा पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा पशुओं की मानवीय देखभाल व वेदना रहित तरीकों जीवन मुक्ति के संबंध में जारी की गयी सलाह के आधार पर बहुत से राज्य पशुपालन विभागों ने राज्य के पशु चिकित्सकों को आदेश जारी कर उन्हें पशु देखभाल के मानवीय तरीके अपनाने के निर्देश दिये हैं। लेकिन पशु देखभाल के तरीकों को परिभाषित कर सकने, सुधार सकने, व विनियमित कर सकने वाले मजबूत दिशानिर्देश न होने की स्थिति में पशुओं की देखभाल के दौरान उनके साथ क्रूरता भरा व्यवहार होता है।
PETA इंडिया जो इस सिद्धांत में विश्वास रखता है कि “जानवर किसी भी तरह से हमारा दुर्व्यवहार सहने के लिए नहीं है” प्रजातिवाद का विरोध करता है। प्रजातिवाद एक ऐसी विचारधार है जिसमे इंसान स्वयं को इस दुनिया में सर्वोपरि मानकर अपने फायदे के लिए अन्य प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी वेबसाईट PETAIndia.com पर जाएँ।
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