PETA इंडिया का वाणिज्य मंत्रालय से अनुरोध- “भारत को ‘वीगन भोजन एवं फैशन’ का विश्व लीडर बनाकर किसानों की मदद करें”

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7 March 2022

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Hiraj Laljani; [email protected]  

Dr Kiran Ahuja; [email protected] 

दिल्ली- वीगन (गैर पशु प्रयुक्त) भोजन, कपड़े व अन्य उत्पादों के वैश्विक स्तर पर बढ़ती उपभोक्ता मांग के मद्देनज़र, पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने आज सुबह वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री पीयूष गोयल जी को पत्र भेजकर उन्हें अपने मंत्रालय के द्वारा वीगन उत्पादों के व्यापार में लगे स्थानीय किसानों एवं उद्यमियों का सहयोग करके वीगन उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करने के अवसर को न चूकने का अनुरोध किया। PETA समूह ने इसी तरह का ही एक पत्र राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों को भी लिखा है। PETA इंडिया का कहना है कि वीगन उत्पादों की मांग पहले से ही बहुत तेज़ी से बड़ रही है ऐसे में भारत दुनिया की सबसे बड़ी वीगन अनुकूल अर्थव्यवस्था बनकर पूरे विश्व को पशुओं के शोषण एवं पर्यावरणीय क्षति से बचने हेतु रचनात्मक वीगन समाधान खोजने में मदद कर सकता हैं। (वैश्विक वीगन खाद्य पदार्थ बाज़ार वर्ष 2026 तक 31.4 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जबकि वैश्विक शाकाहारी चमड़े का बाजार वर्ष 2020 तक 37.90 मिलियन अमेरिकी डॉलर तथा पौधों पर आधारित दूध का वैश्विक बाज़ार वर्ष 2019 तक 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो चुका है)

पत्र में PETA समूह ने लिखा है कि विभिन्न राज्य पहले से ही जानवरों, पर्यावरण और राज्य निवासियों को इस मामले में मदद पहुंचाने के लिए अनेकों कदम उठा चुके हैं इसलिए अब केंद्र सरकार की ओर से एक एकीकृत एवं व्यापक प्रो-वीगन पहल करना अनिवार्य है। तंजावुर स्थित राष्ट्रीय खाद्य प्रोद्योगिक संस्थान, उद्यमिता एवं प्रबंधन बाजरा आधारित आइसक्रीम विकसित कर रहा है, तामिलनाडु और केरल के किसान लोकप्रिय माँस विकल्प कटहल की खेती से प्रतिवर्ष 19.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कमाई कर रहे हैं, और मेघालय सरकार भी अनायास के पौधों से चमड़े के उत्पादों को प्रोत्साहित कर रही है। भारत में आमतौर पर उगाये जाने वाले अन्य पोधे जैसे सेब, अंगूर, नारियल, और मशरूम का भी चमड़े के उत्पाद बनाने के लिए इस्तेमाल हो रहा है। कानपुर की एक कंपनी मंदिर से निकले पुराने सूखे फूलों का भी इस्तेमाल कर रही है। तामिलनाडु में FABORG कैलोट्रोपिस पौधों से वीगन ऊन बना रहा है। केले और अनानास के रेशों से रेशम और अन्य सामाग्री बनाई जा रही है।

PETA इंडिया की फूड्स एंड न्यूट्रिशियन स्पेशलिस्ट डॉ. किरण आहूजा कहती हैं – “फलों से चमड़ा बनाने से लेकर कठहल से माँस बनाने तक, वैश्विक वीगन बाज़ार तेज़ी से बड़ रहा है। सरकारी मदद से भारतीय किसान एवं उद्यमी वीगन जीवनशैली में दिलचस्पी लेकर जबरदस्त फायदा उठा सकते हैं। PETA इंडिया वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय से जानवरों के संरक्षण और वीगन खाद्य पदार्थों व फैशन सामाग्री के उत्पादन हेतु सकारात्मक कदम उठाकर भारत को वैश्विक स्तर पर विश्व लीडर बनने के लिए अनुरोध कर रहा है।“

PETA इंडिया, जो इस सिद्धांत के तहत काम करता है कि “जानवर हमारा भोजन बनने, वस्त्र बनने या किसी भी अन्य तरह से हमारा दुर्व्यवहार सहने के लिए नहीं हैं” प्रजातिवाद का विरोध करता है क्यूकि इस सोच के तहत इंसान खुद को दुनिया में सर्वोपरि मानकर दूसरी अन्य प्रजातियों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है। PETA यह मानता है कि वीगन उत्पाद पशुओं से प्राप्त होने वाले खाद्य पदार्थों की तुलना में अधिक स्वस्थ होते हैं और यह अभिनव वीगन खाद्य पदार्थ एवं फैशन उत्पाद जानवरों को बूचड़खानों की भयानक मौतों से बचाते हैं और जलवायु परिवर्तन से होने वाली तबाही से निपटने में मदद कर सकते हैं।

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