PETA इंडिया ने चेतावनी दी है कि हाथियों की आवश्यक जाँच न होने व सुरक्षा के गंभीर कदम ना उठाए जाने के कारण, आमेर के किले पर हाथी सवारी करने वाले पर्यटकों को TB संक्रमण का खतरा है
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5 March 2020
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PETA समूह ने राजस्थान के मुख्य मंत्री से हाथी सवारी पर रोक लगाने की मांग की है
जयपुर- भारत में बंदी हाथियों से गैरकानूनी काम करवाने के मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में होने वाली सुनवाई से एक दिन पहले PETA इंडिया ने राजस्थान के मुख्य मंत्री श्री अशोक गहलोत जी को पत्र भेजकर जयपुर में आमेर के किले एवं हाथीगाँव में चल रही हाथीसवारी पर रोक लगाने की मांग की है क्यूंकि टीबी से ग्रस्त इन हाथियों के संपर्क में आने से पर्यटकों में टीबी संक्रमण हस्तांतरित होने का खतरा है। PETA समूह ने इस कार्यवाही की मांग, कुछ हाथियों में टीबी संक्रमण के सकारात्मक पाये जाने के उपरांत की है जबकि अनेकों हाथी जो पिछली जांच में टीबी संक्रमित पाये गए थे व बहुत से अन्य हाथी जिनकी अभी टीबी की जांच नहीं हुई है, उन सबको पर्यटक सवारी हेतु इस्तेमाल किए जा रहा है। जयपुर में इन हाथियों में टीबी के संक्रमण, रोकथाम व उपचार को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
मुख्यमंत्री महोदय को भेजे गए पत्र की के कॉपी यहाँ से डाऊनलोड की जा सकती है।
PETA इंडिया ने राजस्थान के मुख्यमंत्री महोदय के कार्यालय को सबूत के तौर पर राजस्थान वन विभाग द्वारा इस्तेमाल की जा रही टीबी परीक्षण किट भी भेजी है, यह किट हाथियों में टीबी की जाँच करने हेतु उपयुक्त नहीं है और ना ही इसे किसी सरकारी निकाय द्वारा अनुमोदित किया गया है। इस किट के द्वारा की गयी टीबी जांच यह प्रमाणित नहीं कर सकती की वर्ष 2018 में “भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड” द्वारा करवाई गयी जांच में जो 10 हाथी संक्रमित पाये गए थे, इस नयी टीबी किट से की गयी जाँच में उन 10 में से 7 हाथी सही हो गए हैं। जबकि “भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड” ने अपनी जांच हेतु RFD किट का इस्तेमाल किया था जो की ‘संयुक्त राष्ट्र कृषि विभाग’ (USDA) द्वारा प्रमाणित किट है। गैर प्रमाणित किट द्वारा की गयी जांच में जो 2 हाथी टीबी संक्रमित पाये गए थे उनको भी 2 से 3 माह तक निगरानी में रखने के उपरांत उन्हे टीबी मुक्त घोषित कर रिहा कर दिया गया जो की टीबी संक्रमण एवं उपचार के नियमों की अहवेलना करता है क्यूंकि इस तरह के मामलो में भी संक्रमित हाथी को कम से कम 6 माह तक निगरानी में रखा जाना आवश्यक है। “भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड” द्वारा अपनी जांच में टीबी संक्रमित पाये गए 10 हाथियों को उपचार न दिये जाने के कारण उनमें से एक हाथी की मौत हो गयी। वर्ष 2018 में “भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड” द्वारा जयपुर में 134 हाथियों को टीबी जाँच हेतु चिन्हित किया गया था जिनमे से केवल 91 हाथियों की जाँच हो सकी और उनमें 10 टीबी संक्रमित पाये गए थे जबकि 43 हाथी (32%) अभी भी बिना जांच के घूम रहे हैं।
‘सूचना का अधिकार अधिनिय 2005’ के तहत डाली गयी एक RTI पर मिले जवाब का संदर्भ देते हुए PETA इंडिया ने अपने पत्र में इंगित किया है की जयपुर में हाथीसवारी गैरकानूनी है क्यूंकि इस RTI पर मिले जवाब के अनुसार जयपुर में हाथी सवारी में इस्तेमाल हो रहे हाथी “भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड” के साथ पंजीकृत नहीं है जो की “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960, के तहत गठित “प्रदर्शनकारी पशु (पंजीकरण) नियम 2001” का स्पष्ट उलंघन है तथा राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2010 में जारी की गयी उस अधिसूचना की अहवेलना है जिसमे कहा गया था की किसी भी जानवर को प्रदर्शन हेतु इस्तेमाल करने से पहले “भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड” की अनुमति लेना अनिवार्य है।
PETA इंडिया के CEO एवं पशु चिकित्सक डॉ. मणिलाल वलियाते कहते हैं:- “पर्यटक एवं सामान्य जनता को टीबी के संक्रमण से बचाने का एकमात्र उपाय यही है संक्रमित हाथियों की सवारी पर रोक लगाते हुए उन्हें इन्सानों के संपर्क में न आने दिया जाए। PETA इंडिया राजस्थान सरकार से पर्यटकों व इन बीमार एवं टीबी से पीड़ित हाथियों की सुरक्षा की अपील की है क्यूंकि इन हाथियों को उपयुक्त चिकित्सील देखभाल से वंचित रखकर सभी को जोखिम में डाला जा रहा है।”
वर्ष 2018 में भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड ने जयपुर में हाथीसवारी हेतु इस्तेमाल हो रहे हाथियों के साथ गंभीर क्रूरता का खुलासा किया था जिसके आधार पर PETA इंडिया ने सर्वोच्च नयायालय का दरवाजा खटखटाया था। भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड की इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था की वर्ष 2017 में मारे गए 4 हाथियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट यह इंगित करती है की वह संभवतः टीबी रोग से ग्रसित थे।
हाथियों में टीबी एक जुनेटिक बीमारी है जो मुख्यता माइक्रोबेक्टीरियम ट्यूबक्लोसिस के कारण होती हैं और आपतौर पर इसके इलाज़ हेतु 6 से 12 माह का समय लगता है जिस दौरान पीड़ित पशु को अलग थलग करके कढ़ी चिकित्सीय निगरानी में रखकर लगातार मल्टीड्रग (दवा) दी जाती है। रिपोर्ट में “2017 की सिफ़ारिश के अनुसार हाथियों की टीबी का प्रभावी ढंग से उपचार करने हेतु कम से कम 6 माह के समय की बात कही गयी थी लेकिन RFD परीक्षण जाँच किट के द्वारा जाँचे गए हाथियों में से टीबी रोग संक्रमित पाये गए 2 हाथियों को बाद में स्वस्थ्य करार दे दिया जाना संदेह पैदा करता है।
PETA इंडिया इस सरल सिद्धांत के तहत काम करता है की “जानवर किसी भी तरह से हमारा मनोरंजन करने या हमारा दुर्व्यवार सहने के लिए नहीं”, प्रजातिवाद का विरोध करता है क्यूंकि यह मनुष्य की खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने वाली सोच का परिचायक है। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी वेबसाइट PETAIndia.com पर जाएँ।
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